1. मूलाधार चक्र
2. स्वाधिष्ठान चक्र
यह जननेंद्रिय के ठीक ऊपर होता है। जल तत्त्व का प्रतिनिधित्व करता है। पुरुषों में टेस्टीज और महिलाओं में अंडाशय की कार्यप्रणाली को सुचारू रखता है। प्रजनन प्रणाली के साथ हार्मोन के स्राव को नियंत्रित करता है।3. मणिपूरक चक्र
यह नाभि के पास स्थित होता है और पीले रंग से जुड़ा होता है। यह आत्म-सम्मान, आत्मविश्वास और शक्ति से जुड़ा होता है।4. अनाहत चक्र
यह हृदय के केंद्र में स्थित होता है और हरे रंग से जुड़ा होता है। यह प्रेम, करुणा और सहानुभूति से जुड़ा होता है5. विशुद्धि चक्र
यह कंठ के गड्ढे में स्थित होता है। यह बेसल मेटाबॉलिक रेट को संतुलित रखता है। पूरे शरीर को शुद्ध करता है। थायरॉइड ग्रन्थि को नियंत्रित रखता है। यह बोलने, सुनने और खुद को व्यक्त करने की क्षमता को नियंत्रित करता है।6. आज्ञा चक्र
यह दोनों भौंहों के बीच होता है। मानसिक स्थिरता व शांत रखता है। यह दिमाग की सभी कार्य प्रणाली को नियंत्रित रखता है। ज्ञानचक्षुओं को खोलता है। पीयूष ग्रन्थि, जो पूरे शरीर को नियंत्रित रखती है उसे संतुलित रखता है। यह करें – इसके संतुलन के लिए हलासन, सेतुबंधासन और सर्वांगासन प्राणायाम करना लाभकारी होता है।
7. सहस्रार चक्र
इसे ब्रह्मरंध्र भी कहते हैं। सिर की सबसे ऊपरी जगह पर होता है। आध्यात्मिकता, ज्ञान और ऊर्जावान विचारों का स्थान है। शेष सभी चक्रों के जाग्रत होने पर यह चक्र स्वत: ही जाग्रत हो जाता है। – डॉ. गुंजन गर्ग, आयुर्वेदाचार्य