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मानसून के मौसम में लोगों को अधिक माइग्रेन (migraine) होने का एक मुख्य कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव है। इस दौरान आर्द्रता के स्तर में वृद्धि और बैरोमीटर के दबाव में कमी होती है। अध्ययनों से पता चला है कि ये परिवर्तन संवेदनशील व्यक्तियों में माइग्रेन (migraine) को ट्रिगर कर सकते हैं।
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अनुभवजन्य रूप से मौसम परिवर्तन को माइग्रेन को ट्रिगर करने के लिए जाना जाता है, और यह अनुमान लगाया गया है कि लगभग 20 प्रतिशत माइग्रेन प्रकरणों में मौसम परिवर्तन शामिल होता है।
इसके अतिरिक्त, मानसून का मौसम अपने साथ कई अन्य कारक भी लाता है जो माइग्रेन (migraine) में योगदान कर सकते हैं। हवा में नमी में वृद्धि फफूंद और कवक के विकास को बढ़ावा दे सकती है, जो माइग्रेन के लिए जाने जाते हैं।
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दिनचर्या और जीवनशैली में बदलाव भी माइग्रेन (migraine) की बढ़ती घटना में योगदान दे सकता है। आयुर्वेद में कुछ उपाय सुझाए हैं जो माइग्रेन को ठीक काने में मदद कर सकते हैं। Shirolepa शिरोलेपा
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Shirodhara गर्म तेल की एक पतली धारा लगातार माथे पर डाली जाती है, वह क्षेत्र जहां हमारी नसें अत्यधिक केंद्रित होती हैं। जब लगातार तेल डाला जाता है, तो तेल का दबाव माथे पर एक कंपन पैदा करता है, जिससे हमारे दिमाग और तंत्रिका तंत्र को मानसिक आराम की गहरी स्थिति का अनुभव होता है।
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स्नेहा नासया यह थेरेपी नाक के रास्ते दी जाती है। शिद्भिन्दु तैला या अनु तैला जैसे चिकित्सीय तेल नाक में उसी तरह डाले जाते हैं जैसे आप नाक में डालने वाली बूंदें डालते हैं। यह कंधे के क्षेत्र के ऊपर दर्द के इलाज में मदद करता है।डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।