ब्रिटिश डाइटेटिक एसोसिएशन की पूर्व प्रमुख डाइटीशियन लुसी डेनियल के अनुसार जो लोग अक्सर बाहर भोजन करना पसंद करते हैं, उन्हें यह समस्या अधिक होती है। आमतौर पर रेस्तरां में पास्ता, चावल या आलू उबालकर रख लिया जाता है और ग्राहकों को बार-बार वही गर्म करके सर्व किया जाता है। स्टार्चयुक्त चीजों को अगर बार-बार गर्म किया जाए तो उसके अणुओं की संरचना बदलने लगती है। ऐसे में जब हम इन्हें खाते हैं तो गैस बनती है। घर में भी बासी खाने को बार-बार गर्म करके ना खाएं।
बाउल मूवमेंट अनियमित होने से व्यक्ति का मिजाज पूरे दिन चिड़चिड़ा बना रहता है। वहीं, स्ट्रेस होने के कारण भी खानपान में अनियमितता, कब्ज की शिकायत व पाचन-तंत्र से संबंधित गड़बडिय़ां होने लगती हैं।
मासिक धर्म के समय महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव से भी ऐसा होता है। इस दौरान उनके शरीर में प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन का स्तर बढऩे से पेट फूलने लगता है। ऐसे में पेट की आंतरिक प्रक्रिया भी धीमी पड़ जाती है।
फूड पॉइजनिंग में ली जाने वाली एंटीबॉयोटिक दवाओं से पेट के अच्छे बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। इस तरह के असंतुलन से पेट में खाद्य पदार्थों का फर्मेन्टेशन (सडऩे की प्रक्रिया) होने लगता है, जिससे कब्ज होती है। कब्ज से बचने के लिए फल व हरी सब्जियों को आहार में शामिल करें और पर्याप्त पानी पीएं।