यह अध्ययन “मॉलेक्यूलर साइकियाट्री” पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि दिमाग और शरीर के बीच का संवाद डिप्रेशन जैसी मानसिक बीमारियों में कैसे प्रभावित होता है। अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता डॉ. फ्रांसिस्को रोमो-नावा ने कहा, “रीढ़ की हड्डी को झटका देकर डिप्रेशन के दौरान मस्तिष्क के अत्यधिक काम को कम करने में मदद मिल सकती है।” वह अमेरिका के सिनसिनाटी यूनिवर्सिटी में मनोचिकित्सा और व्यवहार तंत्रिका विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
इस अध्ययन में एक छोटा उपकरण इस्तेमाल किया गया, जो जूते के डिब्बे जितना बड़ा था। इसे मरीज की पीठ पर लगाया गया और एक्टिव इलेक्ट्रोड को उसके दाहिने कंधे पर रखा गया। इस अध्ययन में कुल 20 मरीज शामिल थे। आधे को रीढ़ की हड्डी को सक्रिय झटका दिया गया और आधे को कमजोर झटका दिया गया।
हर हफ्ते तीन बार, 20 मिनट के लिए, आठ हफ्ते तक मरीजों को यह झटका दिया गया। डॉ. रोमो-नावा ने कहा, “हमने इतना कम करंट इस्तेमाल किया जो किसी भी ऊतक को नुकसान पहुंचाने वाले करंट से दस गुना कम है। इसलिए यह भी उत्साहजनक है क्योंकि इससे इलाज के तरीके और समय की मात्रा तय करने में मदद मिलेगी।”
इस इलाज के हल्के साइड इफेक्ट्स जैसे झटके वाले स्थान पर त्वचा का लाल होना, थोड़ी खुजली या जलन हुई, जो इलाज के दौरान ही रही। त्वचा का लाल होना आमतौर पर इलाज के 20 मिनट बाद ही ठीक हो जाता था।
इस उपकरण से करंट के रास्ते की एक कंप्यूटर मॉडलिंग से पता चला कि करंट रीढ़ की हड्डी के ग्रे मैटर तक पहुंचता है, लेकिन मस्तिष्क तक नहीं जाता। डॉ. रोमो-नावा ने कहा, “यह हमारी परिकल्पना का समर्थन करता है कि सूचना के इन रास्तों का संशोधन ही मस्तिष्क के मूड-संबंधी क्षेत्रों पर प्रभाव डाल सकता है।” उन्होंने कहा, “यह करंट मस्तिष्क तक नहीं पहुंचता है, लेकिन सिग्नल में बदलाव का उस पर प्रभाव पड़ता है। यह अध्ययन परिकल्पना के सभी घटकों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है, लेकिन हमें लगता है कि यह एक शानदार शुरुआत है।”
यह अध्ययन छोटा था, इसलिए डॉ. रोमो-नावा ने सावधानी बरतते हुए कहा कि सक्रिय झटका पाने वाले मरीजों में डिप्रेशन के लक्षणों में ज्यादा कमी आई, लेकिन बड़े अध्ययन की जरूरत है। (आईएएनएस)