इस शोध के प्रमुख लेखक डॉ. नाथनियल रिट्ज बताते हैं कि “हमारे पेट में रहने वाले वायरसों को ‘विरोम’ कहा जाता है। अब तक इनका अध्ययन बहुत कम हुआ है। लेकिन ये शोध दिखाता है कि ये वायरस तनाव के असर को कम कर सकते हैं।”
शोधकर्ताओं ने चूहों पर प्रयोग किया। कुछ चूहों को लंबे समय तक तनावपूर्ण माहौल में रखा गया। इससे उनके पेट में बैक्टीरिया और वायरस दोनों की संरचना बदल गई। फिर, उन्होंने स्वस्थ चूहों के मल से वायरस निकालकर तनावग्रस्त चूहों में डाले।
इसका नतीजा चौंकाने वाला रहा! तनावग्रस्त चूहों में तनाव के हार्मोन का स्तर कम हो गया और उनका उदास और घबराहट वाला व्यवहार भी कम हो गया। हालांकि, अभी ये शोध शुरुआती दौर में है। इंसानों पर भी इसका असर देखने के लिए और ज्यादा शोध की जरूरत है। लेकिन ये बात तो साफ हो गई है कि हमारे पेट में रहने वाले वायरस सिर्फ बीमारी फैलाने वाले नहीं होते, बल्कि तनाव कम करने में भी उनकी भूमिका होती है।
प्रोफेसर जॉन क्रायन, जिन्होंने इस शोध का नेतृत्व किया, का कहना है कि “इस शोध से भविष्य में तनाव से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए व्यक्तिगत तरीके विकसित किए जा सकेंगे।” उन्होंने ये भी बताया कि कुछ वायरस हानिकारक बैक्टीरिया को नियंत्रित करने में भी मदद करते हैं, खासकर तनावपूर्ण समय में।
तो अगली बार जब आप वायरस के बारे में सुनें, तो याद रखें कि ये सिर्फ बीमारी फैलाने वाले नहीं होते। हमारे पेट में रहने वाले कुछ वायरस तो हमें तनाव से भी बचा सकते हैं!