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टीबी के इलाज में आएगा क्रांतिकारी बदलाव , भारतीय वैज्ञानिकों ने समझा टीबी बैक्टीरिया का रहस्य

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि टीबी के बैक्टीरिया इंसान के शरीर में दशकों तक कैसे छिपे रहते हैं। साइंस एडवांसेस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में, उन्होंने बताया कि एक विशेष जीन टीबी बैक्टीरिया को आयरन-सल्फर क्लस्टर बनाने में मदद करता है, जो उनके छिपे रहने की कुंजी है।

Dec 27, 2023 / 01:34 pm

Manoj Kumar

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TB bacteria persist in human body

भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) के वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि टीबी के बैक्टीरिया इंसान के शरीर में दशकों तक कैसे छिपे रहते हैं।

साइंस एडवांसेस नामक पत्रिका में प्रकाशित इस शोध में, उन्होंने बताया कि एक विशेष जीन टीबी बैक्टीरिया को आयरन-सल्फर क्लस्टर बनाने में मदद करता है, जो उनके छिपे रहने की कुंजी है।
ये आयरन-सल्फर क्लस्टर बैक्टीरिया को सांस लेने के जरिए ऊर्जा बनाने और फेफड़ों के अंदर कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रहने में मदद करते हैं।

टीबी का कारण माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (एमटीबी) नामक बैक्टीरिया होता है, जो बिना किसी लक्षण के इंसान के शरीर में दशकों तक रह सकता है।
आईआईएससी के माइक्रोबायोलॉजी और सेल बायोलॉजी विभाग की डॉक्टरेट छात्रा और शोध की मुख्य लेखिका मायश्री दास कहती हैं, “कई मामलों में, हमारे शरीर की रक्षा प्रणाली एमटीबी को पहचानकर मार सकती है, लेकिन कभी-कभी ये बैक्टीरिया फेफड़ों के अंदर ऑक्सीजन कम वाले हिस्सों में छिप जाते हैं और सोए रहते हैं।”
शोध के सह-लेखक और आईआईएससी के एसोसिएट प्रोफेसर अमित सिंह ने एक बयान में कहा, “इस छिपे रहने की वजह से, इंसानों के एक समूह में हमेशा टीबी के बैक्टीरिया का भंडार होता है, जो कभी भी सक्रिय होकर बीमारी फैला सकता है। अगर हम इस छिपाव की प्रक्रिया को नहीं समझेंगे, तो हम टीबी को खत्म नहीं कर पाएंगे।”
यह समझने के लिए कि एमटीबी आयरन-सल्फर क्लस्टर कैसे बनाता है, टीम ने लैब में एमटीबी को तरल पदार्थ में उगाया। एमटीबी में ये क्लस्टर मुख्य रूप से SUF ऑपरॉन के जरिए बनते हैं, जो कई जीनों का समूह है जो साथ में काम करते हैं। लेकिन उन्होंने पाया कि एक और जीन, जिसे IscS कहते हैं, वह भी क्लस्टर बना सकता है।
यह जानने के लिए कि बैक्टीरिया को दोनों की ज़रूरत है या नहीं, टीम ने एमटीबी का एक म्यूटेंट बनाया जिसमें IscS जीन नहीं था। उन्होंने पाया कि सामान्य और ऑक्सीजन कम होने की परिस्थितियों में, IscS जीन आयरन-सल्फर क्लस्टर बनाता है।
लेकिन, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस क्लस्टर को नुकसान पहुंचाता है, जिससे ज़्यादा क्लस्टर बनाने की ज़रूरत बढ़ जाती है। इससे SUF ऑपरॉन सक्रिय हो जाता है।

टीम ने यह भी पता लगाया कि IscS जीन बीमारी के बढ़ने में कैसे मदद करता है।
चूहों के मॉडल पर IscS जीन के बिना बनाए गए म्यूटेंट एमटीबी से संक्रमित किया गया। IscS जीन के बिना, संक्रमित चूहों में टीबी के मरीज़ों में आमतौर पर देखे जाने वाले लगातार संक्रमण के बजाय गंभीर बीमारी हुई।
शोधकर्ताओं ने कहा, “ऐसा इसलिए है क्योंकि IscS जीन के बिना, SUF ऑपरॉन बहुत ज़्यादा सक्रिय हो जाता है, जिससे ज़्यादा तेज़ी से बीमारी फैलती है। दोनों IscS और SUF सिस्टम को हटाने से चूहों में टीबी के बैक्टीरिया की संख्या काफी कम हो गई।”
उन्होंने पाया कि IscS जीन SUF ऑपरॉन को नियंत्रित करके टीबी के बैक्टीरिया को छिपने में मदद करता है।

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि IscS जीन के बिना बैक्टीरिया कुछ एंटीबायोटिक्स के प्रति ज़्यादा संवेदनशील थे।

(आईएएनएस)

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