कर्नाटक में इस साल अब तक दो लोगों की मौत बंदर (Monkey fever) बुखार से हो चुकी है। पहली मौत 8 जनवरी को शिवमोग्गा जिले के होसनगर तालुक में हुई थी, जहां 18 साल की लड़की ने इस वायरस की चपेट में आकर दम तोड़ दिया था। दूसरी मौत उडुपी जिले के मणिपाल में हुई, जहां चिक्कमगलूर जिले के श्रृंगेरी तालुक के 79 वर्षीय बुजुर्ग का एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, रविवार तक राज्य में कुल 49 मामले सामने आए हैं।
सबसे ज्यादा मामले उत्तर कन्नड़ जिले से हैं, उसके बाद शिवमोग्गा और चिक्कमगलूर जिले का नंबर आता है। स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “हमने सभी एहतियाती कदम उठाए हैं और उन जिलों के अधिकारियों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं, जहां केएफडी के मामले सामने आए हैं, ताकि इसके प्रसार को रोका जा सके। अभी तक इस बीमारी के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है, इसलिए हमें अतिरिक्त सतर्क रहने की जरूरत है। संक्रमण को और फैलने से रोकने के लिए एहतियाती उपायों के बारे में जागरूकता पैदा की जा रही है। इससे पहले जो टीका लगाया जाता था, वह अप्रभावी पाया गया। इसलिए, हमने आईसीएमआर से टीकाकरण के लिए संपर्क किया है।”
बंदर बुखार (Monkey fever) , जिसे क्यसानूर फोरेस्ट डिजीज (केएफडी) के नाम से भी जाना जाता है, उन टिक्स के काटने से फैलता है जो बंदरों पर पाए जाते हैं। इस बीमारी का नाम उस जंगल के नाम पर पड़ा है जहां से इसे पैदा करने वाले वायरस की पहचान 1957 में पहली बार हुई थी। क्यसानूर वन कर्नाटक राज्य में है और वायरस, जो फ्लेविविरिडे वायरस परिवार से है, का नाम जंगल के नाम पर क्यसानूर फोरेस्ट डिजीज वायरस (केएफडीवी) रखा गया था। अमेरिकी सीडीसी का कहना है, “उसके बाद से, हर साल 400-500 मानव मामलों की सूचना मिली है।”
बंदर बुखार (Monkey fever) कैसे फैलता है? यह बीमारी उन टिक्स के काटने से फैलती है जो आमतौर पर बंदरों पर पाए जाते हैं।
मवेशियों के संपर्क में आने से भी यह बीमारी हो सकती है, जिन्हें टिक्स ने काटा हो।
मवेशियों के संपर्क में आने से भी यह बीमारी हो सकती है, जिन्हें टिक्स ने काटा हो।
बंदर बुखार: जानवरों से भी फैल सकता है ये रोग, रहें सतर्क!
कर्नाटक में बंदर बुखार के बढ़ते मामलों के बीच ये जानना जरूरी है कि सिर्फ बंदरों से ही नहीं, बल्कि टिक से काटे गए जानवरों के संपर्क से भी ये बीमारी फैल सकती है। इसका मतलब है कि मवेशियों जैसे गाय-भैंस से सावधानी बरतना भी जरूरी है।
कर्नाटक में बंदर बुखार के बढ़ते मामलों के बीच ये जानना जरूरी है कि सिर्फ बंदरों से ही नहीं, बल्कि टिक से काटे गए जानवरों के संपर्क से भी ये बीमारी फैल सकती है। इसका मतलब है कि मवेशियों जैसे गाय-भैंस से सावधानी बरतना भी जरूरी है।
लक्षण: बुखार और ठंड लगना
सिरदर्द
शरीर में दर्द
दस्त और उल्टी
गंभीर मामलों में खून आना
ये लक्षण टिक काटने के 3 से 8 दिन बाद दिख सकते हैं। ज्यादातर मरीज 1-2 हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में तेज सिरदर्द, मानसिक परेशानी, कंपकंपी और आंखों की समस्या भी हो सकती है।
सिरदर्द
शरीर में दर्द
दस्त और उल्टी
गंभीर मामलों में खून आना
ये लक्षण टिक काटने के 3 से 8 दिन बाद दिख सकते हैं। ज्यादातर मरीज 1-2 हफ्ते में ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ मामलों में तेज सिरदर्द, मानसिक परेशानी, कंपकंपी और आंखों की समस्या भी हो सकती है।
बचाव: जंगल या ऐसे इलाकों में जाने से बचें जहां बंदरों की मौतें हुई हों।
अगर जाना ही पड़े तो कीटनाशक स्प्रे का इस्तेमाल करें।
लंबी आस्तीन वाली शर्ट, पैंट और जूते पहनें, ताकि टिक शरीर पर न चढ़ सकें।
संदिग्ध लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
याद रखें: ये जानकारी सिर्फ जागरूकता के लिए है, चिकित्सकीय सलाह का विकल्प नहीं। स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या के लिए डॉक्टर से सलाह जरूरी है।
अगर जाना ही पड़े तो कीटनाशक स्प्रे का इस्तेमाल करें।
लंबी आस्तीन वाली शर्ट, पैंट और जूते पहनें, ताकि टिक शरीर पर न चढ़ सकें।
संदिग्ध लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।
याद रखें: ये जानकारी सिर्फ जागरूकता के लिए है, चिकित्सकीय सलाह का विकल्प नहीं। स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या के लिए डॉक्टर से सलाह जरूरी है।