छह साल तक चले इस शोध में सीएसआईआर-सेंट्रल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीएसआईआर-सीडीआरआई), सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड अरोमाटिक प्लांट्स (सीआईएमएपी) और सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च (सीबीएमआर), एसजीपीजीआईएमएस, लखनऊ के वैज्ञानिकों ने मिलकर काम किया।
शोधकर्ताओं का कहना है कि कैंसर की कोशिकाएं शरीर में पोषण लेने और काम करने का तरीका बदल लेती हैं। इस बदलाव को पहचान कर कैंसर को रोकने या उसके उपचार के लिए नई दवाएं बनाई जा सकती हैं।
डॉ. मधव नीलकंठ मुगले के नेतृत्व में हुई इस खोज से हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा (एचसीसी) नाम के लीवर कैंसर के रहस्यों को सुलझाने में भी मदद मिली है। इसके अलावा, इस शोध से लीवर कैंसर के खास इलाज के रास्ते भी खुलते हैं।
शोधकर्ताओं ने जानवरों पर अध्ययन किया, जिसमें यह देखा गया कि लीवर के कैंसर की कोशिकाएं कैसे काम करती हैं और शरीर में क्या बदलाव लाती हैं। उन्होंने पाया कि लीवर कैंसर होने पर शरीर का वजन कम हो जाता है, खून में कुछ एंजाइम की मात्रा बढ़ जाती है और लीवर के अंदर भी बदलाव होते हैं।
डॉ. मुगले ने बताया कि “हमने आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल करके कैंसर से ग्रस्त लीवर में कुछ खास प्रोटीन की मात्रा बढ़ने का पता लगाया है। इन प्रोटीनों की वजह से कैंसर की कोशिकाएं और तेजी से फैलती हैं। हमने स्टैट3-एनएफकेबी नाम के एक रास्ते का भी अध्ययन किया, जो कोशिकाओं के खाने और ऊर्जा लेने के तरीके को बदल देता है। इससे माइटोकॉन्ड्रिया कमजोर होते हैं और कोशिकाओं की खुदकुशी की प्रक्रिया रुक जाती है।”
उन्होंने आगे बताया कि परमाणु चुंबकीय अनुनाद (एनएमआर) नामक तकनीक का इस्तेमाल करके हमने पाया कि लीवर कैंसर बढ़ने पर कोशिकाओं में पोषण लेने और खर्च करने का तरीका बदल जाता है। शरीर एमिनो एसिड को इस्तेमाल करने का तरीका भी बदल देता है। ये बदलाव लीवर कैंसर बढ़ने के संकेत हो सकते हैं।
सीएसआईआर-सीडीआरआई की निदेशक डॉ. राधा रंगराजन ने कहा कि “इन खोजों से लीवर कैंसर के इलाज में बड़ी उम्मीदें जगी हैं। अब जल्द ही लीवर कैंसर रोगियों के लिए और बेहतर दवाएं और इलाज के तरीके खोजे जा सकते हैं।”
इस शोध से लीवर कैंसर के इलाज में क्रांति आ सकती है और मरीजों को नई उम्मीद मिल सकती है
(आईएएनएस)
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