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सीपीआर से बचाई जा सकती है जान, किन गलत तरीके से न दें

CPR का मतलब है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (Cardiopulmonary resuscitation) । यह भी एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड है। जब किसी पीड़ित को सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो

Nov 05, 2023 / 11:21 am

Manoj Kumar

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How to give CPR – Cardiopulmonary resuscitation

CPR का मतलब है कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन (Cardiopulmonary resuscitation) । यह भी एक तरह की प्राथमिक चिकित्सा यानी फर्स्ट एड है। जब किसी पीड़ित को सांस लेने में दिक्कत हो या फिर वो सांस न ले पा रहा हो और बेहोश जो जाए तो सीपीआर (CPR) से उसकी जान बचाई जा सकती है। बिजली का झटका लगने पर, पानी में डूबने पर और दम घुटने पर सीपीआर (CPR) से पीड़ित को आराम पहुंचाया जा सकता है। हार्ट अटैक यानी दिल का दौरा पड़ने पर तो सबसे पहले और समय पर सीपीआर दे दिया जाय तो पीड़ित की जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। सडक़ दुर्घटना के दौरान घायल व्यक्ति को इमरजेंसी में सीपीआर दिया जा सकता है।

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कार्डियो पल्मोनरी रीससिटेशन (CPR) एक आपातकालीन चिकित्सा प्रक्रिया है। सीपीआर किसी जानकार व्यक्ति, अस्पताल या समुदाय में अथवा आपातकालीन स्थिति में पेशेवर चिकित्सा सहायक द्वारा दी जा सकती है। सीपीआर का उद्देश्य मस्तिष्क और हृदय के ऊत्तकों को बचाए रखने के लिए रक्त और ऑक्सीजन का प्रवाह बनाए रखना होता है।
सीपीआर (CPR) देने में डरे नहीं और जितनी जल्दी हो सके शुरू करें क्योंकि पहले कुछ सेकंड से लेकर 10 मिनट तक का समय बेहद जोखिम भरा होता है।
सीपीआर (CPR) में वयस्कों के लिए दोनों हाथों की हथेलियों का प्रयोग किया जाता है, जबकि बच्चों के लिए सिर्फ एक हाथ और शिशु के लिए केवल दो अंगुलियों का प्रयोग करें।

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सीपीआर (CPR) में 30 दबाव के बाद दो बार मुंह से सांस देने की प्रक्रिया की जाती है। यदि मुंह से सांस नहीं दे पा रहे तो प्रति मिनट 100 बार की गति से दबाव देना जारी रखें। रीससिटेशन के लिए बनी अंतरराष्ट्रीय समिति द्वारा सीपीआर दबाव-मुंह से सांस देने का अनुपात (30:2) के अनुसार रखने की सिफारिश की गई है।
How to give CPR सीपीआर कैसे देते हैं
– सीपीआर देने में सबसे पहले पीड़ित को किसी ठोस जगह पर लिटा दिया जाता है और प्राथमिक उपचार देने वाला व्यक्ति उसके पास घुटनों के बल बैठ जाता है।
– उसकी नाक और गला चेक कर ये सुनिश्चित किया जाता है कि उसे सांस लेने में कोई रुकावट तो नहीं है। जीभ अगर पलट गयी है तो उसे सही जगह पर उंगलियों के सहारे लाया जाता है।
– सीपीआर में मुख्य रुप से दो काम किए जाते हैं। पहला छाती को दबाना और दूसरा मुँह से सांस देना जिसे माउथ टु माउथ रेस्पिरेशन कहते हैं। पहली प्रक्रिया में पीड़ित के सीने के बीचोबीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए दबाया जाता है। एक से दो बार ऐसा करने से धड़कनें फिर से शुरू हो जाएंगी। पंपिंग करते समय दूसरे हाथ को पहले हाथ के ऊपर रख कर उंगलियो से बांध लें अपने हाथ और कोहनी को सीधा रखें।

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– अगर पम्पिंग करने से भी सांस नहीं आती और धड़कने शुरू नहीं होतीं तो पम्पिंग के साथ मरीज को कृत्रिम सांस देने की कोशिश की जाती है। ऐसा करने के लिए हथेली से छाती को 1 -2 इंच दबाएं, ऐसा प्रति मिनट में 100 बार करें। सीपीआर में दबाव और कृत्रिम सांस का एक खास अनुपात होता है। 30 बार छाती पर दबाव बनाया जाता है तो दो बार कृत्रिम साँस दी जाती है। छाती पर दबाव और कृत्रिम साँस देने का अनुपात 30 :02 का होना चाहिए। कृत्रिम सांस देते समय मरीज की नाक को दो उंगलियों से दबाकर मुंह से साँस दी जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि नाक बंद होने पर ही मुंह से दी गयी सांस फेफड़ों तक पहुंच पाती है।

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– सांस देते समय ये ध्यान रखना है कि फर्स्ट एड देने वाला व्यक्ति लंबी सांस लेकर मरीज के मुंह से मुंह चिपकाए और धीरे धीरे सांस छोड़ें। ऐसा करने से मरीज के फेफड़ों में हवा भर जाएगी। इस प्रक्रिया में इस बात का भी ध्यान रखना होता है कि जब कृत्रिम सांस दी जा रही है तो मरीज की छाती ऊपर नीचे हो रही है या नहीं। ये प्रक्रिया तब तक चलने देनी है जब तक पीड़ित खुद से सांस न लेने लगे। जब मरीज खुद से साँस लेने लगे, तब ये प्रकिया रोकनी होती है।

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– अगर आप किसी बच्चे को सीपीआर दे रहे हैं तो विधि में थोड़ा सा बदलाव करना पड़ता है। बच्चों की हड्डियों की शक्ति बहुत कम होती है इसलिए दबाव का विशेष ध्यान रखा जाता है। अगर 1 साल से कम बच्चों के लिए सीपीआर देना हो तो सीपीआर देते वक़्त ध्यान रखे 2 या 3 उंगलियों से ही छाती पर दबाव डालें और छाती पर दबाव और कृत्रिम सांस देंने का अनुपात 30 :02 ही रखें।
डिसक्लेमरः इस लेख में दी गई जानकारी का उद्देश्य केवल रोगों और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति जागरूकता लाना है। यह किसी क्वालीफाइड मेडिकल ऑपिनियन का विकल्प नहीं है। इसलिए पाठकों को सलाह दी जाती है कि वह कोई भी दवा, उपचार या नुस्खे को अपनी मर्जी से ना आजमाएं बल्कि इस बारे में उस चिकित्सा पैथी से संबंधित एक्सपर्ट या डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें।

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