भारत में इस बीमारी को गंभीरता से न लेने के कारण भारत में ज़्यादातर लोग इन सब लक्षणों को उम्र बढ़ने का स्वाभाविक अंश समझते हैं, या सोचते हैं कि यह तनाव के कारण है या व्यक्ति का चरित्र बिगड गया है। पर यह सोच गलत है। ये लक्षण डिमेंशिया या अन्य किसी बीमारी के कारण भी हो सकते हैं। ऐसे में इसलिए डॉक्टर से सलाह लेना बहुत जरूरी होता है।
क्या है बुढ़ापा और डिमेंशिया में अंतर डिमेंशिया से ग्रस्त व्यक्ति के साथ रहना किसी अन्य स्वस्थ बुज़ुर्ग के साथ रहने से बहुत फ़र्क है। डिमेंशिया की वजह से व्यक्ति के सोचने-करने की क्षमता पर बहुत असर होता है। और परिवार वालों को देखभाल के तरीके उसके अनुसार बदलने होते हैं। व्यक्ति से बातचीत करने का, उसकी सहायता करने का, और उसके उत्तेजित या उदासीन मूड को संभालने का तरीका बदलना होता है। समय के साथ रोग के कारण मस्तिष्क में बहुत अधिक हानि हो जाती है।
इस बीमारी के इलाज के तरीकेदुर्भाग्यवश, इस बिमारी का अभी तक कोई इलाज नहीं है । और वैज्ञानिक अभी भी इस बीमारी के कारणों की खोज कर रहे हैं। यदि मस्तिष्क में कोशिकाएं काम करना बंद कर देती हैं और इसको रोका नहीं जा सकता है, तो डिमेंशिया के लिए अभी तक कोई इलाज नहीं विकसित नहीं हो पाया है।