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इंजेक्शन की सुई से आपको भी लगता है डर, तो ये खबर आपके लिए ही है…

इंजेक्शन की निडिल से बच्चे व महिलाएं ही नहीं युवा और बुजुर्ग भी डरते हैं। मेडिकल की भाषा में इसे ट्रिपैनो फोबिया कहा जाता है। इस फोबिया के कारण कई लोग इंजेक्शन के बदले डॉक्टर्स के दवा मांगते हैं। इससे मरीज का इलाज भी प्रभावित होता है। बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष और पेन के डॉ. सर्वेश जैन ने इस समस्या से निजात दिलाने और दर्द रहित इंजेक्शन लगाने का एक तरीका खोजा है।

सागरApr 29, 2024 / 09:22 pm

Murari Soni

sagar bmc news

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बिना दर्द व एहसास के सुई लगाने बीएमसी के डॉक्टर ने इजात किया तरीका

सागर. इंजेक्शन की निडिल से बच्चे व महिलाएं ही नहीं युवा और बुजुर्ग भी डरते हैं। मेडिकल की भाषा में इसे ट्रिपैनो फोबिया कहा जाता है। इस फोबिया के कारण कई लोग इंजेक्शन के बदले डॉक्टर्स के दवा मांगते हैं। इससे मरीज का इलाज भी प्रभावित होता है। बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के विभागाध्यक्ष और पेन के डॉ. सर्वेश जैन ने इस समस्या से निजात दिलाने और दर्द रहित इंजेक्शन लगाने का एक तरीका खोजा है। इसमें अन्य चिकित्सकीय उपकरणों की मदद से दिमाग को गुमराह कर बिना दर्द व अहसास सुई लगा दी जाती है और मरीज को पता ही नहीं चलता।अपने इस आविष्कार को किसी भी तरीके से पेटेंट के बंधन में बांधने का विरोध करते हुए डॉ. जैन ने इसको “जैन ट्रीपेनोगार्ड” नाम दिया है। इस सुई लगाने के तरीके में एक वाइब्रेशन करने वाले मैटेलिक पेन और एनेस्थीसिया देने के लिए इस्तेमाल होने वाली पुरानी दवाई इथाइल क्लोराइड का स्प्रे किया जाता है। जिससे दर्द बिल्कुल नहीं होता। उन्होंने दावा किया कि सैकड़ों-हजारों बार प्रयोग करने के बाद महिलाओं और बच्चों में यह काफी पॉपुलर है।

गेट कंट्रोल थ्योरी ऑफ पेन

यह पद्धति “गेट कंट्रोल थ्योरी ऑफ पेन” के सिद्धांत पर काम करती है। जिसके अनुसार स्पाइनल कॉर्ड से ब्रेन तक दर्द का सिग्नल ले जाने के दौरान एक गेट में से तरंगों को निकलना रहता है, लेकिन यदि उसी संकरे गेट से हम पहले से ही इथाइल क्लोराइड का स्प्रे से निम्न तापमान जो कि करीब 0 डिग्री होता है सुई लगाने वाले स्थान पर कर देते हैं और मैटेलिक पेन के कंपन की तरंगों को जाने दे तो सुई लगाने के पेन की तरंगें ऊपर तक पहुंच ही नहीं पाएंगी। अर्थात मरीज को दर्द नहीं होगा।

कोई दुष्प्रभाव नहीं-

डॉक्टर की माने तो मैटेलिक पेन के कंपन और इथाइल क्लोराइड स्प्रे से मरीज व शरीर को कोई नुकसान की आशंका नहीं है। इथाइल क्लोराइड स्प्रे को 5-10 मिनट सूखने पर बेहोश होने का खतरा रहता है लेकिन यह आशंका भी शून्य है क्योंकि इसका उपयोग डॉक्टर की क्लीनिक व अस्पताल में होता है जो कि बच्चों व लोगों की पहुंच से दूर रहता है।

थैरेपी से भी दूर किया जा सकता है सुई का डर-

ट्रिपैनो फोबिया वाले अधिकांश लोगों को डॉक्टर्स मनोचिकित्सक के पास पहुंचाते हैं। ऐसे लोगों में कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) या एकस्पोजर थेरेपी के माध्यम से निडिल को लेकर असामान्य डर कम किया जाता।

ट्रिपैनो फोबिया का कारण डॉक्टर्स भी नहीं जानते-

निडिल से डर की असली बजह तो डॉक्टर्स भी नहीं बता पाते लेकिन माना जाता है कि जीवन से जुड़े पुराने अनुभवों के कारण यह फोबिया हो सकता है। निडिल से पहले आघात अनुभव होना। बचपन में किसी बीमारी के चलते बहुत ज्यादा इंजेक्शन लेना पड़ा हो। यह समस्या आनुवांशिक भी हो सकती है। सुई देखकर डरने की समस्या विशेषज्ञ सामान्य बताते हैं लेकिन निडिल देखते ही आंख बंद कर लेना, चीखना, चक्कर, बेहोशी, घबराहट, हाई ब्लड प्रेशर इलाज प्रभावित कर देतीं हैं।
-मैं काफी दिनों से सुई लगाने का यह तरीका सुई से डरने वाले मरीजों पर आजमा रहा हूं। बच्चे और महिलाएं ज्यादा संतुष्ट हैं। इसके लिए मुझे वाइब्रेशन उत्पन्न करने वाला पेन तो ऑनलाइन मिल गया लेकिन समस्या इथाइल क्लोराइड स्प्रे की थी। पुरानी दवा होने के कारण स्प्रे तैयार करवाने काफी प्रयास करने पड़े।
डॉ. सर्वेश जैन, विभागाध्यक्ष बीएमसी

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