ये जानकारी अमेरिकी जर्नल ऑफ इंफेक्शन कंट्रोल (एजेआईसी) में प्रकाशित एक शोधपत्र से मिली है. इस शोध में जापान के टोक्यो स्थित तोहो यूनिवर्सिटी ओमोरी मेडिकल सेंटर के बच्चों के वार्ड में साल 2016 से 2017 के दौरान हुए एक संक्रमण की जांच की गई थी.
शोधकर्ताओं ने पाया कि इस वार्ड में भर्ती बच्चों में एक खतरनाक बैक्टीरिया, कार्बापेनेम-उत्पादक एंटरोबैक्टीरियल्स (सीपीई) का संक्रमण फैल गया था. जून 2016 में एक साल के बच्चे में सबसे पहले सीपीई का संक्रमण पाया गया था. इसके बाद नौ महीने में ही 15 साल का एक और बच्चा भी इसी बैक्टीरिया से संक्रमित हो गया. धीरे-धीरे यह संक्रमण 19 बच्चों तक फैल गया.
जांच में पता चला कि वार्ड के 9 सिंक सीपीई से दूषित थे. इनमें से 6 सिंक उन कमरों से थे जहां सीपीई से संक्रमित बच्चे भर्ती थे. बाकी 3 सिंक नर्स स्टेशन, कचरे के कमरे और बर्फ बनाने की मशीन से मिले.
चौंकाने वाली बात ये है कि शोधकर्ताओं ने पूरे वार्ड के सिंकों को बदलकर उनकी अच्छी तरह से सफाई भी करवाई, लेकिन सीपीई का संक्रमण फैलता रहा. जीनोम विश्लेषण से पता चला कि अस्पताल के वातावरण में एक बैक्टीरिया से दूसरे बैक्टीरिया में दवाओं को खत्म करने की क्षमता फैल रही थी.
शोधकर्ताओं का मानना है कि संभवत: नालियों और पाइपों के जरिए एक सिंक से दूसरे सिंक में भी ये खतरनाक बैक्टीरिया फैल रहे थे. इस संक्रमण को रोकने के लिए अस्पताल ने कई सख्त कदम उठाए. मसलन, सिंक इस्तेमाल करने के बाद हाथ साफ करना, सिंक साफ करने के लिए डिस्पोजेबल चीजों का इस्तेमाल करना, सिंक के पानी से मुंह धोने पर रोक लगाना, सिंक के पानी से भीगी किसी भी चीज को कीटाणुरहित करना और सुखाना शामिल है.
अक्टूबर 2017 में आखिरकार इस संक्रमण को रोका जा सका. शोधकर्ताओं का कहना है कि अस्पताल के वार्डों में सिंकों और पानी वाले इलाकों की साफ-सफाई पर विशेष ध्यान देना जरूरी है ताकि भविष्य में ऐसे संक्रमणों को रोका जा सके.