नई दिल्ली। देश में करीब 14 हजार से अधिक लोगों में दुर्लभ बीमारियों की पहचान हो चुकी है। इनसे लड़ाई के लिए सरकार ने नीति बनाई, बजट भी निर्धारित किया, लेकिन क्राउड फंडिंग के भरोसे ही अधिकांश काम है। इसके अलावा राजस्थान के कई मरीजों के परिजनों को जयपुर में दवाएं व इंजेक्शन मिलना बंद हो गया है। ऐसे में उन्हें अब दिल्ली तक का फेरा लगाना पड़ रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आजीवन चलने वाली बीमारियों को दुर्लभ बीमारियों को श्रेणी में रखा है। यह प्रति 1,000 लोगों में से 1 या उससे कम को प्रभावित करती हैं। भारत में करीब 55 चिकित्सा स्थितियों को दुर्लभ बीमारियों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इनमें जिनमें गौचर रोग, लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर, टायसोनेमिया, मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के कई रूप शामिल है। ऐसा बताया जाता है कि दुर्लभ बीमारियों के लिए 5 फीसदी से भी कम उपचार उपलब्ध हैं, जिसके चलते 10 में से केवल 1 मरीज को रोग-विशिष्ट देखभाल मिलती है। साथ ही इलाज की लागत भी बहुत ज्यादा आती है। यही वजह है कि दिल्ली हाइकोर्ट के निर्देश पर केन्द्र सरकार ने 2021 में राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति बनाकर पीडि़त रोगों को वित्तीय मदद देनी शुरू की। हालांकि यह मदद भी कम साबित हुई और सरकर को भी क्राउड फंडिंग का सहारा लेना पड़ा है। वहीं वित्तीय मदद लेना भी पीडि़तों के लिए आसान नहीं है। यही वजह है कि वो बार-बार कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं।
पोर्टल पर कर सकते हैं दान
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार मंत्रालय ने दुर्लभ बीमारियों के रोगियों की मदद के लिए अलग से पोर्टल बना रखा है। यहां करीब 2342 मरीजों का रजिस्ट्रेशन हुआ है। इनमें से 50 मरीज ऐसे हैं, जिनको तत्काल मदद की दरकार है। राजस्थान के जोधपुर एम्स में 116 और भोपाल के एम्स में 20 मरीजों का रजिस्ट्रेशन है। मरीजों के फोटो, उनके परिजनों के मोबाइल नंबर, पते, बीमारी का नाम, उपचार की अनुमानित लागत, बैंक विवरण की जानकारी उपलब्ध है। दानदाता अपने अनुसार उपचार केन्द्र और रोगियों के उपचार को चुन सकते हैं।दुर्लभ बीमारियों के रूप
दुर्लभ बीमारियों के उपलब्ध इलाज विकल्पों की प्रकृति और जटिलता के आधार पर तीन समूहों में विभाजित किया है। 1. समूह 1: जिनका इलाज एक बार के उपचार से किया जा सकता है। 2. समूह 2: जिनके लिए दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता। यह अपेक्षाकृत कम महंगे होते हैं, लेकिन रोगियों को नियमित जांच की आवश्यकता 3. समूह 3: जिनके लिए प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं, लेकिन वे महंगे होते हैं और अक्सर जीवनभर चलते हैं।
ऐसे बढ़ता गया बजट
वित्तीय वर्ष | बजट करोड़ में |
2021-22 | 3.15 |
2022-23 | 34.99 |
2023-24 | 74.0 |
2024-25 | 24.20 |
उपकरण खरीद | 35 करोड़ |