जापान साइंस एंड टेक्नोलॉजी एजेंसी (JST) की टीम ने झींगा-मछली जैसे जीवों में पाए जाने वाले एक तत्व का इस्तेमाल किया है। यह तत्व SARS-CoV-2 वायरस के प्रोटीन के साथ मिलकर रोशनी देता है, जिससे पता चलता है कि व्यक्ति संक्रमित है।
आमतौर पर रोशनी पैदा करने के लिए लूसिफेरिन और लूसिफरेज़ नामक दो तत्वों की जरूरत होती है। लेकिन, IPT नामक एक विशेष प्रकार का लूसिफेरिन अन्य प्रोटीन के साथ भी मिलकर चमक सकता है।
JST के वैज्ञानिकों ने सोचा कि इस IPT लूसिफेरिन का इस्तेमाल कोरोना वायरस के स्पाइक प्रोटीन के साथ किया जा सकता है, जो वायरस को कोशिकाओं में घुसने में मदद करता है। उन्होंने 36 अलग-अलग IPT लूसिफेरिन का परीक्षण किया और पाया कि सिर्फ एक ही तत्व, जो ‘साइप्रिडिना’ नामक छोटे जीव से लिया गया था, रोशनी देता है।
फिर उन्होंने इस तत्व को स्पाइक प्रोटीन के साथ मिलाकर देखा। 10 मिनट के बाद, एक मशीन की मदद से प्रकाश की मात्रा को मापा गया, जो कि नग्न आंखों से नहीं देखी जा सकती थी।
इसके बाद उन्होंने यह भी पाया कि यह IPT लूसिफेरिन अन्य 6 प्रोटीन के साथ नहीं चमकता था, जो लार में पाए जाते हैं। अंत में, टीम ने पाया कि यह लूसिफेरिन वैक्सीन डेवलपमेंट में इस्तेमाल होने वाली तकनीक के समान ही सटीकता के साथ लार में स्पाइक प्रोटीन की मात्रा का पता लगा सकता है।
हालांकि, यह टेस्ट सिर्फ एक मिनट में नतीजा देता है, जो कि मौजूदा रेपिड टेस्ट से काफी तेज है। इस तकनीक का इस्तेमाल भविष्य में इन्फ्लुएंजा, MERS-CoV और अन्य कोरोना वायरस जैसे स्पाइक प्रोटीन वाले वायरसों का पता लगाने के लिए भी किया जा सकता है।
तो, यह एक रोमांचक खोज है जो हमें कोरोना के खिलाफ लड़ाई में और मजबूत बना सकती है!