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एक चमत्कारी खोज बनती जा रही है बड़ा स्वास्थ्य संकट, नहीं संभले तो चुकानी होगी बड़ी कीमत

Antibiotic misuse in India : एंटीबायोटिक्स को लंबे समय से जीवनरक्षक दवाओं के रूप में देखा जाता है, जो बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों का इलाज करने में सक्षम हैं और पहले गंभीर बीमारियों या मृत्यु का कारण बनती थीं। 1893 से एंटीबायोटिक्स ने सिफलिस जैसी बीमारियों को ठीक किया और आधुनिक चिकित्सा को बदलते हुए औसत मानव आयु को 23 साल बढ़ा दिया।

जयपुरOct 07, 2024 / 01:50 pm

Manoj Kumar

Antibiotic misuse in India

Antibiotic misuse in India

Antibiotic misuse in India : एंटीबायोटिक दवाओं को जीवनरक्षक औषधियां माना जाता है, जो बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों का इलाज कर सकती हैं। 1893 से एंटीबायोटिक्स (Antibiotic) ने कई घातक बीमारियों को ठीक किया और आधुनिक चिकित्सा में क्रांति ला दी। इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण पेनिसिलिन है, जिसे 1929 में स्कॉटलैंड के बैक्टीरियोलॉजिस्ट अलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने खोजा था। पेनिसिलिन का उपयोग रक्त विषाक्तता (सेप्टीसीमिया) जैसे गंभीर संक्रमणों के उपचार में महत्वपूर्ण साबित हुआ।

Antibiotic misuse in India : स्वर्ण युग से संकट की ओर

20वीं शताब्दी के मध्य तक एंटीबायोटिक्स (Antibiotic) की खोज और विकास का स्वर्ण युग जारी रहा। हालांकि, 1950 के दशक के बाद से एंटीबायोटिक्स की खोज में गिरावट आई और जल्द ही ये दवाएं कई रोगजनकों के खिलाफ प्रभावी रूप से काम करना बंद कर दीं। आज, एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर), जिसमें एंटीबायोटिक (Antibiotic) प्रतिरोध भी शामिल है, एक “मूक महामारी” का रूप ले चुका है। यह समस्या न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया में गंभीर रूप से उभर रही है।

एंटीबायोटिक्स के अंधाधुंध उपयोग का प्रभाव The impact of indiscriminate use of antibiotics

भारत में, एंटीबायोटिक (Antibiotic) दवाओं को बिना किसी पर्चे के आसानी से खरीदा जा सकता है। कई बार बुखार, खांसी, सर्दी, या दस्त जैसी स्थितियों में, जो आमतौर पर वायरल होती हैं, एंटीबायोटिक्स (Antibiotic) का बिना सोचे-समझे उपयोग किया जाता है। हरियाणा और तेलंगाना में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि कई रिटेल फ़ार्मेसियों में एंटीबायोटिक्स बिना पर्चे के ही बेची जा रही हैं।
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आत्म-चिकित्सा और गलत जानकारी का खतरा

भारत में एंटीबायोटिक्स (Antibiotic) के गलत उपयोग का एक प्रमुख कारण जागरूकता की कमी और आत्म-चिकित्सा का प्रचलन है। लोग अक्सर अपनी मर्जी से एंटीबायोटिक्स खरीद लेते हैं और गलत खुराक या अनावश्यक दवाएं लेते हैं। इसके अलावा, कई बार मरीज डॉक्टरों पर भी दबाव डालते हैं कि वे ऐसी बीमारियों के लिए एंटीबायोटिक्स लिखें, जिनके लिए इनकी जरूरत नहीं होती। इससे बैक्टीरिया में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है, जिससे एंटीबायोटिक्स बेअसर हो जाते हैं।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध: एक वैश्विक स्वास्थ्य संकट Antibiotic resistance: a global health crisis

एंटीबायोटिक प्रतिरोध (Antibiotic) एक गंभीर वैश्विक स्वास्थ्य संकट बन चुका है। हाल ही में प्रकाशित लैंसेट अध्ययन के अनुसार, 2025 से 2050 के बीच एएमआर के कारण 39 मिलियन मौतें हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इस संकट को मान्यता दी है और इसे नियंत्रित करने के लिए कई कदम उठाए हैं।

एंटीबायोटिक्स का सही उपयोग Correct use of antibiotics

एंटीबायोटिक्स का सही उपयोग न केवल आवश्यक है बल्कि जीवन रक्षक भी हो सकता है। इनका उपयोग केवल चिकित्सक की सलाह पर करना चाहिए और निर्धारित खुराक को पूरा करना चाहिए। जब भी हमें एंटीबायोटिक्स की आवश्यकता हो, हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम उनकी पूरी खुराक लें ताकि संक्रमण पूरी तरह समाप्त हो सके और प्रतिरोधक क्षमता विकसित न हो।
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भारत में एंटीबायोटिक दवाओं का गलत उपयोग गंभीर स्वास्थ्य संकट पैदा कर रहा है। आत्म-चिकित्सा, जागरूकता की कमी, और कानूनों का पालन न करने से एंटीबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोधक क्षमता तेजी से बढ़ रही है। इसके लिए जागरूकता फैलाना, पर्चे के बिना एंटीबायोटिक्स की बिक्री पर सख्त नियम लागू करना, और चिकित्सकों द्वारा सही मार्गदर्शन देना अत्यंत आवश्यक है।

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