ब्लड हमेशा ब्लड बैंक से ही लें। साथ ही ब्लड बैग पर एक्सपायरी डेट आप खुद से भी चेक करें, केवल डॉक्टर या कंपाउंडर पर निर्भर न रहें। ब्लड हमेशा 2 तरह की डेट के साथ मिलता है। एक की एक्सपायरी डेट 35 दिन और दूसरे की 42 दिन होती है। पुराना ब्लड गई बीमारियों का कारण बन सकता है।
अगर इमरजेंसी में ब्लड नहीं चढ़ाया जा रहा तो मरीज को ब्लड चढ़ाने से पहले उसकी हिस्ट्री और कुछ रिएक्शन से जुड़ी जानकारी जरूर डॉक्टर को दें। यदि खून चढ़ाने के दौरान ही मरीज को बुखार, घबराहट, उल्टी या बहुत ठंड लगने लगे तो खून चढ़ाना रोक देना चाहिए। कई बार संक्रमित खून चढ़ने से बॉडी तुरंत रिएक्ट करने लगती है। नॉर्मल कंडीशन में खून की 15 से 20 बूंदे हर मिनट के हिसाब से मरीज को चढ़ाई जाती है। हालांकि मरीज की हालत देखकर स्पीड कम या ज्यादा की जाती है। शुरूआत में रिएक्शन देखने के लिये खून धीरे-धीरे चढ़ाया जाता है।
खून जब भी चढ़ाने की बात आए तो मरीज का सही ब्लड ग्रुप पता होना जरूरी है। साथ ही ब्लड सही ग्रुप का ही चढ़ाया जा रहा यह भी ध्यान देना होगा। ऐसा न होने पर उसकी जान भी जा सकती है। साथ ही जो ब्लड हटाया जाता है वो दोबारा इस्तेमाल न हो इसका भी ध्यान रखें। एक बार ब्लड की बॉटल यूज हो जाए तो बीच में किसी कारण वश बंद होने पर उसे दोबारा यूज में न लें।
खून चढ़ते समय पाइप में हवा बिलकुल न हो, यह आप भी सुनिश्चित जरूर करें। कई बार कंपाउडर या नर्स की लापरवाही से ड्रिप में हवा रह जाती है, जिससे मरीज की जान जा सकती है। खून की बॉटल जब खत्म होने वाली हो तो ड्रिप का स्विच ऑफ कर दें। ताकि बॉटल खत्म होने पर कही उल्टा खून बॉटल में न जाने लगे। इसलिए ड्रिप को बंद करना जरूर सीख लें।
जिस डोनर का खून लिया जा रहा है उसका सैंपल टेस्ट ट्यूब पर अपने सिग्नेचर करें। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि लेबल पर लिखी जानकारी सही हो। संक्रमण खून चढ़ने से हिपेटाइटिस बी, सी, एचआईवी आदि भी हो सकता है इसलिये सावधान रहें।
ब्लड अगर आपके नाते-रिश्तेदार या दोस्त डोनेट कर रहे तो उनकी मेडिकल हिस्ट्री जरूर जान लें। बीमारी न होने के बावजूद ब्लड की लैब टेस्ट कराएं, ताकि अनजानें में कोई छिपी बमारी मरीज में जाने पाएं। साथ ही वही ब्लड डोनेट कर रहा हो जो 48 घंटे के दौरान कोई मेडिसिन या अल्कोहल आदि न लिया हो।