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जी हां, झारखंड के दुमका जिले में सरकार स्कूल के हेडमास्टर सपन पत्रलेख ने यह संभव कर दिखाया है। दरअसल कोरोना के दौर में ऑनलाइन पढ़ाई को बढ़ावा मिला है पर मोबाइल व इंटरनेट नहीं होने से हर बच्चे तक इसकी पहुंच नहीं है। जिला मुख्यालय से 40 किलो मीटर दूर जरमुंडी ब्लॉक स्थित डुमरथर मिडिल स्कूल में 290 बच्चे पढ़ते हैं। गांव में इंटरनेट सेवा नहीं है। लंबे समय से स्कूल बंद होने की वजह से बच्चों की पढ़ाई भी प्रभावित हो रही थी। इस पर हेडमास्टर सपन पत्रलेख ने एक युक्ति खोज निकाली। उन्होंने हर बच्चे के लिए दिवार पर अलग ब्लैक बोर्ड बनवा दिया। 50—50 के समूह में बच्चों को बुलाया जाता है। हर बच्चे का अपना ब्लैक बोर्ड है। यह एक निश्चित दूरी पर बने हुए हैं। शिक्षक भी अलग-अलग पारी में आकर बच्चों को पढ़ाते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान भी करते है।
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इस बारे में बताते हुए स्कूल हेडमास्टर सपन पत्रलेख ने कहा कि स्कूल लंबे समय से बंद था। आगे भी स्कूल बंद रहने से छात्रों ने जो भी पढ़ा वह भूल सकते हैं। गांवों में इंटरनेट और मोबाइल सेवा उपलब्ध नहीं है जिससे ऑनलाइन क्लास ली जा सके। ऐसे में इस तरह पढ़ाने की योजना पर काम किया गया। आदिवासी बच्चे दीवार पर चित्रकारी करना जल्दी सीख जाते है, इसलिए गांव की दीवारों पर ही ब्लैक बोर्ड बना दिए गए। बच्चे भी इस प्रयोग के बाद स्कूल की तरफ खींचे चले आए। ज्यादातर बच्चों के ब्लैक बोर्ड उनकी घर की दीवार पर ही है तो स्कूल का समय होने पर वह तैयार होकर पढ़ने बैठ जाते हैं। चार जगह चिन्हित कर गांवासियों की मदद से पढ़ाने का स्थान बनाया गया है। हेडमास्टर के अलावा स्कूल में चार शिक्षक है। वह पारियों में अलग-अलग जगह जाकर लाउड स्पीकर से बच्चों को पढ़ाते हैं और उनकी समस्याओं का समाधान करते हैं।
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हेडमास्टर और उनके साथी शिक्षकों की इस पहल को काफी सराहा जा रहा है। मीडिया व सोशल मीडिया पर इनके इस कदम की चर्चा है। सीएम हेमंत सोरेन, जिला उपायुक्त और नीति आयोग तक इस कार्य की वाहवाही कर रहा है। हेडमास्टर पत्रलेख ने यह भी बताया कि डिप्टी कमिश्नर भी इन्हें समय-समय पर निर्देश देते रहे जिससे कक्षाएं आयोजित करने में आसानी हुई।