हाथरस

Krishna Janmashtami श्रीकृष्ण के जन्म के कुछ घंटों बाद हुआ था इस शहर का जन्म, पढ़िए ‘बृज की देहरी’ के बारे में रोचक कथा

भगवान शंकर श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए जाते समय माता पार्वती के साथ हाथसस में रुके थे। ‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ में ‘हाथरस’ के नामकरण का जिक्र।

हाथरसSep 03, 2018 / 01:56 pm

Bhanu Pratap

Krishna Janmashtami

हाथरस। हाथरस नगर की असली आधाशिला रखे जाने की पांच हजार वर्ष पुरानी वर्षगांठ है। हालांकि वैदिक इतिहास को उठाकर देखें तो ‘‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’’ में ‘‘हाथरस’’ के नामकरण का जिक्र मिलता है। जिसमें तिथि के हिसाब से द्वापर युग में भादों मास की नवमीं और दसमीं तिथि के मौके पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ यहां पर आए थे। माता पार्वती को अपने हाथ से रसपान कराया था। इसलिए इस नगरी का नाम ‘‘हाथरस’’ पड़ा।
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माता पार्वती का विश्राम स्थल

श्रीकृष्णजन्म और हाथरस का आपस में बहुत ही पुराना नाता रहा है। दरअसल हाथरस नगरी से ही ब्रज का प्रारंभ होना बताया जाता है। धर्मवेत्ता स्व. सुरेशचंद्र मिश्र जी ने अपने कई कार्यक्रमों में वक्तव्य देते हुए पौराणिक आधार पर यह सिद्ध भी किया था कि हाथरस नगरी माता पार्वती का विश्राम स्थल है। क्योंकि श्रीकृष्ण जन्म के चंद घंटों बाद ही बृज में यानी नंदरायजी के यहां पर आसपास के नगरों के अलावा सुर, गंधर्व, देवता, नाग, किन्नर सभी का जमावड़ा होने लग गया था।
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इसलिए पड़ा हाथरस नाम

मुख्य कारण प्रभु श्रीकृष्ण के अवतरण पर उनके दर्शनों का ही था। प्रसंग के मुताबिक अपने आराध्य श्री हरि का नंद के यहां पर अवतरण की जानकारी होने पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ भगवान श्रीकृष्ण के दर्शनार्थ निकले थे। प्रभु की लीला थी और उनक दर्शन शिवबाबा को करने थे। इसलिए मां पार्वती को इसी धरा पर यानि ‘‘हाथरस’’ पर मां पार्वती को विश्राम के लिए कहा। प्रसंग आता है कि इसी दौरान मां पार्वती को प्यास लगने पर भगवान शिव ने इसी धरा से अपने हाथों से जल निकाल कर पिलाया था। इसलिए ही इस धरा का नाम मां पार्वती के माध्यम से ही ‘‘हाथरस’’ रखा गया और बाद में यह प्रचलित भी हुआ। वृतांत के मुताबिक यहां से भगवान शिव ने नंदगांव से चंद दूरी पर आस लगा कर धूनी जमाई थी। तभी से वहां पर आश्वेश्वर महादेव के नाम से विश्वविख्यात हुए।
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ब्रज की देहरी

ज्योतिषविद और भागवताचार्य उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी का कहना है कि ‘‘हाथरस’’ का नाथा श्रीकृष्ण जन्म से जुड़ा है। इसका पौराणिक आधार है ब्रह्मवैवर्त पुराण।इस पुराण में इसका साफ साफ उलेख भी लिखा हुआ है। यहीं से ब्रज आरंभ होता है। इसलिए हाथरस को बृज का द्वार या बृज देहरी कहा जाता है। हाथरस में एक जगह का नाम देहरी भी, जिसका नाम वर्तमान में देहली वाला मोहल्ला पड़ा है।
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