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भाई के सलाह पर खेलना शुरू किया हॉकी भारतीय हॉकी टीम के कोच पीयूष के पिता गवेंद्र सिंह दुबे सरकारी नौकरी में थे और इनकी माता भी स्कूल में बच्चों को पढ़ाती थीं। 1994 में पिता गवेंद्र की पोस्टिंग प्रयागराज में थी। बड़े भाई श्रवण दुबे की सलाह पर पीयूष ने हॉकी खेलना शुरू किया था। पीयूष ने स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) कोच प्रेमशंकर शुक्ला को अपना गुरु माना। कुछ ही दिनों में वह टीम के कप्तान बन गए। पीयूष ने प्रयागराज विवि और प्रदेश स्तर पर भी खेला है। कैसे कोच बने पीयूष ? पीयूष दुबे ने 2003 में पंजाब के पटियाला से कोच की परीक्षा पास की, उन्हें पहली पोस्टिंग भी पटियाला में ही मिली। 2004 में पीयूष दुबे वहां के केंद्रीय विद्यालय की हॉकी टीम के कोच बने। इसके बाद उन्होंने प्रयागराज विवि विद्यालय की हॉकी टीम की कोच के रूप में 2008 काम किया। यहां से पीयूष ने साई के कोच की परीक्षा में टॉप किया, इन्हें हरियाणा के सोनीपत स्थित सेंटर का कोच बनाया गया। यहां से पीयूष ने कई खिलाड़ियों को नेशनल, इंटरनेशनल के लिए तैयार किया।
गांव में जश्न का माहौल पीयूष दुबे की अगुवाई में ही पहली बार साई की टीम ने राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में पदक जीता है। इससे पहले कभी साई की टीम ने कोई पदक नहीं जीता था। 2019 से पीयूष लगातार भारतीय हॉकी टीम के कोच हैं। पीयूष की अगुवाई में ही 2020 टोक्यो ओलंपिक में बेहतरीन प्रदर्शन कर 4 दशक का सूखा खत्म किया और पदक दिलाया।
पीयूष के खून में है खेल पीयूष दुबे के अलावा भी उनके घर में खेल प्रेमी हैं। पीयूष के दादा खेमकरण सिंह दुबे अपने जमाने के बेहतरीन रेसलर थे। पीयूष के दादा की तरह ही उनके पिता गवेंद्र सिंह और भाई श्रवण कुमार दुबे भी रेसलर रहे हैं, तो वहीं उनके चाचा उदयवीर सिंह तैराक हैं। पीयूष के भाई लखन सिंह दुबे भी खेल से जुड़े हुए हैं। जबकि उनका भतीजा जगत युवराज दुबे मुक्केबाज है।