पर्यटकों को लुभा रहीं मकड़ाई की हरियाली वादियां
किला, मंदिर, तोप दिलाते हैं तत्कालीन रियासत की याद
पर्यटकों को लुभा रहीं मकड़ाई की हरियाली वादियां
सिराली. जिले की सबसे सुंदरवादियों में शामिल तत्कालीन रियासत मकड़ाई में बारिश शुरू होते ही पर्यटकों का आना शुरू हो गया हैं। जो जिला मुख्यालय से 40 किमी एवं तहसील मुख्यालय से 10 किमी की दूर गोंडवाना रियासत का प्रतीक भी है। मकड़ाई को सतपुड़ा के घने हरे भरे जंगलों ने घेर रखा है। बारिश शुरू होने के बाद हरियाली छा गई है। इसे देखने के लिए जिले के अलावा अन्य जिले के पर्यटक सैकड़ों की संख्या में आकर सतपुड़ा की सुंदर वादियों को निहार रहे हैं।
लकड़ी से बना है रामजानकी मंदिर-
मकड़ाई किला जीर्ण शीर्ण अवस्था में पहुंच चुका है, लेकिन इसकी विशाल दीवारें आज भी महल की याद दिलाती है। यहां का रामजानकी मंदिर लकड़ी से बना है। जो रियासत कालीन कारीगरों की उत्कृष्ट कारीगरी को दर्शाता है। मंदिर के सामने रखी दो तोपों में एक अष्ट धातु से बनी है। रियासत कालीन डाक बंगला अब वन विभाग के रेस्ट हाउस में तब्दील कर दिया गया है। रियासतकालीन कचहरी स्कूल में तब्दील हो गई है। भगवान शंकर दो जगह विराजमान है। पीर बाबा की दरगाह भी है। सयानी नदी ने मकड़ाई को तीनों ओर से घेर के रखा है। जो इसकी पहरेदारी कर रही है।
सतपुड़ा की चोटी पर विराजमान है सुल्या बाबा –
मकड़ाई से मात्र 5 किलोमीटर की दूरी पर सतपुड़ा पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है। इसकी समुद्र तल से ऊंचाई 567 मीटर है। जिस पर आदिवासियों के कुल देवता के रूप में पूजे जाने वाले सुल्या बाबा विराजमान है। जिन्हें आदिवासियों की आस्था का प्रतीक माना जाता है। पास ही मां कालिका का मंदिर है। वह भी क्षेत्रवासियों की आस्था का केन्द्र है। यहां लोग अपनी मन्नत मांगते हैं। मन्नत पूरी होने पर महिलाएं मां कालिका के मंदिर में सुहाग का सामान चढ़ाती है। बाबा के स्थान पर भी पशु बलि देने का रिवाज भी है। सुल्या बाबा समिति विगत कुछ सालों से यहां पर मेले का आयोजन करती है। इसमें दूरदराज से दुकानें भी आती है। आदिवासी खरीदी कर बाबा के दर्शन करते हैं।
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