सावन सोमवार- बालागांव के बालेश्वर महादेव मंदिर में एक ही स्थान पर होते है 12 ज्योतिर्लिंग के दर्शन
बालागांव. जिले के ग्रामीण अंचल में एक गांव ऐसा भी है जहां 12 ज्योतिर्लिंग विराजमान है। यहां सावन माह एवं महाशिवरात्रि पर हजारों श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि एवं सावन माह में भगवान भालेनाथ के 12 स्वरूपों के दर्शन करने से व्यक्ति की नकारात्मकता खत्म हो जाती हैं और सकारात्मक विचार अंतरात्मा में विद्यमान हो जाते हैं। बालागांव में उत्तर मुखी बालेश्वर महादेव मंदिर में एक ही स्थान पर 12 ज्योतिर्लिंग स्थापित हैं। मंदिर समिति द्वारा सावन माह में भगवान बालेश्वर महादेव एवं 12 ज्योतिर्लिंगों का दुग्ध अभिषेक किया जाता है। इसके बाद आकर्षक शृंगार किया जाता है।
क्यों और कैसे हुई 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना
जानकारी के मुताबिक भगवान बालेश्वर महादेव के मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान चल रहा था। इस दौरान ग्रामीणों ने आपस में विचार विमर्श कर एक ही स्थान पर भगवान के १२ स्वरूपों की स्थापना करने का निर्णय लिया। इससे ग्रामीण एक ही स्थान पर 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कर सके। ग्रामीणों के सहयोग से विगत कुछ वर्ष पूर्व भगवान महादेव के 12 ज्योतिर्लिंगों को स्थापित किया गया।
मंदिर परिसर में होते हैं धार्मिक अनुष्ठान-
शंकर मंदिर प्रांगण में साल भर सामाजिक एवं धार्मिक कार्यक्रम व अनुष्ठान होते हैं। इसमें प्रमुख रूप से महाशिवरात्रि पर्व, श्री रामलीला मंडल बालागांव द्वारा रामलीला का मंचन, गणेश महोत्सव, श्रीमद् भागवत कथा, महाशिवपुराण, नवदुर्गा महोत्सव, महिला एवं पुरुष मंडल द्वारा रामसत्ता प्रमुख रूप से मनाएं जाते हैं। साथ ही साथ विभिन्न सामाजिक कार्यक्रम भी होते हैं।
प्रतिदिन राम फेरी एवं रामायण का होता है पाठ
बालेश्वर महादेव की स्थापना के बाद से ही श्री राम फेरी मंडल के करीब 20 सदस्य रोजाना प्रात: 5.30 बजे बालेश्वर महादेव से राम हरे राम नाम का जप लेते हुए संपूर्ण गांव की प्रमुख गलियों में फेरी निकालकर मंदिर प्रांगण पहुंचे है। यहां 12 ज्योतिर्लिंगों की पूजा अर्चना कर गांव की सुख समृद्धि की कामना करते हैं। दोपहर में बुजुर्ग श्री राम चरित्र मानस का पाठ करते है। महिला मंडल द्वारा मां नर्मदा मंदिर में प्रात: 6 बजे भजन एवं पूजा अर्चना की जाती है।
४० साल पहले दूसरे गांव में पूजा करने जाते थे ग्रामीण-
गांव के बुजुर्गों के मुताबिक ग्रामीण घासीराम गौर ने अपनी पत्नी की स्मृति में 1980 में मंदिर का निर्माण कराया था। इससे पहले गांव में भोलेनाथ का स्थान नहीं था। इससे ग्रामीण दूसरे गांव में पहुंचकर पूजा करते थे। 70 डिसमिल भूमि में मंदिर का निर्माण कराया। आठ एकड़ भूमि भी मंदिर में दान दी। 1990 में श्रीमद्भागवत के दौरान कथा वाचक पं. मणिशंकर शास्त्री ने इस स्वरूप का नाम बालेश्वर बताया। तभी से यह मंदिर बालेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।