हापुड़

ऑस्कर में जलवा दिखाने के लिए अमेरिका रवाना हुई यूपी की ये बेटियां

– हापुड़ के काठीखेड़ा गांव की स्नेहा ने पीर‍ियड एंड ऑफ सेन्टेंस में निभाया मुख्य किरदार- सैनेटरी पैड बनाने पर आधारित है काठी खेड़ा गांव में बनी डॉक्यूमेंट्री- 23 और 25 फरवरी को आस्कर समारोह में होगा फिल्म का प्रदर्शन

हापुड़Feb 22, 2019 / 12:41 pm

lokesh verma

ऑस्कर में जलवा दिखाने के लिए अमेरिका रवाना हुई यूपी की ये बेटियां

हापुड़. एक तरफ जहां आज भी महिलाओं को घरों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। घरों में भी उनको पर्दे के पीछे रहना पड़ता है, वहीं दिल्ली से करीब 55 किलोमीटर दूर बसे हापुड़ के छोटे से गांव की रहने वाली एक बेटी ने देश का नाम दुनिया में रोशन किया है। दरअसल, हापुड़ के काठी खेड़ा गांव की रहने वाली लड़की स्नेहा पर फिल्माई गई डाॅक्यूमेंट्री ‘पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस’ ऑस्कर के लिए नामांकित हुई है, जिसका प्रदर्शन 23 और 25 फरवरी को आस्कर समारोह में किया जाएगा। इस समारोह में भाग लेने के लिए स्नेहा और गांव की एनजीओ संचालिका सुमन ने गुरुवार शाम को दिल्ली के आईजीआई हवाई अड्‌डे से अमेरिका के लिए उड़ान भरी है। इससे ग्रामीण बेहद उत्साहित हैं।
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नारी स्वास्थ्य जागरुकता को लेकर बनी फिल्म ‘पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस’ ऑस्कर के लिए नामांकित हुई है। यह फिल्म हापुड़ जिले के गांव काठी खेड़ा की लड़की स्नेहा पर फिल्माई गई है। स्नेहा सहेलियों संग मिलकर अपने ही गांव में सबला महिला उद्योग समिति में सैनेटरी पैड बनाती है। इन पैड को गांव की महिलाओं के साथ नारी सशक्तिकरण के लिए काम कर रही संस्था एक्शन इंडिया को भी सप्लाई किया जाता है। बता दें कि सुमन को इस कार्य के लिए इतना संघर्ष करना पड़ा कि उसको अपने घर के पीछे एक रास्ता बनवाना पड़ा, जिस रस्ते से महिलाएं काम करने के लिए उसके यहां आया करती थीं। वहीं महिलाओं को पहले अपने घर से ये कहकर काम करने के लिए जाना पड़ता था कि वे बच्चो के डायपर बनाती हैं।
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काफी संघर्षों के बाद मिली सफलता

आज के दौर में भी जहां महिला सेनेटरी पेड्स का नाम लेने में शर्माती हैं, वहीं सुमन ने लोगों की परवाह किए बिना हापुड़ तहसील के छोटे से गांव काठी खेड़ा में सैनेटरी पेड्स बनाने का काम शुरू किया था। सुमन ने बताया कि उनको काफी संघर्षों से गुरजना पड़ा। जब उन्होंने पैड्स बनाने की शुरुआत की तो बच्चे से लेकर महिलाएं तक भी उन पर हंसती थी और तरह-तरह की बाते सुनने को मिलती थीं, लेकिन सुमन ने दुनिया की परवाह किए बिना अपने काम को आगे बढ़ाया। धीरे-धीरे सुमन ने महिलाओं को भी जागरूक करना शुरू कर दिया और गांव की ही कुछ महिलाओं ने भी पैड्स बनाने का काम शुरू कर दिया। सुमन ने बताया कि पहले महिलाओ को भी अपने घर यह झूठ बोलकर आना पड़ता था कि वे बच्चों के डायपर बनाने का काम करती हैं। जब उनके परिजनों को यह पता चला कि वे सैनेटरी पेड्स बनाने का काम करती है तो उनके परिवार वालों ने उनको काम करने से रोक दिया। उन्होंने बताया कि 2017 में अमेरिका से आई एक टीम ने सुमन पर आधारित एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म पीरियड एंड ऑफ सेंटेंस बनाई, जो अब ऑस्कर के लिए नामांकित हुई है। इसके लिए सुमन और फिल्म में मुख्य किरदार निभाने वाली स्नेहा अमेरिका के लिए रवाना हो चुकी हैं।
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घर के काम और पढ़ाई के साथ किया मैनेज

डॉक्यूमेंट्री में मुख्य किरदार निभाने वाली स्नेहा बताती हैं कि शुरुआत में उनको काफी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा था, क्योकि मुझे काम के साथ घर का काम और पढ़ाई भी करनी होती थी। एक साथ सबकुछ मैनेज करना बहुत मुश्किल था। वहीं सैनेटरी पैड बनाने के विषय में भी किसी को बता नहीं सकती थी। हालांकि मां को इस बारे में बता दिया था। उनके विश्वास के कारण ही मैं इस मुकाम को हासिल कर पाई। वहीं पापा से कहा था कि वह बच्चों के डायपर बनाने का काम करती है।
दो हजार महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा

यहां बता दें कि सबला समिति की संचालिका और ऑस्कर के लिए नोमिनेटिड हुईं सुमन का जन्म दिल्ली के लाजपत नगर में हुआ था। सुमन दसवीं तक ही पढ़ पाई थी। तभी उनकी शादी गांव काठी खेड़ा में हो गई। जब सुमन गांव में आई तो यहां बिजली नहीं आती थी। सुमन का मन था कि गांव की महिलाओं के लिए कुछ करूं। सुमन वर्ष 2010 में एक्शन इंडिया से जुड़ी और गांव में महिलाओं के स्वास्थ्य, शिक्षा के लिए जागरूक किया और दो हजार महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़ा। 2017 में महिलाओं के रोजगार के लिए डायरेक्टर गौरी चौधरी से बात की तो उन्होंने गांव में पैड अरुणाचलम मुरूगनंतम की बनाई हुई मशीन लगाने की व्यवस्था की। आज गांव में सात लड़कियां मिलकर प्रतिदिन छह सौ सेनेटरी पैड तैयार करती हैं। इस काम में लगीं लड़कियों को ढाई-ढाई हजार रुपये मेहनताना के रूप में दिया जाता है।
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