हनुमानगढ़

सूट-बूट, हेट और टाई में करते ‘दिल लगाकर दिहाड़ी’

हनुमानगढ़. साफ-सुथरे कपड़े। हेट, टाई और चश्मा लगाकर जब वो अपना काम करते हैं तो सबका ध्यान खींच लेते हैं। उनकी सज-धज और मुस्कान से व्यक्तित्व में अलग सा खिंचाव दिखता है।

हनुमानगढ़May 02, 2023 / 12:15 pm

adrish khan

सूट-बूट, हेट और टाई में करते ‘दिल लगाकर दिहाड़ी’

सूट-बूट, हेट और टाई में करते ‘दिल लगाकर दिहाड़ी’
– हनुमानगढ़ शहर में फुटपाथ पर ऐसी दुकान जो खींच लेती सबका ध्यान
– दुकान पर सूट-बूट, टाई, हेट और चश्मा पहन कर अंग्रेजीदां स्टाइल में रोशन कर रहे जूते सिलाई
अदरीस खान हनुमानगढ़. साफ-सुथरे कपड़े। हेट, टाई और चश्मा लगाकर जब वो अपना काम करते हैं तो सबका ध्यान खींच लेते हैं। उनकी सज-धज और मुस्कान से व्यक्तित्व में अलग सा खिंचाव दिखता है। काम उनका मरम्मत व पॉलिश कर जूते चमकाने का है। मगर असल चमक तो उनकी शख्सियत में नजर आती है और नाम भी क्या खूब, रोशन सिंह। लगन और मेहनत के साथ लोगबाग अपना काम करते हैं। मगर कुछ ऐसे भी होते हैं जो लगन व मेहनत के साथ-साथ आनंद व खुशी के साथ कामकाज करते हैं। पश्रिम और दिमाग के साथ दिल भी कार्य में लगा लेते हैं।
कुछ ऐसे ही हैं जंक्शन निवासी रोशन सिंह। पिछले करीब डेढ़ दशक से वे जंक्शन में जूतों की सिलाई, मरम्मत और पॉलिश का काम कर रहे हैं। इसमें कोई विशेष बात नहीं है और भी बहुत से लोग यह काम करते हैं। खास बात है उनका अपने काम के प्रति नजरिया और सम्मान की भावना। आम धारणा है कि सडक़ किनारे फुटपाथ पर जूतों की सिलाई-चमकाई का कार्य करने वाले का डे्रस कोड साहब लोगों जैसा नहीं होता। लेकिन रोशन सिंह का अंदाज ही निराला है। वे बढिय़ा गोल हेट और चश्मा लगाकर, साफ-सुथरे कपड़ों पर टाई पहनकर जब अपने कार्य स्थल पर पहुंचते हैं तो तमाम धारणाएं खत्म होती नजर आती हैं।
क्यों अपनाया यह स्टाइल
राजस्थान पत्रिका से बातचीत में रोशन सिंह ने बताया कि अपने काम से प्यार करेंगे तो आनंद आएगा। जब हम कार्य को पूजा मानते हैं तो फिर इसे सज-धज कर सम्पन्न किया जाना चाहिए। अपने कार्य स्थल पर यूं बनठन कर आने से बहुत लाभ मिलता है। हर समय आसपास सकारात्मक ऊर्जा रहती है, ग्राहक भी खुश दिखते हैं। दिल लगाकर काम करना इसे ही कहते हैं। रोशन सिंह बताते हैं कि समय के साथ उनका काम बढ़ा ही है। हर दिन करीब पांच सौ रुपए की दिहाड़ी कर लेते हैं।
एक ही व्यापार की कड़ी
करीब डेढ़ दशक से रोशन सिंह जूते सिलाई का काम करते हैं। वे दसवीं कक्षा तक पढ़े हैं। उन्होंने बताया कि कड़ी मेहनत और ईमानदारी से रोटी कमाने का कोई काम छोटा नहीं होता। छोटी तो आदमी की मानसिकता व नजरिया होता है। जूते बनाने वाली कंपनी के मालिक-कर्मचारियों से लेकर सडक़ पर जूतों की मरम्मत करने वाले मेहनतकश सब एक ही व्यापार से जुड़ी कडिय़ां हैं। कोई छोटा या बड़ा नहीं है, बस आय का ही फर्क है।

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