यह मुहिम शुरू करने वाले पद्मेश कुमार ‘किसान’ ने बताया कि उन्होंने 2001 में अपने परिवार में हुई एक मृत्यु के दौरान मृत्युभोज नहीं करने के लिए परिजनों को समझाया तो शुरुआत में उनका विरोध हुआ।
पद्मेश ने इस कुप्रथा के खिलाफ अपनी आवाज उठाना बंद नहीं किया। धीरे-धीरे उनके प्रयासों का असर हुआ और आज यह मुहिम राज्य भर में फैल चुकी है। केस 1
गांव रामदेवरा, पायला कला (बालोतरा) के मघाराम बताते हैं कि मेरे सहित सगे भाई गेनाराम, केहना राम, व सत्ता राम की सहमति से पिता स्वरूपाराम गोदारा का मृत्युभोज नहीं किया। हमने शिक्षा के लिए 51 हजार रुपए दान दिए।
गांव रामदेवरा, पायला कला (बालोतरा) के मघाराम बताते हैं कि मेरे सहित सगे भाई गेनाराम, केहना राम, व सत्ता राम की सहमति से पिता स्वरूपाराम गोदारा का मृत्युभोज नहीं किया। हमने शिक्षा के लिए 51 हजार रुपए दान दिए।
केस 2
गांव आगोलाई (जोधपुर) निवासी बलदेव सिंह का कहना है कि मृत्युभोज छोड़ो अभियान की प्रेरणा से गत वर्ष मेरे पिता के देहांत पर हमने मृत्युभोज नहीं किया। मैंने शिक्षा, गोशाला और पर्यावरण के लिए ढाई लाख रुपए दिए।
गांव आगोलाई (जोधपुर) निवासी बलदेव सिंह का कहना है कि मृत्युभोज छोड़ो अभियान की प्रेरणा से गत वर्ष मेरे पिता के देहांत पर हमने मृत्युभोज नहीं किया। मैंने शिक्षा, गोशाला और पर्यावरण के लिए ढाई लाख रुपए दिए।
केस 3
बाड़मेर जिले की ग्राम पंचायत निंबलकोट की लाखोणियों मेघवालों की ढाणी के जेठाराम ने बताया कि माता हेमी देवी के देहांत पर मृत्युभोज नहीं किया। पुस्तकालय और पर्यावरण संरक्षण के लिए 44 हजार रुपए रुपए दान दिए।
बाड़मेर जिले की ग्राम पंचायत निंबलकोट की लाखोणियों मेघवालों की ढाणी के जेठाराम ने बताया कि माता हेमी देवी के देहांत पर मृत्युभोज नहीं किया। पुस्तकालय और पर्यावरण संरक्षण के लिए 44 हजार रुपए रुपए दान दिए।
स्वयंसेवकों का बड़ा नेटवर्क
राजस्थान के 17 जिलों और देशभर के कई राज्यों में 200 से अधिक स्वयंसेवक अभियान में सक्रिय हैं। इनमें हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, बीकानेर, नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, जैसलमेर, जयपुर, टोंक, कोटा सहित कई जिले शामिल हैं। पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भी अभियान का असर है। पद्मेश बताते हैं कि अब तक लगभग 25 हजार लोग मृत्युभोज त्यागने की शपथ ले चुके हैं।