गाेगामेड़ी में गोगाजी महाराज की मेड़ी (समाधि स्थल) तथा गोरक्षनाथ महाराज का प्राचीन टीला है। श्रद्धालु गोरक्षनाथ के धूणे के समक्ष शीश नवाने के बाद गोगामेड़ी के दर्शन करते हैं। बताया जाता है कि इस टीले पर नाथ संप्रदाय के गोरक्षनाथ महाराज ने धूणा रमाया था।
गोगाजी का जन्मस्थान राजस्थान के चुरू जिले के ददरेवा में स्थित है। यहां सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं। कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं आैर उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत मांगने आते हैं।
गाेगाजी गोरक्षनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। गोगामेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान ददरेवा से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्घा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। गोगादेव की जन्मभूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है। सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति।
भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत मांगते हैं। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है।लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाए तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है।