17 बीघा जमीन नाम होने पर भी पूरी जिंदगी सड़कों पर गुजार दी। पर भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं है। 26 वर्ष बाद जिसे उसके भाई-बहन मृत मान चुके, वही डेरा सच्चा सौदा सेवादारों की बदौलत सकुशल अपनों के पास घर पहुंच गया। भाई के मिलने आई बहनें आंसुओं को रोक नहीं पाई। इसे देख सबकी आंखें नम हो गईं।
राजस्थान के डूंगरगढ़ जिले के नैनसावा गांव से 1998 में मानसिक परेशानी में घर से निकला बाबूराम डेरा सच्चा सौदा शाह सतनाम ग्रीन संगठन ईकाई संगरिया के प्रयासों से अपने परिजनों से मिला। प्रवक्ता सुरेंद्र जग्गा ने बताया कि एक जुलाई को रेलवे स्टेशन के सामने मंदबुद्धि, भूखा-प्यासा अपनी धुन में बड़बड़ाता बाबूराम फटे हाल कपड़े पहने सेवादारों को मिला। पुलिस थाना में सूचना देकर मानवता भलाई केंद्र रतनपुरा में लाए। जहां नहलाकर कपड़े बदले। भरपेट भोजन खिलाया।
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सोशल मीडिया पुलिस और साध-संगत के सहयोग से परिजनों की तलाश शुरु हुई। पांच माह तक सार-संभाल इलाज के बाद हालत में सुधार आया तो पता चला कि उसका नाम बाबूराम पुत्र नाथू लाल और माता मसूरी बमनिया हैं। परिजनों से संपर्क हुआ तो परिवार मानने को राजी नहीं हुआ कि बाबूराम जिंदा है। फोन पर बात करवाने पर उनकी खुशी का पारावार नहीं रहा। जब परिजनों ने इतनी दूर आने में असमर्थता जताई तो सेवादार लालचंद, महेश गोयल, ओम प्रकाश, गुरचरण खोसा व प्रवीण करीब एक हजार किलोमीटर का सफर तय कर गांव चितरी पुलिस थाना पहुंचे। परिजनों को वहां बुलाकर एसआई वि₹म सिंह, सरपंच व अन्य ग्रामवासियों की मौजूदगी में उसके भाई-बहनों के सपुर्द किया। 26 साल से बिछुड़े भाई को देख बहनों की आंखों से आंसू छलक पड़े। गले लगाते हुए बोलीं म्हारो बाबुड़ो भाई आग्यो। सेवा कार्य में प्रबल गोयल, गुरचरण खोसा, रॉकी गर्ग, अमराराम व उदयपुर के सोमनाथ आदि का सहयोग रहा