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आठ माह में था इस SDOP का रिटायरमेंट,कमरे में इस हाल में मिली बॉडी यह शिलाालेख में अरबी भाषा में दर्ज है,जिसमें अंकित है कि पूजा के लिए प्रतिदिन 50 मालाएं मंदिर में चढ़ाई जाती है जिसके लिए मंदिर के पुजारी को 270 लंबाई 187 चौड़ाई की हाथ जमीन दी जाती है। इस लेख में दो जगह शून्य का प्रयोग किया गया है। पुरातत्व वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ का कहना है कि जीरों के अविष्कार के बाद ये सबसे पुराना लिखित प्रयोग है। गणितज्ञों के मुताबिक भारत ने ही दुनिया को अंकों का उपयोग सिखायाए जैसे 270 या 50 में किस स्थान पर जीरो को रखा जाना है।
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अब प्रदेश में नहीं आएगी दूध की कमी,ये रणनीति से एक साल की बोवनी पर मिलेगा चार साल का फायदा नागवंश के शासन काल में शुरू हुआ जीरो का लिखित प्रयोगसाक्ष्यों के आधार पर बताया जाता है कि जीरो का सबसे पहले उपयोग नागवंश के शासन काल में नौवीं शताब्दी में किया था। जीरो के बारे में जो भी प्रमाण मिलते थे। लेकिन कोई तारीख अब तक खोजी नहीं जा सकी। वहीं ग्वालियर का शिलालेख भारत में जीरो के प्रयोग का तारीख समेत लिखित प्रमाण है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जीरो के बारे में भले ही दुनिया की दूसरी सभ्यताएं जानती थीं।
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इस SDOP ने रिटायर होने पर किया ऐसा कार्य, गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड में हुआ दर्ज दशमलव व बाइनरी अंक प्रणाली भी भारत में विकसितपहले 10 से आगे के अंकों को लिखने के लिए अलग टाइप का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे 11 लिखना होता थाए तो 101 लिखा जाता था। 12 के लिए 102 लिखा जाता था। लेकिन भारत में ही धीरे.धीरे लिखने की पद्धति विकसित हुई और अंकों को व्यवस्थित क्रम में लिखा जाने लगा।
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जिनके लिए गुजार दी पूरी जिंदगी मेहनत में,आज वो दे रहे हैं दर्द,ऐसी है इनकी कहानी शून्य संबंधी ये तथ्य हैं महत्वपूर्ण1- जीरो का जन्म ग्वालियर में हुआ। इस बात की पुष्टि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 1903-04 की रिपोर्ट में की गई थी।
2- इतिहासकार फिलिप जेण्डेविस ने भी अपनी पुस्तक द लार्ज नंबर्स में शून्य की खोज ग्वालियर में होने की पुष्टि की है।
3- ग्वालियर के इतिहासकार प्रो. एके सिंह व हरिहरनिवास द्विवेदी ने भी अपनी पुस्तक में जीरो संबंधी तथ्य पेश किए हैं।