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ग्वालियर

यहां से हुई थी जीरो की खोज,विश्वभर के गणितज्ञों के लिए शोध केंद्र बना चतुर्भज मंदिर,जानें इसकी खासीयत

देश-विदेश के गणितज्ञों के लिए ग्वालियर किला अध्ययन का केंद्र बना हुआ है। हर साल बढ़ी तादाद में विदेशी गणितज्ञ जीरों की खोज के लिए ग्वालियर किले पर पहु

ग्वालियरOct 02, 2017 / 07:04 pm

monu sahu

chaturbhuj temple

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ग्वालियर। देश-विदेश के गणितज्ञों के लिए ग्वालियर किला अध्ययन का केंद्र बना हुआ है। हर साल बढ़ी तादाद में विदेशी गणितज्ञ जीरों की खोज के लिए ग्वालियर किले पर पहुंचते हैं। ग्वालियर किला पर नौवीं शताब्दी के चतुर्भुज मंदिर पर एक शिलालेख में सबसे पहले जीरों का अंक दर्ज होना पाया गया है। यह खोज महान गणितज्ञ आर्यभट्ट ने की थी। इस शिलालेख से अब मध्य प्रदेश के टूरिज्म विभाग ने टूरिस्टों को लुभाने काम भी शुरू कर दिया है। इसे मैथेमैटिक्स टूरिज्म का नाम दिया गया है।
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यह शिलाालेख में अरबी भाषा में दर्ज है,जिसमें अंकित है कि पूजा के लिए प्रतिदिन 50 मालाएं मंदिर में चढ़ाई जाती है जिसके लिए मंदिर के पुजारी को 270 लंबाई 187 चौड़ाई की हाथ जमीन दी जाती है। इस लेख में दो जगह शून्य का प्रयोग किया गया है। पुरातत्व वैज्ञानिक एवं गणितज्ञ का कहना है कि जीरों के अविष्कार के बाद ये सबसे पुराना लिखित प्रयोग है। गणितज्ञों के मुताबिक भारत ने ही दुनिया को अंकों का उपयोग सिखायाए जैसे 270 या 50 में किस स्थान पर जीरो को रखा जाना है।
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नागवंश के शासन काल में शुरू हुआ जीरो का लिखित प्रयोग
साक्ष्यों के आधार पर बताया जाता है कि जीरो का सबसे पहले उपयोग नागवंश के शासन काल में नौवीं शताब्दी में किया था। जीरो के बारे में जो भी प्रमाण मिलते थे। लेकिन कोई तारीख अब तक खोजी नहीं जा सकी। वहीं ग्वालियर का शिलालेख भारत में जीरो के प्रयोग का तारीख समेत लिखित प्रमाण है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि जीरो के बारे में भले ही दुनिया की दूसरी सभ्यताएं जानती थीं।
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दशमलव व बाइनरी अंक प्रणाली भी भारत में विकसित
पहले 10 से आगे के अंकों को लिखने के लिए अलग टाइप का इस्तेमाल किया जाता था। जैसे 11 लिखना होता थाए तो 101 लिखा जाता था। 12 के लिए 102 लिखा जाता था। लेकिन भारत में ही धीरे.धीरे लिखने की पद्धति विकसित हुई और अंकों को व्यवस्थित क्रम में लिखा जाने लगा।
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शून्य संबंधी ये तथ्य हैं महत्वपूर्ण
1- जीरो का जन्म ग्वालियर में हुआ। इस बात की पुष्टि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 1903-04 की रिपोर्ट में की गई थी।
2- इतिहासकार फिलिप जेण्डेविस ने भी अपनी पुस्तक द लार्ज नंबर्स में शून्य की खोज ग्वालियर में होने की पुष्टि की है।
3- ग्वालियर के इतिहासकार प्रो. एके सिंह व हरिहरनिवास द्विवेदी ने भी अपनी पुस्तक में जीरो संबंधी तथ्य पेश किए हैं।

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