लॉक डाउन के बाद दिल्ली के बाहरी इलाके में बिल्डिंग निर्माण कार्य में मजदूरी करने वाले सागर जिले के गांव के निवासी दो युवकों ने 15 दिन कार्य स्थल पर समय काटा, लेकिन जब खाने की सामग्री खत्म हो गई तो अपनी साइकलें लेकर घर की ओर निकल पड़े। चार दिन साइकल चलाकर वे ग्वालियर की सीमा में पहुंचे।
पैसे और खाने की सामग्री खत्म होने के बाद घर जाने की चाह में भूखे पेट ही साइकल चलाते रहे। इन युवकों को देखकर जब पत्रिका रिपोर्टर ने सवाल किया तो इन्होंने बताया कि रास्ते भर किसी ने कुछ नहीं पूछा और न ही कहीं हैल्थ चेकअप हुआ। शहर की सीमा में दोपहर के समय प्रवेश करने के कारण यहां भी खाने के पैकेट नहीं मिल सके। खाने के नाम पर इनके पास किसी के दिए हुए चार बिस्कुट के पैकेट ही थे। इन्हीं के सहारे वे सागर की यात्रा पूरी करने की मंशा लिए हुए थे।
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इसी तरह 19 ऐसे लोग भी मिले जो राजस्थान के अलवर जिले से ग्वालियर आए थे, इन सभी को भी सागर जाना था। अलग-अलग साधनों से आए एक ही जगह के इन लोगों में आठ बच्चे भी शामिल थे। इन सभी को शहर की सीमा पर बने चेकपोस्ट पर नहीं रोका गया लेकिन सिंध नदी पर चेक पोस्ट पर स्क्रीनिंग के लिए रोक दिया गया था। अपरान्ह तीन बजे तक इनके पास खाने के सामान नहीं पहुंचा था। इन लोगों को नदी के किनारे पर जहां रोका गया था वहां कुछ ही दूरी पर ईंटों के ढेर में जहरीला माना जाने वाला गुहेरा भी मौजूद था, इस पूरे ग्रुप खाने से ज्यादा यह चिंता थी कि अगर किसी बच्चे पर गुहेरे ने हमला कर दिया तो क्या होगा?
इंतजामों पर उठ रहे सवाल
प्रशासन ने जिले की सीमा पर बने चैकपोस्ट पर क्वारंटाइन की सुविधा के साथ-साथ हैल्थ चेकअप और खाने की सुविधा करने का भी दावा किया है। इसके बाद भी निरावली चैकपोस्ट से करीब 60 किलोमीटर दूर सिंध नदी चैकपोस्ट पर इस पूरे समूह के पहुंचने से पुलिस की चैङ्क्षकग और इंतजामों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।