ग्वालियर। शहर से लगभग 70 किलोमीटर दूर मुरैना में सिहोनिया स्थित ककनमठ मंदिर देश-विदेश के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। कभी सिंहपाणि नगर कहा जाने वाला सिहोनिया विश्व पर्यटन के मानचित्र में इसी मंदिर के कारण जाना जाता है।यह भी पढ़ें- कालिका देवी साक्षात् विश्राम करती है यहां, जानिये किस रेजिमेंट की हैं यह आराध्य देवी उत्तर भारतीय शैली का है मंदिरयह मंदिर उत्तर भारतीय शैली में बना है। इस शैली को नागर शैली के नाम से भी जाना जाता है। आठवीं शताब्दी के दौरान मंदिरों का निर्माण नागर शैली में ही किया जाता रहा। ककनमठ मंदिर इस शैली का उत्कृष्ट नमूना है।यह विशाल व अद्भुत मंदिर वाकई किसी अजूबे से कम नहीं है। इस मंदिर के पत्थरों के बीच में न तो चूना है और न ही सीमेंट। सारे पत्थर एक के ऊपर एक कतारबद्ध हैं। अंदर से मंदिर का दृश्य देखना वाकई अद्भुत है।यह भी पढ़ें- ये हैं बजरंगबली की ‘अष्टसिद्धियां’, जो असंभव को भी बना देती हैं संभवकाम अधूरा छोड़कर चले गए थे भूतमाना जाता है कि इसे भूतों ने एक रात में बनाया है, लेकिन इसे बनाते- बनाते सुबह हो गई और भूतों को काम अधूरा छोड़कर जाना पड़ा। आज भी इस मंदिर को देखने पर यही लगता है कि इसका निर्माण अधूरा रह गया।यह भी पढ़ें- कुख्यात ठग नटवरलाल के बारे में 7 आश्चर्यजनक बातें, क्या आप जानते हैं यह?चूने-गारे का नहीं हुआ है उपयोग ककनमठ मंदिर के निर्माण में कहीं भी चूने-गारे का उपयोग नहीं किया गया। पत्थरों को संतुलित रखकर मंदिर बनाया गया। इतने लंबे समय से यह मंदिर कई प्राकृतिक झंझावातों का सामना करता आ रहा है। इस मंदिर की देखरेख अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) कर रही है। अफसरों को भय था कि यदि मंदिर को छेड़ा गया, तो यह गिर सकता है, क्योंकि इसके पत्थर एक के ऊपर एक रखे हैं। इस कारण उन्होंने इसके संरक्षण कार्य से दूरी बना ली।यह भी पढ़ें- सरकारी जॉब चाहते हैं तो करें एप्लाई11वीं शताब्दी में हुआ था निर्माणवहीं जानकारों के अनुसार ककनमठ मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में कछवाहा वंश (कच्छप घात) के राजा कीर्ति राज ने कराया था। उनकी रानी ककनावती भगवान शिव की अनन्य भक्त थी। उसी के कहने पर इस शिव मंदिर का निर्माण कराया था। इसका नाम ककनमठ रखा गया। मौसम की मार से यहां बने छोटे-छोटे मंदिर नष्ट हो गए।यह भी पढ़ें- संपत्तिकर में 12 प्रतिशत छूट कैसे पा सकते हैं आप, जानियेऐसे पहुंचे यहां सिहोनिया गांव ग्वालियर से करीब 70 किमी दूरी पर स्थित है। इस स्थान पर पहुंचने के लिए भिंड और मुरैना दोनों ही मार्गों का उपयोग कर सकते हैं। यहां समूह में जाना ज्यादा सुरक्षित रहेगा। बेहतर होगा कि स्वल्पाहार व पानी साथ में ले जाएं। यहां से सूर्यास्त से पहले लौटना ज्यादा ठीक माना जाता है।यह भी पढ़ें- धरती के नीचे यहां है अलौकिक दुनिया, जानिये पाताल के रहस्य इस स्थान तक पहुंचने के लिए खुद की कार के अलावा टैक्सी कर सकते हैं। यदि आप इस स्थान पर जाने की सोच रहे हैं, तो सोमवार के दिन जा सकते हैं। इसकी वजह यह है कि सोमवार को यहां दूर-दूराज से बड़ी संख्या में लोग आते हैं।