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ग्वालियर

टीबी बना देश का सबसे घातक व संक्रामक रोग, बचाव के ये हैं उपाय

भारत में टीबी से मरने वालों की संख्या हुई दोगुनी। यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट से सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 27 फीसदी टीबी के मामले भारत में हैं।

ग्वालियरNov 03, 2016 / 12:09 pm

rishi jaiswal

chest x-ray

TB disease


ग्वालियर। भारत में साल 2015 में तपेदिक (टीबी) से मरनेवालों की संख्या 4,80,000 थी, जो साल 2014 में इस रोग से हुई 2,20,000 मौतों से दोगुनी है। इसका कारण यह माना जा रहा है कि पहले की मौतों के जो अनुमान लगाए गए थे, वे गलत थे। यह बात विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की वैश्विक तपेदिक रिपोर्ट से सामने आई है।

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की 27 फीसदी टीबी के मामले भारत में हैं। देश में यह सबसे घातक संक्रामक रोग है। साल 2015 में देश में 28 लाख टीबी के नए मामले सामने आए, जबकि 2014 में नए मामलों की संख्या 22 लाख थी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा टीबी के मामले भारत में पाए जाते हैं। वहीं, वैश्विक स्तर पर भी यह 96 लाख से बढ़कर 1.04 करोड़ हो चुकी है।



भारत में टीबी की दवा के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता रखनेवाले मरीजों की संख्या 2015 में 79,000 थी, जो 2014 के मुकाबले 11 फीसदी अधिक है। नए टीबी के मामलों में करीब 2.5 फीसदी मामले ऐसे आ रहे हैं, जिन्होंने टीबी की दवा के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता विकसित कर ली है और उन पर दवाइयों का कोई असर नहीं हो रहा। डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में टीबी अनुमान की तुलना में कही अधिक बड़ी महामारी है। यह निगरानी और सर्वेक्षण के नए आंकड़ों से पता चला है।


पिछले दो सालों में भी निजी अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में टीबी का इलाज हो रहा है और उसे सरकार के पास पंजीकृत करवाया जा रहा है। हालांकि, 2012 से पहले निजी अस्पतालों के लिए सरकार के पास पंजीकरण करवाना अनिवार्य था। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि टीबी का इलाज संभव है, लेकिन भारत में केवल 59 फीसदी मरीजों को ही इलाज मिल पाता है।
जानकारों का कहना है कि दूसरे देशों की तुलना में भारत में टीबी के इलाज का सरकारी कार्यक्रम बेहतर है, लेकिन बहुत से मरीज सरकारी अस्पतालों तक भी पहुंच नहीं पाते। 



दुनिया में केवल छह देशों भारत, इंडोनेशिया, चीन, नाइजीरिया, पाकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में नए टीबी मामलों में 60 फीसदी पाए जाते हैं, जबकि भारत, चीन और रूसी संघ में दुनिया के टीबी दवाइयों के प्रति प्रतिरोध विकसित कर चुके 45 फीसदी मरीज पाए जाते हैं।



क्या है टीबी?
टीबी बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारी है, जो हवा के जरिए एक इंसान से दूसरे में फैलती है। यह आमतौर पर फेफड़ों से शुरू होती है। सबसे कॉमन फेफड़ों की टीबी ही है लेकिन यह ब्रेन, यूटरस, मुंह, लिवर, किडनी, गला, हड्डी आदि शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। टीबी का बैक्टीरिया हवा के जरिए फैलता है। खांसने और छींकने के दौरान मुंह-नाक से निकलने वालीं बारीक बूंदों से यह इन्फेक्शन फैलता है। अगर टीबी मरीज के बहुत पास बैठकर बात की जाए और वह खांस नहीं रहा हो तब भी इसके इन्फेक्शन का खतरा हो सकता है। हालांकि फेफड़ों के अलावा बाकी टीबी एक से दूसरे में फैलनेवाली नहीं होती और आम विश्वास के उलट यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली बीमारी भी नहीं है।



टीबी का बैक्टीरिया शरीर के जिस भी हिस्से में होता है, उसके टिश्यू को पूरी तरह नष्ट कर देता है और इससे उस अंग का काम प्रभावित होता है। मसलन फेफड़ों में टीबी है तो फेफड़ों को धीरे-धीरे बेकार कर देती है, यूटरस में है तो इनफर्टिलिटी (बांझपन) की वजह बनती है, हड्डी में है तो हड्डी को गला देती है, ब्रेन में है तो मरीज को दौरे पड़ सकते हैं, लिवर में है तो पेट में पानी भर सकता है आदि।

इनको रहता है ज्यादा खतरा
अच्छा खान-पान न करने वालों को टीबी ज्यादा होती है क्योंकि कमजोर इम्यूनिटी से उनका शरीर बैक्टीरिया का वार नहीं झेल पाता। जब कम जगह में ज्यादा लोग रहते हैं तब इन्फेक्शन तेजी से फैलता है। अंधेरी और सीलन भरी जगहों पर भी टीबी ज्यादा होती है क्योंकि टीबी का बैक्टीरिया अंधेरे में पनपता है। यह किसी को भी हो सकता है क्योंकि यह एक से दूसरे में संक्रमण से फैलता है। स्मोकिंग करने वाले को टीबी का खतरा ज्यादा होता है। डायबीटीज के मरीजों, स्टेरॉयड लेने वालों और एचआईवी मरीजों को भी खतरा ज्यादा। कुल मिला कर उन लोगों को खतरा सबसे ज्यादा होता है जिनकी इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता ) कम होती है।



ऐसे करें बचाव
जानकारों के अनुसार टीबी से बचने के लिए अपनी इम्युनिटी को बढिय़ा रखें। न्यूट्रिशन से भरपूर खासकर प्रोटीन डाइट (सोयाबीन, दालें, मछली, अंडा, पनीर आदि) लेनी चाहिए। कमजोर इम्युनिटी से टीबी के बैक्टीरिया के एक्टिव होने के चांस होते हैं। दरअसल, टीबी का बैक्टीरिया कई बार शरीर में होता है लेकिन अच्छी इम्युनिटी से यह एक्टिव नहीं हो पाता और टीबी नहीं होती। 




1. ज्यादा भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से बचें। कम रोशनी वाली और गंदी जगहों पर न रहें और वहां जाने से परहेज करें। 
2. टीबी के मरीज से थोड़ा दूर रहें। कम-से-कम एक मीटर की दूरी बनाकर रखें। 
3. मरीज को हवादार और अच्छी रोशनी वाले कमरे में रहना चाहिए। कमरे में हवा आने दें। पंखा चलाकर खिड़कियां खोल दें ताकि बैक्टीरिया बाहर निकल सके। 
4. मरीज स्प्लिट एसी से परहेज करें क्योंकि तब बैक्टीरिया अंदर ही घूमता रहेगा और दूसरों को बीमार करेगा। 
5. मरीज को मास्क पहनकर रखना चाहिए। मास्क नहीं है तो हर बार खांसने या छींकने से पहले मुंह को नैपकिन से कवर कर लेना चाहिए। इस नैपकिन को कवरवाले डस्टबिन में डालें। 
6. ध्यान रखना चाहिए कि मरीज यहां-वहां थूके नहीं। मरीज किसी एक प्लास्टिक बैग में थूकें और उसमें फिनाइल डालकर अच्छी तरह बंद कर डस्टबिन में डाल दें। 
7. मरीज ऑफिस, स्कूल, मॉल जैसी भीड़ भरी जगहों पर जाने से परहेज करे। साथ ही पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी यूज करने से बचें।



यह करें मरीज
विशेषज्ञों के अनुसार अगर 3 हफ्ते से ज्यादा खांसी है तो डॉक्टर को दिखाएं। 
1. दवा का पूरा कोर्स करें, वह भी नियमित तौर पर। 
2. खांसते हुए मुंह और नाक पर नैपकिन रखें। 
3. न्यूट्रिशन से भरपूर खाना खाएं। 
4. बीड़ी सिगरेट, हुक्का, तंबाकू, शराब आदि से परहेज करें।



यह न करें
1. खुले में न थूकें।
2. सिर्फ एक्सरे पर भरोसा न करें।
3. कल्चर टेस्ट कराएं।
4. डॉक्टर से पूछे बिना दवा बंद न करें।

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