ये राग तानसेन द्वारा अविष्मरणीय रागों का उल्लेख बहुत से शास्त्रकारों एवं इतिहासकारों ने अपने ग्रंथ में किया है। इसमें तानसेन द्वारा अविष्कृत 6 राग मिलते हैं। जो कि इस प्रकार है।
सम्राट की देन रुद्रवीणा, रबाब सुरों का साहित्य भी है यहां
तानसेन से संगीत शास्त्र पर आधारित & ग्रंथों की रचना की थी, जिनका उल्लेख मिश्र बंधुओं द्वारा लिखित बंधु विनोद में पाया जाता है। ग्रंथ संगीतसार रागमाला संगीतश्रोत है।
तानसेन की समाधि पर सिंधिया सरकार की ओर से चादर चढ़ाई जाती थी। यह चादर बाबा कपूर की दरगाह से गाजे-बाजे के साथ लाई जाती थी। जुलूस में तवायफों का जुलूस भी रहता था। साथ ही इस जुलूस में हजारों की संख्या में लोग भी शामिल होते थे।
आपको बता दें कि तानसेन समारोह में देशभर से श्रोताओं के अलावा विदेशी श्रोता भी आते रहे हैं। जयाजी प्रताप के 19 जनवरी 1928 के अंक में इसका जिक्र भी है। जयाजीप्रताप में तानसेन समारोह पर छपी खबर में कहा गया है कि इस समारोह में जब पं.कृष्णराव पंडित का गायन हो रहा था तब यहां इतनी भीड हो गई थी कि व्यवस्थाएं करना मुश्किल हो गया था। इस समारोह यूरोप से भी कुछ श्रोता आए थे।
तानसेन समारोह में हर साल सरकार द्वारा किसी एक कलाकार को उसकी साधना के लिए राष्ट्रीय तानसेन सम्मान से अलंकृत किया जाता है। तानसेन समारोह के शुरुआती दिनों में भी यहां आने वाले कलाकारों को इनाम दिया जाता था। 7 जनवरी 1926 के जयाजी प्रताप के अंक में रायबहादुर भैया बालमुकुंद स चेयरमेन इम्प्रूवमेंट ट्रस्ट और एक अन्य व्यक्ति द्वारा तानसेन समारोह के लिए दो पुरस्कार देने की घोषणा की गई थी। 14 जनवरी 1926 के जयाजी प्रताप के अंक में इसका जिक्र है। इसमें कहा गया कि आलीजाह दरबार प्रेस के मैनेजर यशवंतराव मानगांवकर ने इस समारोह के लिए एक इनाम देने की घोषणा की थी।