मंगलवार को सुबह की सभा में ब्रम्हनाद के शीर्षस्थ साधकों ने अपने गायन-वादन से रसिकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। सभाओं का शुभारंभ पारम्परिक रूप से ईश्वर को अर्पित ध्रुपद गायन के साथ हुआ। तानसेन संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर के विद्यार्थियों द्वारा राग देसी ताल चौताल में निबद्ध बंदिश रघुवर की छवि सुन्दर…. से भगवान श्रीराम के प्रति अनन्त आस्था एवं श्रद्धा को वर्णित किया। पखावज पर जगत नारायण शर्मा ने संगत दी। वहीं शाम की सभा में दिल्ली की शुभा मुद्गल के गायन के साथ मुंबई के पंडित रोनू मजूमदार के बांसुरी वादन की प्रस्तुति खास रही।
वायोलिन व तबले की जुगलबंदी ने छेड़ा राग बैरागी भैरव
सुबह की सभा की अगली प्रस्तुति वायलिन जुगलबंदी की थी। मंच पर नमूदार हुए सुप्रसिद्ध वायलिन वादक महेश मलिक एवं अमित मलिक। पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने वायलिन की तारों पर राग बैरागी भैरव छेड़ा। सधे हुए हाथों से उस्ताद सलीम अल्लाहवाले की तबला संगत के साथ श्रोताओं को राग का अनुराग प्रदान कराया। इसमें विलंबित एक ताल में बड़ा खयाल की गत और द्रुत तीन ताल में छोटे खयाल की बंदिश से दीर्घा में राग की सुगंध घोली। अंत में राग चारुकेशी की धुन से प्रस्तुति को विराम दिया।
गिटार पर राग की जादूगरी और उंगलियों की कारीगरी ने किया मंत्रमुग्ध
वायलिन की सुमधुर धुनों को सुनने के बाद अब गिटार की धुनों से साक्षात्कार का समय था। वाराणसी की सुप्रसिद्ध गिटार वादिका कमला शंकर की तानसेन समारोह के मंच पर आमद हुई। शंकर गिटार वाद्ययंत्र पर कमला ने राग शुद्ध सारंग छेड़ा। उंगलियों की कारीगरी और राग की जादूगरी ने कुछ इस तरह संगीत प्रेमियों की आत्मा पर दस्तक दी कि सब निहाल हो गए। उनके साथ तबले पर पंडित ललित कुमार ने संगत दी। कमला पंडित ने अपनी प्रस्तुति को सुप्रसिद्ध तबला वादक एवं पद्मविभूषण उस्ताद जाकिर हुसैन को समर्पित किया।
राग हिंडोल में भव्या ने किया नाद वेद अपरंपार बंदिश का गायन
अगली प्रस्तुति गायन की थी, जिसमें युवा गायिका रतलाम की भव्या सारस्वत ने अपने मधुर कंठ का परिचय दिया। उन्होंने प्रस्तुति के लिए राग हिंडोल का चयन किया। आपने चौताल में नाद वेद अपरम्पार….बंदिश प्रस्तुत की। इसके बाद राग मुल्तानी सूलताल में बंदिश गाकर प्रस्तुति को विराम दिया। उनके साथ पखावज पर जयंत गायकवाड़ ने संगत की।
सुर बहार के माधुर्य में डूबे रसिक
तीसरे दिन की सुबह की सभा की अंतिम प्रस्तुति में संगीत प्रेमियों ने सुरबहार के माधुर्य का आनंद लिया। यह आनंद प्रदान करने सुरबहार के सुप्रसिद्ध वादक अश्विन दलवी, जयपुर से आए थे। उन्होंने राग भीमपलासी का चयन करते हुए सुरबहार के तार छेड़े। मौजूदा समय में हमारे देश में इस विरल वाद्य के जो गिने-चुने कलाकार हैं, उनमें अश्विन दलवी प्रमुख हैं। सुरबहार में स्वर-कंपन संग वह माधुर्य की जैसे वृष्टि करते हैं। सुरबहार में उन्होंने नित-नए प्रयोग किए हैं।
आदि देव महादेव महेश्वर….
तानसेन संगीत समारोह की शाम की सभा में पहली सभा भारतीय संगीत महाविद्यालय, ग्वालियर का ध्रुपद गायन हुआ। राग यमन कल्याण में निबद्ध प्रस्तुति में ताल चौताल की बंदिश आदि देव महादेव महेश्वर…. से संगीत सभा का शंखनाद किया। इस प्रस्तुति का संयोजन संजय देवले ने किया। इसके बाद विश्व संगीत सभा के अंतर्गत एटीएन कैबारे, क्रिस्टोफे रॉचेर एवं निकोला प्वांटार्ड के संगीत बैंड की प्रस्तुति हुई।
उन्होंने ऊर्जा और उत्साह से भरपूर जैज संगीत से संगीत प्रेमियों को रोमांचित कर दिया। तीनों ही कलाकार फ्रांस से थे और इनका संगीत भी वहां की परंपराओं और रचनाओं पर आधारित था। अगले क्रम में मंच पर नमूदार हुए पंडित (डॉ.) नागराजराव हवलदार।
जयपुर-अतरौली घराना की परंपराओं को साधे पंडित हवलदार ने छेड़ा राग अभोगी
किराना एवं जयपुर-अतरौली घराना की परंपराओं को साधे पंडित हवलदार ने कर्नाटक संगीत की राग अभोगी को अपने गायन के लिए चुना। इसमें उन्होंने मंथलाई, झपताल, द्रुत एक ताल और द्रुत तीन ताल में बंदिश सुनाकर अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।
बांसुरी वादन में डूबे श्रोता
माधुर्य से भरपूर गायन के बाद अवसर था बांसुरी की मीठी महक में डूब जाने का। भगवान श्रीकृष्ण का पसंदीदा वाद्ययंत्र बांसुरी जब अधरों पर रख वादक मन और आत्मा में बसे अथाह प्रेम, प्रीत, अनुराग को वायु प्रवाह के माध्यम से महकाता है तो ब्रज के अनंत आनन्द की अनुभूति हो जाती है। ऐसी ही अनुभूतियां तानसेन समाधि परिसर में बने पवित्र मंच के सम्मुख बैठे सुधि श्रोताओं को हुई। क्योंकि इस मंच पर देश के शीर्ष बांसुरी वादक पंडित रोनू मजूमदार की सभा सजी थी। रोनू मुस्कुराहट के साथ श्रोताओं से रुबरु हुए। उन्होंने अपने वादन के लिए मधुर राग रागेश्री का चयन किया। उन्होंने खमाज में एक धुन सुनाई और बनारसी ठुमरी के साथ अपने वादन को विराम दिया।
तानसेन समारोह में आज ये कार्यक्रम
प्रात:कालीन सभा : तानसेन समाधि स्थल
इस सभा की शुरुआत सुबह 10 बजे शंकर गंधर्व महाविद्यालय ग्वालियर के ध्रुपद गायन से होगी। इस सभा में रोहन पंडित ग्वालियर का गायन एवं उस्ताद दानिश असलम खां दिल्ली की रबाब प्रस्तुति होगी।प्रात:कालीन सभा : बटेश्वर मंदिर परिसर, जिला मुरैना
सभा की शुरूआत सुबह 10 बजे होगी। मुरैना जिले के बटेश्वर मंदिर परिसर में सजने जा रही इस संगीत सभा में मुरैना के मोहित खां का गायन, महालक्षमी शिनॉय उदयपुर का गायन, उस्ताद अमीर खां भोपाल का सरोद वादन एवं सभा के अंत में सुनंदा शर्मा दिल्ली का गायन होगा।
सायंकालीन सभा : तानसेन समाधि स्थल
इस सभा की शुरुआत शाम 6 बजे साधना संगीत महाविद्यालय ग्वालियर के ध्रुपद गायन से होगी। इस सभा में विश्व संगीत के तहत रेमो स्केनो इटली के सितार वादन की प्रस्तुति होगी। इसके बाद पं.स्वपन चौधरी कोलकाता का तबला वादन एवं आरती अंकलीकर टिकेकर मुंबई का गायन होगा।
तबला वादक पं.स्वपन चौधरी तानसेन अलंकरण से होंगे विभूषित
तानसेन अलंकरण समारोह हजीरा स्थित तानसेन समाधि के समीप महेश्वर के ऐतिहासिक किले की थीम पर बने समारोह के मंच पर 18 दिसंबर को सांध्य बेला में होगा। देश के ख्यातिनाम तबला वादक पं.स्वपन चौधरी कोलकाता को वर्ष 2023 के तानसेन सम्मान से विभूषित किया जाएगा। इसी तरह वर्ष 2023 के राजा मानसिंह तोमर सम्मान से सानंद न्यास इंदौर को अलंकृत किया जाएगा। प्रदेश के संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) धर्मेन्द्र सिंह लोधी तानसेन सम्मान व राजा मानसिंह तोमर सम्मान प्रदान करेंगे। संचालक संस्कृति एनपी नामदेव ने बताया कि 18 दिसंबर को शाम करीब 6.30 बजे अलंकरण समारोह शुरू होगा।
वादी-संवादी कार्यक्रम : बनारस घराने के तबला वादन में है उठान की परंपरा : पं.अरविंद कुमार
संगीत में तबले का अपना महत्व है। तबले के कुल 6 घराने हैं और सभी का अपना महत्व है। इनमें बनारस भी तबले का खास घराना है। इस घराने के तबला वादकों की अपनी स्वतंत्र शैली रही है। इस घराने के तबला वादक एकल, संगत, गायन और नृत्य संगत में पारंगत होते हैं। बनारस घराने में तबला वादन में उठान का इस्तेमाल पारंपरिक तबला एकल की शुरूआत के लिए किया जाता है।
यह बात बनारस घराने के विख्यात कलाकार पं.अरविंद कुमार आजाद ने कही। वह तानसेन समारोह के दौरान सोमवार को राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय में चल रहे वादी संवादी कायक्र्रम के दूसरे दिन बनारस की संगीत परंपरा खासकर तबले के संबंध में विषय पर सांगीतिक परिचर्चा में बोल रहे थे। इस दौरान उन्होंने मनमोहक तबला वादन भी किया। पं.अरविंद कुमार आजाद ने अपने वादन में बनारस घराने की बंदिशें प्रस्तुत कीं, जिनमें उठान, चलन और गतें और दादरा में लग्गी सहित अन्य बंदिशों की प्रस्तुति शामिल रही। उनके साथ सारंगी पर अब्दुल हमीद खान ने लहरा संगति की।
परोसी जा रही हैं चंबल, बुंदेलखंडी, मालवा व बघेलखंडी व्यंजनों की विशेष डिश
तानसेन संगीत समारोह उत्सव के 100 वर्ष के उपलक्ष्य में प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम की इकाई तानसेन रेसीडेंसी में फूड फेस्टिवल रखा गया है। यह फेस्टिवल 19 दिसंबर तक चलेगा। फेस्टिवल में विभिन्न प्रकार के व्यंजन जिसमें चम्बल, बुन्देलखंडी, मालवा व बघेलखंडी व्यंजनों के साथ मिलेट्स के व्यंजन भी खास हैं। यह लजीज व्यंजन पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। फूड फेस्टिवल के तहत बघेलखण्ड के स्थानीय स्वादिष्ट व्यंजन खासतौर पर बनाए गए। जिसमें मटर, धनिया, शोरबा, बगजा (बघेलखण्ड), पनबुददा, दाल तडक़ा, रिचमच, रसाज की करी, पनीर घुंघरी, महेरी, दालपुरी, मुर्ग रसेदार, कदू खट्टमीठे, टमाटर की लांजी, मसाला भात, आटा लप्सी, गुजिया शामिल थे।
नाद प्रदर्शनी में साजों का वृहद संसार, चित्रों में स्वर सम्राट रचित राग, रागरंग में रागों का मूर्त रूप
तानसेन संगीत समारोह में नाद वाद्ययंत्रों की प्रदर्शनी सभी के आकर्षण का केंद्र बनी है। इस प्रदर्शनी में 600 से अधिक वाद्य जिनमें शास्त्रीय, लोक एवं जनजातीय संगीत में प्रयोग किए जाने वाले वाद्ययंत्र सम्मिलित हैं। यहां खोड़म्टो (खम) को प्रदर्शित किया जा रहा है, जो त्रिपुरा के जनजातीय समुदाय द्वारा प्रयोग किया जाता है। यह ताल वाद्य खम लकड़ी और चर्मपत्र से बना है। समूह नृत्य में इसका उपयोग किया जाता है।
इसके अलावा यहां जलतरंग (कॉपर) को भी प्रदर्शित किया गया है। यह एक मधुर ताल वाद्य है, जो भारतीय उपमहाद्वीप से निकलता है। वहीं, डानयेन वाद्य भी आकर्षण बना हुआ है। यह एक पारम्परिक तार वाद्य है, एक प्रकार का ल्यूट, जिसकी ध्वनि अद्वितीय होती है।
उत्तराखंड के पहाड़ी समुदाय की परम्परा और संस्कृति को संजोए ढोल ढमाऊ प्रत्येक संस्कार एवं सामाजिक गतिविधियों में प्रयोग होता है। इसकी गूंज के बिना कोई भी शुभकार्य पूर्ण नहीं माना जाता। पहाड़ों में विशेष तौर पर उत्तराखंड में ढोल ढमाऊ के साथ ही त्योहारों का आरम्भ होता है।
इसके साथ ही परिसर में 99वें वर्षों के तानसेन समारोह का सांगीतिक आस्वाद एवं 99वें वर्षों में तानसेन समारोह में प्रस्तुति के लिए आए कलाकारों की छायाचित्रों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। जहां एक ओर क्यूआर कोड स्कैन कर संगीतप्रेमी 99वें वर्षों के तानसेन समारोह का सांगीतिक आस्वाद प्राप्त कर रहे हैं।
इसमें 1980 का पहला तानसेन सम्मान जो कि सुप्रसिद्ध शहनाई वादक एवं भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खां, पद्मभूषण कृष्णराव शंकर पंडित एवं हीराबाई बड़ोदेकर को प्रदान किया गया था विशेष है। इसके साथ ही तानसेन समाधि स्थल परिसर में देश के 10 सुप्रसित्र चित्रकारों का लाइव चित्रांकन शिविर भी लगाया गया है।