आजादी के महानायक और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाष चंद्र बोस के लापता होने के बाद मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में भी उनकी खोज की गई थी। भारत सरकार के मुखर्जी आयोग का एक दल डेढ़ दशक पहले श्योपुर आया था। दल के सदस्यों ने यहां नागदा व श्योपुर से जानकारी एकत्रित की थी। श्योपुर जिला मुख्यालय के निकट नागदा स्थित नागेश्वर-भूमेश्वर महादेव मंदिर पर लगभग 40 साल तक रहे साधु सी.ज्योतिर्देव को माना जाता था कि वे ही नेताजी सुभाष थे, जो वर्ष 1977 में मृत्यु होने तक नागदा में रहे। इन्हीं बातों की सच्चाई जानने के लिए मुखर्जी आयोग का दल श्योपुर आया था। हांलाकि आयोग भी नेताजी के जीवन के अंतिम समय में श्योपुर में होने की पुष्टि नहीं कर पाया।
5 सदस्यीय टीम ने देखे दस्तावेज
कमिश्नर एनके पांजा के नेतृत्व में 5 सदस्यीय दल 12 जुलाई 2001 ने यहां लगभग एक सप्ताह तक रुककर विभिन्न साक्ष्य प्राप्त किए। सदस्यों ने नागदा वाले बाबा की वस्तुओं को देखा और उनके छायाचित्रों के साथ उनके अनुयायियों से भी जानकारी प्राप्त की। आयोग ने स्व.रामभरोसे शर्मा नागदा, लहचौड़ा के चिरोंजी लाल शर्मा आदि के बयान दर्ज किए।
कमिश्नर एनके पांजा के नेतृत्व में 5 सदस्यीय दल 12 जुलाई 2001 ने यहां लगभग एक सप्ताह तक रुककर विभिन्न साक्ष्य प्राप्त किए। सदस्यों ने नागदा वाले बाबा की वस्तुओं को देखा और उनके छायाचित्रों के साथ उनके अनुयायियों से भी जानकारी प्राप्त की। आयोग ने स्व.रामभरोसे शर्मा नागदा, लहचौड़ा के चिरोंजी लाल शर्मा आदि के बयान दर्ज किए।
बदलवा दिया था चंबल नहर का मार्ग
श्योपुर के मानसिंह चौहान बताते हैं, बाबा 23 जनवरी को यूनीफॉर्म में नजर आते थे। जब चंबल नहर की खुदाई हुई तो उसमें नागदा व हासांपुरा गांव आ रहे थे, लेकिन जब ग्रामीणों ने बाबा से गुहार लगाई तो बाबा ने पं.नेहरू को पत्र लिखा और नहर का रास्ता बदल गया। बाबा के दस्तावेज, साहित्य आदि थे, वो आयोग के समय प्रशासन के पास रख दिए गए थे।
श्योपुर के मानसिंह चौहान बताते हैं, बाबा 23 जनवरी को यूनीफॉर्म में नजर आते थे। जब चंबल नहर की खुदाई हुई तो उसमें नागदा व हासांपुरा गांव आ रहे थे, लेकिन जब ग्रामीणों ने बाबा से गुहार लगाई तो बाबा ने पं.नेहरू को पत्र लिखा और नहर का रास्ता बदल गया। बाबा के दस्तावेज, साहित्य आदि थे, वो आयोग के समय प्रशासन के पास रख दिए गए थे।