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ग्वालियर

दस्तावेज पेश नहीं किए तो हाथ से फिसल गई एसपी ऑफिस की जमीन

वारिस जब नामांतरण के लिए पहुंचे तब जागा प्रशासन, वर्ष 1992 में पूरन के नाम से हो चुकी है जमीन की डिक्री।

ग्वालियरMar 24, 2016 / 09:26 am

rishi jaiswal

sp office

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ग्वालियर। मध्यप्रदेश शासन ने ग्वालियर में अपनी ही जमीन हारने की एक लंबी शृंखला तैयार कर ली है। इसी शृंखला में एसपी ऑफिस की जमीन भी शामिल हो गई है। अदालत इस मामले में शासन की अनुपस्थिति में वादी पूरन के पक्ष में वर्ष 1992 में एक पक्षीय डिक्री पारित कर चुकी है। अब जब इस जमीन को लेकर खलबली मची तो उसे बचाने के लिए जद्दोजहद शुरू हो चुकी है। शासन की अनुपस्थिति में हो रहे एेसे फैसलों से अफसरों और अधिवक्ताओं की अरूचि हर बार कई सवाल खड़े करती है। 


राज्य शासन द्वारा महलगांव की 13 बीघा 12 बिस्वा जमीन को एसपी ऑफिस के निर्माण के लिए पुलिस विभाग को आवंटित की जिस पर एसपी ऑफिस बन चुका है। इस जमीन पर पूरन नाम के एक व्यक्ति ने अपना दावा ठोकते हुए व्यवहार न्यायालय में एक वाद प्रस्तुत किया। जब तक यह मामला चला शासन की ओर से कोई वकील इसमें उपस्थित नहीं हुआ। आखिर वर्ष 1992 में इस जमीन पर शासन की अनुपस्थिति में एक पक्षीय आदेश पारित करते हुए पूरन व श्रीलाल के पक्ष में डिक्री पारित कर दी। इसके बाद पूरन चुप होकर बैठ गया। उसने डिक्री को क्रियान्वित नहीं करवाया। 


पूरन के निधन पर उनके बेटों ने प्रशासन के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत करते हुए जमीन का नामांतरण उनके नाम करने के लिए आवेदन दिया। जैसे ही यह आवेदन अफसरों के पास पहुंचा तो खलबली मच गई। खास बात यह रही कि डिक्री हो जाने के बाद कई साल तक इस मामले में सभी आंखे बंद करके बैठे रहे और कोई अपील भी पेश नहीं की गई। न ही डिक्री को समाप्त कराने के लिए कोई कार्रवाई की गई। 1992 से लेकर अभी तक इस मामले में शासन यथास्थिति के आदेश तक नहीं करा पाया।


जिसका अस्तित्व नहीं उसके नाम डिक्री
पूरन के साथ ही यह दावा श्रीलाल ने भी पेश किया था। इसलिए यह डिक्री दोनों के नाम हुई थी। प्रदेश में भाजपा सरकार के आने के बाद जिला प्रशासन द्वारा इस मामले में एडवोकेट कमल जैन को अपना एडवोकेट नियुक्त किया। कमल जैन ने व्यवहार न्यायालय के आदेश के खिलाफ डिक्री निरस्त कराने के लिए जिला न्यायालय में अपील पेश की। इसके साथ ही विलंब का कारण बताते हुए विलंब को क्षमा करने की भी प्रार्थना की गई। कमल जैन ने बताया कि तत्कालीन एसपी संजीव शमी ने श्रीलाल की तलाश करवाई तो पता चला कि इस नाम का कोई व्यक्ति है ही नहीं।


अदालत में पेश ही नहीं किए दस्तावेज
व्यवहार न्यायालय द्वारा दिए गए अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा गया कि मूल दस्तावेज को आहूत किए बिना इस मामले में कोई आदेश पारित नहीं किया जा सकता। लेकिन शासन की ओर से इस मामले में दस्तावेज ही पेश नहीं किए गए। न ही कोई उपस्थित हुआ। लिहाजा एक पक्षीय फैसला हो गया।

“इस मामले में कांग्रेस के शासनकाल में ही डिक्री हो गई थी। इसके बाद यह प्रकरण कमल जैन के पास था। अब यह मामला मुझे दिया गया है। हम न्यायालय में अपना पक्ष रखेंगे।”
पंकज पालीवाल, अतिरिक्त शासकीय अधिवक्ता

“इस मामले को हमने सर्वोच्च प्राथमिकता में लिया है। प्रकरण में सीएसपी को ओआईसी बनाया गया है। हम अपना पक्ष मजबूती के साथ अदालत के सामने रखेंगे।”
हरिनारायणचारी मिश्रा, एसपी ग्वालियर


“मुझे जब प्रकरण मिला उसके 12 साल पहले इस मामले डिक्री हो चुकी है। मैंने इसमें डिक्री समाप्त कराने के लिए अपील की। अब में जिला न्यायालय में नहीं हूं।” 
कमल जैन, शासकीय अधिवक्ता, हाईकोर्ट


पहले भी कई कीमती जमीनें खो चुका शासन
शा सन द्वारा जिस जमीन को लोहामंडी के लिए दिया गया था वह जमीन भी शासन हार चुका है। इसी तरह पत्रकार कॉलोनी को शासन द्वारा जो जमीन दी गई है उसमें भी शासन की हार हो चुकी है। शासन द्वारा शिवपुरी लिंक रोड पर जो जमीन परिवहन विभाग को दी थी वह जमीन भी शासन हार गया था। इतना ही नहीं जहां नया जिला न्यायालय भवन बन रहा है उसके पास की जमीन जिसकी अतिरिक्त जिला न्यायाधीश द्वारा जांच में उसे शासन की माना उस जमीन को तहसीलदार न्यायालय किसी अन्य की बता चुका है। तहसीलदार ने अपने आदेश में कहा कि वहां खेती होती थी जबकि न्याायधीश द्वारा अपनी रिपोर्ट में कहा गया कि वहां कभी खेती नहीं हुई। अभी यह मामला लंबित है।

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