याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कोर्ट में तर्क दिया कि उपभोक्ताओं से इसके लिए जो 70 रुपये लिए जा रहे हैं उससे स्मार्ट चिप कंपनी हर महीने करीब तीन करोड़ रुपये कमा रही है। इस तरह जो काम निशुल्क होना चाहिए उससे कंपनी उपभोक्ताओं से सालभर में 30 करोड़ रुपये कमा रही है। जनता का मेहनत का पैसा एक निजी कंपनी के खाते में जा रहा है। हैरत की बात तो यह है कि कंपनी का ठेका दिसंबर 2018 में खत्म हो गया है, फिर भी कंपनी काम कर रही है.
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इस संबंध में परिवहन विभाग द्वारा बताया गया कि स्मार्ट चिप कंपनी से करार के तहत कार्य लिया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई। कोर्ट ने साफ कहा कि क्या मध्यप्रदेश देश से अलग है। इस मामले में स्मार्ट चिप कंपनी ने भी अपना पक्ष रखने की इजाजत मांगी थी जिसपर कोर्ट ने 25 हजार जमा कर जवाब देने की इजाजत दी थी।