ग्वालियर

मैसूर जैसा था ग्वालियर के दशहरे के वैभव, आज भी राजघराना निभाता है शमी पूजन की परंपरा, देखें वीडियो

Jyotiraditya Scindia offer shami puja on dussehra : दशहरे पर सिंधिया परिवार शमी वृक्ष पूजा को देखने और पत्तियां लूटने की है परंपरा

ग्वालियरOct 08, 2019 / 02:28 pm

monu sahu

मैसूर जैसा था ग्वालियर के दशहरे के वैभव, आज भी राजघराना निभाता है शमी पूजन की परंपरा, देखें वीडियो

ग्वालियर। भारत देश में यूं तो हर त्योहार की छटा निराली होती है,लेकिन ग्वालियर में यदि दशहरे की बात की जाए तो कुछ और है। क्योकि यहां सिंधिया राजपरिवार में दशहरे पर कई परंपराएं हैं,जिसमें सबसे पुरानी है शमी पूजन की प्रथा जो करीब 200 सालों से चली आ रही है। दशहरे पर सिंधिया परिवार शमी वृक्ष पूजा को देखने और पत्तियां लूटने के लिए मंगलवार को हजारों लोग माढऱे की माता पर जमा होंगे।
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यह परंपरा 200 साल पुरानी है, लेकिन पारंपरिक रूप में कोई बदलाव नहीं आया है। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) ने दशहरे पर अपनी कुल परंपरा के अनुसार सुबह पहले देवघर जाकर विशेष पूजा की। उसके बाद शाम को शमी वृक्ष का पूजन किया करेंगे। इसके बाद वह वहां उपस्थित सभी मराठा सरदार लोगों से मुलाकात करेंगे। शमी पूजन के बाद शमी की पत्तियां भी लुटाई जाएंगी।
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आठवीं पीढ़ी का नेतृत्व कर रहे ज्योतिरादित्य
ज्योतिरादित्य सिंधिया शाम को परंपरागत वेश-भूषा में शमी पूजन स्थल मांढरे की माता पर पहुंचेगे। वहां लोगों से मिलने के बाद शमी वृक्ष की पूजा की जाती है। इसके बाद म्यांन से तलवार निकालकर जैसे ही शमी वृक्ष को लगाते है। हजारों की तादाद में मौजूद लोग पत्तियां लूटने के लिए टूट पड़ते हैं। लोग पत्तियों को सोने का प्रतीक के रूप में ले जाते हैं।
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सुबह निकलती थी सवारी
महल से जुड़े एसके कदम ने बताया कि दशहरे पर शमी पूजन की परंपरा सदियों पुरानी है। उस वक्त महाराजा सुबह तकरीब 8.30 से 9 बजे अपने लाव-लश्कर व सरदारों के साथ महल से निकलते थे। फिर सवारी गोरखी पहुंचती थी। यहां देव दर्शन बाद यहां शस्त्रों की पूजा होती थी। दोपहर तक यह सिलसिला चलता था। महाराज आते वक्त बग्घी पर सवार रहते थे। लौटते समय हाथी के हौदे पर बैठकर जाते थे। शाम को शमी वृक्ष की पूजा के बाद महाराज गोरखी में देव दर्शन के लिए जाते थे।
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दशहरा दरबार में पहुंचे थे लोग
संग्राम कदम,केशव पांडे के मुताबिक दशहरे पर जयविलास पैलेज के ऊपर दरबार हॉल में दशहरा दरबार लगता था। इसमें जमींदार व सरदार महाराज से मिलने के लिए आते थे। महाराज सरदार परिवारों से मिलने के बाद लोगों से मिलते थे। रिवाज के रूप में उपहार देने की परंपरा भी थी।

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