ग्वालियर

Sawan Somvar 2020 : शहर के इन मंदिरों का ऐसा है इतिहास, उमड़ी भक्तों की भीड़

कोरोना के चलते प्रशासन ने पहले ही किए सुरक्षा के कड़े इंतजाम

ग्वालियरJul 06, 2020 / 06:23 pm

monu sahu

Sawan Somvar 2020 : शहर के इन मंदिरों का ऐसा है इतिहास, उमड़ी भक्तों की भीड़

ग्वालियर। श्रावण मास (सावन) का आज पहला सोमवार है। शहर के शिवालयों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी संख्या में भीड़ देखी गई। बाबा के भक्त बिल्व पत्र,फूल,दूध,दही,घी एवं जल से भगवान का अभिषेक करते हुए नजर आए। सावन के पहले सोमवार को लेकर भक्तों के लिए शहरभर के मंदिरों में तैयारियां इस बार उस तरीके से नहीं हो सकी जैसी की हर साल होती आ रही हैं। इसकी वजह देश में फैली कोरोना माहामारी।
जिसके चलते मंदिरों में भक्त भी कम संख्या में ही पहुंचे। हालांकि मंदिरों में विशेष विद्युत सजावट की गई है। सभी मंदिरों में भक्त सोशल डिस्टेसिंग के साथ पूजा-अर्चना कर सके। इसके लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई हैं। पत्रिका ने अंचल में प्रसिद्ध शहर के प्रमुख शिवालयों अचलेश्वर महादेव व कोटेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना और उसके महत्व के बारे में जानकारी एकत्रित की है, जो हम आपको बताने जा रहे हैं।

अचलेश्वर महादेव मंदिर
श्री अचलनाथ का स्वयंभू शिवलिंग लश्कर में सनातन धर्म मंदिर मार्ग पर स्थित है। इनके प्राकट्य की अनेक किवदंतियां हैं। राजमार्ग के बीच भगवान अचलनाथ का शिवलिंग एक कच्चे मिट्टी के चबूतरे पर स्थित था,उस जमाने में यह क्षेत्र वीरान वन्य क्षेत्र था। शिवलिंग को यहां से हटाने के लिए हाथियों द्वारा चेन से खींचने का प्रयास किया, लेकिन शिवलिंग नहीं निकला। इसके बाद जियाजी राव सिंधिया ने मंदिर बनवाया। अब यह मंदिर विशाल आकार ले चुका है। वर्तमान में यहां मंदिर के जीर्णोद्धार का काम चल रहा है। मंदिर में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ विशेष व्यवस्था की गई है, जिसके तहत पुरुष व महिलाओं के लिए अलग-अलग लाइनें लगाई जाएंगी।

कोटेश्वर महादेव मंदिर
किले की तलहटी में इस मंदिर का निर्माण महायोद्धा श्रीनाथ महादजी शिन्दे महाराज द्वारा करवाया गया था। इसके 100 वर्षों बाद इसका जीर्णोद्धार एवं नवीनीकरण जयाजीराव शिन्दे द्वारा किया गया। कोटेश्वर में स्थापित शिवलिंग ग्वालियर दुर्ग पर स्थित शिवमंदिर में स्थापित था। यह तोमर वंश के आराध्य एवं पूजा का केंद्र था। बाद में ग्वालियर दुर्ग मुगलों के अधीन आया। औरंगजेब के शासन काल में इस देवस्थान को तोड़ कर तहस नहस कर शिवलिंग को किले से नीचे परकोटे की खाई में फेंक दिया गया। वर्तमान में मंदिर की देखरेख सिंधिया देव स्थान ट्रस्ट द्वारा की जाती है। सावन मास के अतिरिक्त शिवरात्रि पर यहां मेला लगता है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शिवदर्शन के लिए पहुंचते हैं।

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