ग्वालियर। सिंधिया राजपरिवार ( royal family ) में उस समय कुछ ठीक नहीं चल रहा था। मां और बेटे में दूरियां इतनी बढ़ गई थीं कि राजमाता विजयाराजे सिंधिया ( rajmata vijayaraje scindia ) को वसीयत में ही लिख देना पड़ा कि मेरा बेटा मेरा अंतिम संस्कार नहीं करेगा। राजपथ से लोकपथ के अनेक किस्से मशहूर हैं। इन्हीं में से यह किस्सा आज भी याद किया जाता है। एक मां और बेटे के बीच राजनीतिक खींचतान को आज भी लोग याद करते हैं। राजपरिवार के वंशज नई पीढ़ी के ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस पार्टी में हैं। अब वे राजपरिवार और राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।
patrika.com आपको बता रहा है राजमाता विजयाराजे सिंधिया के जन्म दिवस के मौके पर उनसे जुड़े ऐसे किस्से जिसे लोग आज भी जानना चाहते हैं…।
बेटा नहीं करेगा अंतिम संस्कार
विजयाराजे सिंधिया ने 1985 में अपने हाथ से वसीयत में लिख दिया था कि मेरा बेटा माधवराव सिंधिया मेरे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो। हालांकि 2001 में जब राजमाता के निधन के बाद मुखाग्नि माधवराव सिंधिया ने ही दी थी।
बेटे से मांग लिया था महल का किराया
विजयाराजे सिंधिया पहले कांग्रेस में थीं। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब राजघरानों को ही खत्म कर दिया और संपत्तियों को सरकारी घोषित कर दिया तो उनकी इंदिरा गांधी से ठन गई थी। इसके बाद वे जनसंघ में शामिल हो गई थीं। उनके बेटे माधवराव सिंधिया भी उस समय जनसंघ में शामिल हो चुके थे, उस समय के जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने उन्हें सदस्यता दिलाई थी। लेकिन माधवराव सिंधिया कुछ समय ही जनसंघ में रहे। बाद में उन्होंने कांग्रेस का दामन थाम लिया। इससे विजयाराजे सिंधिया अपने बेटे से बेहद नाराज हो गई थीं।
बेटे के सामने पुलिस ने पीटा
उस समय विजयाराजे सिंधिया ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से पीटा था। उन्होंने अपने बेटे पर गिरफ्तारी करवाने का आरोप लगाया था। दोनों में राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता भी बढ़ने लगी थी और पारिवारिक रिश्ते खत्म होने की कगार पर पहुंच गए थे। इसी कारण राजमाता ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रह रहे माधव राव से महल का किराया मांग लिया था। हालांकि एक रुपए प्रति माह के हिसाब से यह किराया प्रतिकात्मक रूप से लगाया गया था।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया अपने ही इकलौते पुत्र माधवराव सिंधिया से बेहद खफा हो गई थीं। विजयाराजे सिंधिया का सार्वजनिक जीवन जितना ही प्रभावशाली और आकर्षक था, उनका व्यक्तिगत और पारिवारिक जीवन उतना ही मुश्किलों से भरा हुआ था। राजमाता का निधन 25 जनवरी 2001 को हो गया था। इसके बाद कुछ माह बाद ही 30 सितम्बर 2001 को उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकॉप्टर दुर्घटना में माधवराव सिंधिया की मौत हो गई थी।
बेटियों में बांट दी थी जायदाद
2001 में विजयाराजे का निधन हो गया था। उनकी वसीयत के मुताबिक उन्होंने अपनी बेटियों को काफी जेवरात और अन्य बेशकीमती वस्तुएं दे दीं। राजमाता की नाराजगी इसी बात से लगाई जा सकती है कि उन्होंने अपने राजनीतिक सलाहकार और बेहद विश्वस्त संभाजीराव आंग्रे को विजयाराजे सिंधिया ट्रस्ट का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया, लेकिन बेटे को बेहद कम संपत्ति मिली। हालांकि विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आने का मामला भी कोर्ट में चल रहा है। यह वसीयत 1985 और 1999 में आई थी।
एक बेटी राजस्थान की CM, दूसरी मध्यप्रदेश में मंत्री
विजयाराजे की शादी 1941 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिंधिया से हुई थी। उनके पांच बच्चे थे। एक बेटी वसुंधरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री बनी। यशोधरा राजे MP में उद्योग मंत्री बनी। उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस सरकार में रेल मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्री रहे। 30 सितम्बर 2001 में उत्तरप्रदेश के मैनपुरी में हेलीकाप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई थी।
यह था राजमाता का असली नाम
सागर जिले में 12 अक्टूबर 1919 में राणा परिवार में जन्मी विजयाराजे के पिता महेन्द्र सिंह ठाकुर जालौन जिले के डिप्टी कलेक्टर हुआ करते थे। उनकी मां विंदेश्वरी देवी उन्हें बचपन से ही लेखा दिव्येश्वरी बुलाती थी। हिन्दू पंचांग के मुताबिक विजयाराजे का जन्म करवाचौथ को मनाया जाता है।
आठ बार रही सांसद
महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से उनका विवाह 21 फरवरी 1941 को हुआ था। पति के निधन के बाद वे राजनीति में आ गई थी और 1957 से 1991 तक आठ बार ग्वालियर और गुना से सांसद रहीं। 25 जनवरी 2001 में उन्होंने अंतिम सांस लीं।
आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में की पढ़ाई
महाराज माधवराव सिंधिया का जन्म 10 मार्च 1945 को हुआ था। माधवराव राजमाता विजयाराजे सिंधिया और जीवाजी राव सिंधिया के पुत्र थे। माधवराव ने सिंधिया स्कूल से शिक्षा हासिल की थी। उसके बाद वे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी पढ़ने चले गए। माधवराव सिंधिया का नाम MP के चुनिंदा राष्ट्रीय राजनीतिज्ञों में काफ़ी ऊपर लिया जाता था। माधवराव राजनीति के लिए ही नहीं बल्कि कई अन्य रुचियों के लिए भी विख्यात थे। क्रिकेट, गोल्फ, घुड़सवारी जैसे शौक के चलते ही वे अन्य नेताओं से अलग थे।
लगातार 9 बार सांसद रहे माधवराव
9 बार सांसद रहे माधवराव ने 1971 में पहली बार 26 साल की उम्र में गुना से चुनाव जीता था। वे कभी चुनाव नहीं हारे। उन्होंने यह चुनाव जनसंघ की टिकट पर लड़ा था। आपातकाल हटने के बाद 1977 में हुए आम चुनाव में उन्होंने निर्दलीय के रूप में गुना से चुनाव लड़ा था। जनता पार्टी की लहर होने के बावजूद वह दूसरी बार यहां से जीते। 1980 के चुनाव में वह कांग्रेस में शामिल हो गए और तीसरी बार गुना से चुनाव जीत गए। 1984 में कांग्रेस ने अंतिम समय में उन्हें गुना की बजाय ग्वालियर से लड़ाया था। यहां से उनके सामने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मैदान में थे। उन्होंने वाजपेयी को भारी मतों से हराया था।
माधवराव सिंधिया के बेटे हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया माधव राव सिंधिया के बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया अब उनकी राजनीतिक विरासत संभाल रहे हैं। ज्योतिरादित्य केंद्र सरकार में मंत्री रह चुके हैं और मध्यप्रदेश की राजनीति में भी अच्छा-खासा दखल रखते हैं।