ग्वालियर

रात को ही हुई थी भतीजी की मौत, सुबह गमी में जाने के बजाय जिम्मेदारी से लगवाने पहुंचा वैक्सीन

वैक्सीन को लेकर रघुवीर ने दिखाया जज्बा, रात को पत्नी की भतीजी की मौत हुई थी, सुबह गमी में शामिल होने के बजाय जेएएच पहुंचे कोरोना का वैक्सीन लगवाने सभी जगह हो रही सराहना।

ग्वालियरJan 16, 2021 / 08:17 pm

Faiz

रात को ही हुई थी भतीजी की मौत, सुबह गमी में जाने के बजाय जिम्मेदारी से लगवाने पहुंचा वैक्सीन

गवालियर/ मध्य प्रदेश में कोरोना के वैक्सीनेशन की शुरुआत हो गई है। जहां एक तरफ लोगों में कोरोना वैक्सीन को लेकर असमंजस है, वहीं कई लोग ऐसे भी हैं, जो सरकार द्वारा वैक्सीन लगवाने की व्यवस्था को अपनी सबसे अहम काम समझकर बड़ी से बड़ी मुश्किल या कार्य को दरकिनार रखते हुए वैक्सीन लगवाने को जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। ऐसा ही एक जज्बा शहर के रघुवीर ने भी दिखाते हुए वैक्सीन लगवाया, जिसके बाद शहरभर में उनके इस कार्य की सराहना की जा रही है।

 

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इसलिये शहर कर रहा जज्बे को सलाम

रघुवीर के जज्बे की सराहना पूरा शहर सिर्फ इसलिये ही नहीं कर रहा क्योंकि, उन्होंने जिले में सबसे पहला टीका लगवाया है, बल्कि इसलिये कर रहा है, क्योंकि उन्होंने वैक्सीन लगवाने को उस समय प्राथमिकता दी, जब उन्हीं के घर में गमी का माहौल था। ऐसे में रघुवीर चाहता तो, परिस्थितियों के अनुसार वैक्सीन लगवाने से मना कर सकता था, लेकिन उसने अपनी बड़ी जिम्मेदारी इसे समझा। दरअसल, रघुवीर की पत्नी ममता की भतीजी आरती की शुक्रवार रात को मौत हो गई। सुबह उसे भी परिवार के साथ गमी में शामिल होना था, लेकिन वह बेटी विशाखा और भाभी आशाबाई के साथ जेएएच वैक्सीनेशन सेंटर पहुंचा और वैक्सीन लगवाया। जबकि पत्नी को गमी में शामिल होने मायके भेज दिया। हालांकि, वैक्सीनेशन कराने के बाद वो खुद भी देरी से ही सही पर खुद भी परिवार के दुख में शामिल हुआ।


चाहता तो, वैक्सीन लगवाने से आसानी से बच सकता था, लेकिन…

उसका कहना था कि, स्थिति ऐसी थी कि, अगर वो चाहता, तो गमी का बताते हुए वैक्सीन लगवाने से बच सकता था। लेकिन, उसका मकसद पहला टीका लगवाना नहीं, बल्कि कोरोना को जड़ से उखाड़कर फेंकना है। ऐसे में वैक्सीन लगवाने में जरा सी लापरवाही फिर लोगों के लिये बड़ी मुसीबत का सबब बन सकती है। इसीलिये उसने ये फैसला लिया।


इसलिये, गम से परे जिम्मेदारी को समझा

रघुवीर के मुताबिक, कोरोना की वजह से कई गरीब परिवारों को बीते 10 महीनों से तिल-तिल करते हुए देखा और सुना है। न जाने कितने भाइयों को काम छोड़कर सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर घर उदास लौटते देखा है। न जाने कितने लोगों को बेघर होते देखा है। कहीं मां ने अपना बेटा खोया, तो कहीं बेटे ने अपनी मां। बड़ी विडंबना तो ये कि, शहर ही नहीं गांवों में जिस किसी को भी ये संक्रमण लगा, उसका कुछ दिनों तक समाज से मानो बहिष्कार ही हो जाता था। यही नहीं बाद में भी लोग उससे डर के मारे दूर ही रहते थे। रघुवीर ने कहा कि, मैं खुद भी अस्पताल में रहा हूं, तो समझता हूं कि वायरस को खत्म करना कितना जरूरी है, इसलिए गमी में न जाकर वैक्सीन लगवाने को पहली प्राथमिकता दी।

 

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बेटी बोली- ‘मुझे अपने पिता पर गर्व है’

रघुवीर के मुताबिक, अगर वो वैक्सीन न भी लगवाता, तो भी बाते बनाने वाले पीछे नहीं हटते, लोग ये भी कह सकते थे कि, अगर वैक्सीन न लगवाते हुए ससुराल गमी में चला जाता, तो भी अफवाह फैलाने वाले वैक्सीन के डर से बहाना करने की बात कर सकते थे। अन्य स्वास्थ्य कर्मी भी वैक्सीन लगवाने में संकोच कर सकते थे। इसलिए टीका लगवाने के साथ साथ लोगों को सही संदेश जाना भी जरूरी था। यानी रघुवीर ने वैक्सीनेशन में भाग लेते हुए खुद स्वास्थ्य कर्मचारी होने की भी जिम्मेदारी निभाई। वहीं, वैक्सीनेशन सेंटर से बाहर निकली रघुवीर की बेटी विशाखा ने बताया कि, उसे अपने पिता पर गर्व है। उन्होंने ऐसे हालात में भी अपने परिवार से ज्यादा देशवासी होने को प्राथमिकता दी।

 

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