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ग्वालियर

यहां पढ़ें हास्य कवि प्रदीप चौबे की कुछ खास कविताएं

यहां पढ़ें कवि प्रदीप चौबे की कुछ खास कविताएं

ग्वालियरApr 12, 2019 / 02:39 pm

Gaurav Sen

pradeep choubey ki kavitayen
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यहां पढ़ें कवि प्रदीप चौबे की कुछ खास कविताएं

1. भिखारी


जनता क्लास के
थ्री टायर से
उतर कर
हमने
बासी पूडियों का पैकेट
जैसे ही
भिखारी को बढाया
भिखारी
हाथ उठा कर बड़बड़ाया
आगे जाओ बाबा
मैं र्फस्ट क्लास के यात्रियों का
भिखारी हूँ।

pradeep choubey ki kavitayen
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2. हर तरफ गोलमाल है साहब...

हर तरफ गोलमाल है साहब
आपका क्या ख्याल है साहब

लोग मरते रहें तो अच्छा है
अपनी लकड़ी की टाल है साहब

आपसे भी अधिक फले फूले
देश की क्या मजाल है साहब

मुल्क मरता नहीं तो क्या करता
आपकी देखभाल है साहब

रिश्वतें खाके जी रहे हैं लोग
रोटियों का अकाल है साहब

इसको डेंगू, उसे चिकनगुनिया
घर मेरा अस्पताल है साहब

तो समझिए कि पात-पात हूं मैं
वो अगर डाल-डाल हैं साहब

गाल चांटे से लाल था अपना
लोग समझे गुलाल है साहब

मौत आई तो जिंदगी ने कहा-
‘आपका ट्रंक कॉल है साहब’

pradeep choubey ki kavitayen
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3.

रेल चली
भारतीय रेल की जनरल बोगी
पता नहीं
आपने भोगी की नहीं भोगी

एक बार हम भी कर रहे थे यात्रा
प्लेटफार्म पर देखकर
सवारियों की मात्रा
हमारे पसीने छूटने लगे
हम झोला उठाकर
घर की ओर फूटने लगे

 

तभी एक कुली आया
मुस्कुरा कर बोला –
‘अन्दर जाओगे?’
हमने कहा-
‘तुम पहुंचाओगे?’
वो बोला –
‘बड़े-बड़े पार्सल पहुंचाए हैं
आपको भी पहुंचा दूंगा
मगर रुपए पूरे पचास लूंगा!’

हमने कहा-
पचास रुपैया !’
वो बोला – हाँ, भैया
दो रुपए आपके,
बाकी सामान के।’
हमने कहा –
‘यार सामान नहीं है, अकेले हम हैं।’
वो बोला –
‘बाबूजी, आप किस सामान से कम हैं
भीड़ देख रहे हैं
कंधे पर उठाना पड़ेगा
वैसे तो हमारे लिए
बाएं हाथ का खेल है
मगर आपके लिए
दायां भी लगाना पड़ेगा
हाे सकता है
लात भी लगानी पड़े
मंजूर हो तो बताओ।’
हमने कहा – देखा जाएगा
तुम उठाओ!

कुली ने बजरंग बली का नारा लगाया
और पूरी ताकत लगाकर
हमें जैसे ही उठाया
कि खुद बैठ गया
दूसरी बार कोशिश की तो लेट गया
हाथ जोड़कर बोला –
‘बाबूजी, पचास रुपए तो कम हैं
हमें क्या पता था कि
आप आदमी नहीं, बम है
भगवान ही आपको उठा सकता है
हम क्या खाकर उठाएंगे
आपको उठाते-उठाते
खुद दुनिया से उठ जाएंगे!

pradeep choubey ki kavitayen
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4. इनक्वायरी काउंटर
इनक्वायरी काउंटर पर
किसी को भी न पाकर
हमने प्रबंधक से कहा जाकर –
‘पूछताछ बाबू सीट पर नहीं है
उसे कहां ढूंढें? ‘
जवाब मिला –
‘पूछताछ काउंटर पर पूछें!’

पलक झपकते ही
हमारी अटैची साफ हो गई
झपकी खुली
तो सामने लिखा था –
इस स्टेशन पर
सफाई का
मुफ्त प्रबंध है!

pradeep choubey ki kavitayen
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