ग्वालियर। भगवान शिव की उपासना के लिए सोमवार, प्रदोष, शिवरात्रि और सावन आदि का समय शुभ माना जाता है। मान्यता है कि सावन (हिन्दू माह श्रावण) के महीने में भगवान शिव व सोमवार व्रत का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। सावन के महीने में शिव भक्तों को प्रत्येक सोमवार को केवल रात में ही भोजन करना चाहिए और शिव जी की उपासना करनी चाहिए। सावन सोमवार व्रत की विधि अन्य सोमवार व्रत की तरह ही होती है। इस बार सावन का पहला सोमवार 25 जुलाई को है। यह भी पढ़ें- घर में स्थापित शिवलिंग की ऐसे करें पूजा, इन बातों का रखें ध्यान सावन सोमवार व्रत विधि स्कंदपुराण के अनुसार भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सावन सोमवार के दिन एक समय भोजन करने का प्रण लेना चाहिए। भगवान भोलेनाथ के साथ पार्वती जी की पुष्प, धूप, दीप और जल से पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान शिव को तरह-तरह के नैवेद्य अर्पित करने चाहिए जैसे दूध, जल, कंद मूल आदि। सावन के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए। यह भी पढ़ें- जानिये कहां और कैसे शुरू हुई थी शिवलिंग की पूजा रात्रि के समय जमीन पर सोना चाहिए। इस तरह से सावन के प्रथम सोमवार से शुरु करके कुल नौ या सोलह सोमवार इस व्रत का पालन करना चाहिए। नौवें या सोलहवें सोमवार को व्रत का उद्यापन करना चाहिए। अगर नौ या सोलह सोमवार व्रत करना संभव ना हो तो केवल सावन के चार सोमवार भी व्रत किए जा सकते हैं। सावन सोमवार व्रत सूर्योदय से प्रारंभ कर तीसरे पहर तक किया जाता है। शिव पूजा के बाद सोमवार व्रत की कथा सुननी आवश्यक है। 1. सावन सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में सोकर उठें। 2. पूरे घर की सफाई कर स्नानादि से निवृत्त हो जाएं। 3. गंगा जल या पवित्र जल पूरे घर में छिड़कें। 4. घर में ही किसी पवित्र स्थान पर भगवान शिव की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। 5. पूरी पूजन तैयारी के बाद (‘मम क्षेमस्थैर्यविजयारोग्यैश्वर्याभिवृद्धयर्थं सोमवार व्रतं करिष्ये’) मंत्र से संकल्प लें। 6. इसके पश्चात (‘ध्यायेन्नित्यंमहेशं रजतगिरिनिभं चारुचंद्रावतंसं रत्नाकल्पोज्ज्वलांग परशुमृगवराभीतिहस्तं प्रसन्नम्. पद्मासीनं समंतात्स्तुतममरगणैर्व्याघ्रकृत्तिं वसानं विश्वाद्यं विश्ववंद्यं निखिलभयहरं पंचवक्त्रं त्रिनेत्रम्॥) मंत्र से ध्यान करें। 7. ध्यान के बाद ‘ॐ नमः शिवाय’ से शिवजी का तथा ‘ ॐ नमः शिवाय’ से पार्वतीजी का षोडशोपचार पूजन करें। 8. पूजन के पश्चात व्रत कथा सुनें। 9. तत्पश्चात आरती कर प्रसाद वितरण करें। यह भी पढ़ें- श्रावण मास 2016, भगवान शिव का ऐसे मिलेगा आशीर्वाद सावन सोमवार व्रत 2016 साल 2016 में 20 जुलाई से शरू होकर 18 अगस्त को सावन का महीना समाप्त हो जाएगा। भगवान शिव के मंत्र मनोवांछित फल पाने के लिए नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥ मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥ शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥ अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्। अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।। स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए मंत्र सौराष्ट्रदेशे विशदेऽतिरम्ये ज्योतिर्मयं चन्द्रकलावतंसम्। भक्तिप्रदानाय कृपावतीर्णं तं सोमनाथं शरणं प्रपद्ये ।। कावेरिकानर्मदयो: पवित्रे समागमे सज्जनतारणाय। सदैव मान्धातृपुरे वसन्तमोंकारमीशं शिवमेकमीडे।। पूजा के दौरान शिव जी को स्नान समर्पण करने का मंत्र ॐ वरुणस्योत्तम्भनमसि वरुणस्य सकम्भ सर्ज्जनीस्थो | वरुणस्य ऋतसदन्यसि वरुणस्य ऋतसदनमसि वरुणस्य ऋतसदनमासीद् || भगवान शिव को यज्ञोपवीत समर्पण करने का मंत्र ॐ ब्रह्म ज्ज्ञानप्रथमं पुरस्ताद्विसीमतः सुरुचो वेन आवः | स बुध्न्या उपमा अस्य विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च विवः || भगवान भोलेनाथ को गंध समर्पण करने का मंत्र ॐ नमः श्वभ्यः श्वपतिभ्यश्च वो नमो नमो भवाय च रुद्राय च नमः | शर्वाय च पशुपतये च नमो नीलग्रीवाय च शितिकण्ठाय च || अर्धनारीश्वर भगवान भोलेनाथ को धूप समर्पण करने का मंत्र ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च | नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च || भगवान शिव को पुष्प समर्पण करने का मंत्र ॐ नमः पार्याय चावार्याय च नमः प्रतरणाय चोत्तरणाय च | नमस्तीर्थ्याय च कूल्याय च नमः शष्प्याय च फेन्याय च || भगवान भोलेनाथ को नैवेद्य अर्पण करने का मंत्र ॐ नमो ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च | नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुधन्याय च || भगवान शिव को ताम्बूल पूगीफल समर्पण करने का मंत्र ॐ इमा रुद्राय तवसे कपर्दिने क्षयद्वीराय प्रभरामहे मतीः | यशा शमशद् द्विपदे चतुष्पदे विश्वं पुष्टं ग्रामे अस्तिमन्ननातुराम् || भोलेनाथ को सुगन्धित तेल समर्पण करने का मंत्र ॐ नमः कपर्दिने च व्युप्त केशाय च नमः सहस्त्राक्षाय च शतधन्वने च | नमो गिरिशयाय च शिपिविष्टाय च नमो मेढुष्टमाय चेषुमते च || भगवान भोलेनाथ को दीप दर्शन करने का मंत्र ॐ नमः आराधे चात्रिराय च नमः शीघ्रयाय च शीभ्याय च | नमः ऊर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च || भगवान शिवजी को बिल्वपत्र समर्पण करने का मंत्र दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनं पापनाशनम् | अघोरपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम् || यह भी पढ़ें- जानिये क्यों कहलाते हैं भगवान शिव त्रिपुरारी? भगवान शिव के 108 नाम 1.शिव – कल्याण स्वरूप, 2.महेश्वर – माया के अधीश्वर, 3.शम्भू – आनंद स्वरूप वाले, 4.पिनाकी – पिनाक धनुष धारण करने वाले, 5.शशिशेखर – चंद्रमा धारण करने वाले, 6.वामदेव – अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले, 7.विरूपाक्ष – विचित्र अथवा तीन आंख वाले, 8.कपर्दी – जटा धारण करने वाले, 9.नीललोहित – नीले और लाल रंग वाले, 10.शंकर – सबका कल्याण करने वाले, 11.शूलपाणी – हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले, 12.खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले, 13.विष्णुवल्लभ – भगवान विष्णु के अति प्रिय, 14.शिपिविष्ट – सितुहा में प्रवेश करने वाले, 15.अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति, 16.श्रीकण्ठ – सुंदर कण्ठ वाले, 17.भक्तवत्सल – भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले, 18.भव – संसार के रूप में प्रकट होने वाले, 19.शर्व – कष्टों को नष्ट करने वाले, 20.त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी, 21.शितिकण्ठ – सफेद कण्ठ वाले, 22.शिवाप्रिय – पार्वती के प्रिय, 23.उग्र – अत्यंत उग्र रूप वाले, 24.कपाली – कपाल धारण करने वाले, 25.कामारी – कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले, 26.सुरसूदन – अंधक दैत्य को मारने वाले, 27.गंगाधर – गंगा को जटाओं में धारण करने वाले, 28.ललाटाक्ष – माथे पर आंख धारण किए हुए, 29.महाकाल – कालों के भी काल, 30.कृपानिधि – करुणा की खान, 31.भीम – भयंकर या रुद्र रूप वाले, 32.परशुहस्त – हाथ में फरसा धारण करने वाले, 33.मृगपाणी – हाथ में हिरण धारण करने वाले, 34.जटाधर – जटा रखने वाले, 35.कैलाशवासी – कैलाश पर निवास करने वाले, 36.कवची – कवच धारण करने वाले, 37.कठोर – अत्यंत मजबूत देह वाले, 38.त्रिपुरांतक – त्रिपुरासुर का विनाश करने वाले, 39.वृषांक – बैल-चिह्न की ध्वजा वाले, 40.वृषभारूढ़ – बैल पर सवार होने वाले, 41.भस्मोद्धूलितविग्रह – भस्म लगाने वाले, 42.सामप्रिय – सामगान से प्रेम करने वाले, 43.स्वरमयी – सातों स्वरों में निवास करने वाले, 44.त्रयीमूर्ति – वेद रूपी विग्रह करने वाले, 45.अनीश्वर – जो स्वयं ही सबके स्वामी है, 46.सर्वज्ञ – सब कुछ जानने वाले, 47.परमात्मा – सब आत्माओं में सर्वोच्च, 48.सोमसूर्याग्निलोचन – चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले, 49.हवि – आहुति रूपी द्रव्य वाले, 50.यज्ञमय – यज्ञ स्वरूप वाले, 51.सोम – उमा के सहित रूप वाले, 52.पंचवक्त्र – पांच मुख वाले, 53.सदाशिव – नित्य कल्याण रूप वाले, 54.विश्वेश्वर- विश्व के ईश्वर, 55.वीरभद्र – वीर तथा शांत स्वरूप वाले, 56.गणनाथ – गणों के स्वामी, 57.प्रजापति – प्रजा का पालन- पोषण करने वाले, 58.हिरण्यरेता – स्वर्ण तेज वाले, 59.दुर्धुर्ष – किसी से न हारने वाले, 60.गिरीश – पर्वतों के स्वामी, 61.गिरिश्वर – कैलाश पर्वत पर रहने वाले, 62.अनघ – पापरहित या पुण्य आत्मा, 63.भुजंगभूषण – सांपों व नागों के आभूषण धारण करने वाले, 64.भर्ग – पापों का नाश करने वाले, 65.गिरिधन्वा – मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले, 66.गिरिप्रिय – पर्वत को प्रेम करने वाले, 67.कृत्तिवासा – गजचर्म पहनने वाले, 68.पुराराति – पुरों का नाश करने वाले, 69.भगवान् – सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न, 70.प्रमथाधिप – प्रथम गणों के अधिपति, 71.मृत्युंजय – मृत्यु को जीतने वाले, 72.सूक्ष्मतनु – सूक्ष्म शरीर वाले, 73.जगद्व्यापी- जगत में व्याप्त होकर रहने वाले, 74.जगद्गुरू – जगत के गुरु, 75.व्योमकेश – आकाश रूपी बाल वाले, 76.महासेनजनक – कार्तिकेय के पिता, 77.चारुविक्रम – सुन्दर पराक्रम वाले, 78.रूद्र – उग्र रूप वाले, 79.भूतपति – भूतप्रेत व पंचभूतों के स्वामी, 80.स्थाणु – स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले, 81.अहिर्बुध्न्य – कुण्डलिनी- धारण करने वाले, 82.दिगम्बर – नग्न, आकाश रूपी वस्त्र वाले, 83.अष्टमूर्ति – आठ रूप वाले, 84.अनेकात्मा – अनेक आत्मा वाले, 85.सात्त्विक- सत्व गुण वाले, 86.शुद्धविग्रह – दिव्यमूर्ति वाले, 87.शाश्वत – नित्य रहने वाले, 88.खण्डपरशु – टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले, 89.अज – जन्म रहित, 90.पाशविमोचन – बंधन से छुड़ाने वाले, 91.मृड – सुखस्वरूप वाले, 92.पशुपति – पशुओं के स्वामी, 93.देव – स्वयं प्रकाश रूप, 94.महादेव – देवों के देव, 95.अव्यय – खर्च होने पर भी न घटने वाले, 96.हरि – विष्णु समरूपी, 97.पूषदन्तभित् – पूषा के दांत उखाड़ने वाले, 98.अव्यग्र – व्यथित न होने वाले, 99.दक्षाध्वरहर – दक्ष के यज्ञ का नाश करने वाले, 100.हर – पापों को हरने वाले, 101.भगनेत्रभिद् – भग देवता की आंख फोड़ने वाले, 102.अव्यक्त – इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले, 103.सहस्राक्ष – अनंत आँख वाले, 104.सहस्रपाद – अनंत पैर वाले, 105.अपवर्गप्रद – मोक्ष देने वाले, 106.अनंत – देशकाल वस्तु रूपी परिच्छेद से रहित, 107.तारक – तारने वाले, 108.परमेश्वर – प्रथम ईश्वर यह भी पढ़ें- यहां है महाभारत काल का रहस्यमयी शिवलिंग, जानिये पूरी कहानी यह भी पढ़ें- गजब: भूतों ने एक रात में तैयार किया था यह शिव मंदिर!