चीनोर तक इसका निर्माण पूरा होते ही अच्छी सड़क की उम्मीद भी पूरी हो जाएगी। पर ग्रामीणों के उस सवाल का जवाब शायद ही इस रास्ते से आ सके जो वे बुनियादी सुविधाओं को लेकर चाहते हैं। शिवनगर गांव में पानी का संकट घर से खेतों तक दिखाई देता है। नहर गांव तक लाने की बात हुई थी, अभी तक कुछ हुआ नहीं। एक छोटी सी दुकान पर ग्रामीणों से क्षेत्रीय विकास को लेकर पूछा गया तो उनका कहना था, सड़क बन गई है, लेकिन बिजली, पानी और शिक्षा का रास्ता अब तक नहीं खुला है। धर्मेन्द्र, राजपाल और लखन कहते हैं समय के साथ कुछ भी नहीं बदला। आज भी हमें पांच-छह घंटे ही बिजली मिल रही है। नौकरी या काम के विकल्प नहीं हैं। इसलिए बढ़ी संख्या में पलायन हो रहा है। सरकार अपनी मुफ्त योजनाएं अपने पास रखे, हमारे यहां कोई फैक्ट्री या मिल खुलवा दे। चीनोर में लोकेंद्र यादव कहते हैं फसल खराब होती है तो मुआवजे के नाम पर जो मिलता है, उससे लागत भी नहीं निकलती।
क्या पढ़ाई! दसवीं के बच्चे को नाम तक लिखना नहीं आता
गांव में स्कूल का पूछने पर खेतों के बीच एक मकान की तरफ इशारा करते हुए लोग बताते हैं, उस घर के एक कमरे में सरकारी स्कूल है। वहां राजेंद्र यादव शिक्षा के खराब स्तर को अपने बेटे का उदाहरण देकर समझाते हैं, वो कहते हैं मेरा बेटा दसवीं में आ गया, लेकिन अपना नाम नहीं लिख पाता। हमारे आसपास के दस गांवों में कोई सरकारी नौकरी में नहीं हैै। जो थोड़ा बहुत पढ़े वो चपरासी बनने लायक भी नहीं हैं। अमरौल से लेकर चीनोर तक यही हाल है। रामदयाल बताते हैं, कॉलेज भी बन गया, लेकिन उनमें पढऩे के काबिल छात्र तो स्कूलों में तैयार किए जाएं। गांव के बच्चे पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाते हैं। सरकारी योजना में साइकल दी गई, लेकिन हफ्तेभर बाद वापस लेकर मास्टर ने बोला, एक ही पंचायत में प्रावधान नहीं। अगर नियम नहीं था तो साइकल दी क्यों? एक ही पंचायत में पांच किलोमीटर पैदल जा रहे बच्चे किसी को दिखाई नहीं देतेे।
हर कदम पर कमीशन देने की मजबूरी
अमरौल पंचायत से छीमक तक विधानसभा क्षेत्र बदलकर डबरा हो जाता है, लेकिन लोगों के सवाल और विकास को लेकर अपेक्षाएं नहीं बदलते। गोवरा पंचायत में लोगों से बात की तो उनका कहना था, पंचायत सचिव कभी फंड नहीं होने का हवाला देता और कभी योजना बंद हो जाना बताता है। नीलेश कुशवाह आवास योजना की किस्त का दो साल से इंतजार कर रहे हैं। इस बात को सुनकर वहां बैठे दर्जनभर लोग एक साथ बताते हैं, आवेदन के साथ लिखा-पढ़ी के 1500 रुपए, आवास मंजूर होने पर 1.35 लाख में से 15000 कमीशन, फिर फोटो खिंचवाकर निर्माण की किस्त के लिए 5000 रुपए मांगे जाते हैं। सीमेंट-रेत और मजूरी महंगी हो गई, योजना की रकम थोड़े बढ़ी है। उसमें से इतना पैसा बांटेंगे तो मकान कैसा बनेगा?
ट्रैक्टर लिया, तो योजनाओं से बाहर कर दिया
इसी गांव के संतोष कुशवाह के पास खेती बहुत कम थी, इसलिए ट्रैक्टर लेकर उसे आजीविका का साधन बनाया। लेकिन इसकी वजह से कई योजनाओं से बाहर कर दिया। महंगाई बढ़ती जा रही है, खाद महंगी, सिलेंडर महंगा, डीजल महंगा। सोचिए पहले 400 रुपए डीजल में जितनी जुताई हो जाती थी, उतने के लिए अब 1800 रुपए का डीजल लगता है। इसमें घर चलाना मुश्किल है। सरकारी योजनाओं के लाभ के बारे में पूछे जाने पर संतोष ने कहा, सरकार न जाने क्या सोचकर योजनाएं बनाती है। हमारे 70 घर के गांव में नल-जल योजना पर जितना खर्च किया और पानी नहीं दे पाए, उससे आधे से कम खर्च में घर-घर बोरिंग हो जाती और सबको पानी मिल जाता।
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