ग्वालियर

दाई सूंड और बाई सूंड वाले गणेश जी में ये होता है अंतर, अलग अलग होती है पूजन विधि

सबसे बड़ी असंमजस की स्थिति इस बात को लेकर रहती है कि भगवान गणेश ही मूर्ति कैसी हो? उनकी सूंड किस तरफ होना चाहिए और कौन सी मुद्रा में मंगलकारी है।

ग्वालियरAug 24, 2017 / 01:44 pm

shyamendra parihar

ग्वालियर। 25 अगस्त शुक्रवार को गणेश चर्तुथी पर पूरे देश में जगह जगह भगवान गणेश विराजेंगे। श्रद्धालु घरों में भी भगवान गणेश की मूर्तियों को प्रतिस्थापना करते हैं। इस दौरान भक्तों और आम लोगों के मन में सबसे बड़ी असंमजस की स्थिति इस बात को लेकर रहती है कि भगवान गणेश ही मूर्ति कैसी हो? उनकी सूंड किस तरफ होना चाहिए और कौन सी मुद्रा में भगवान गणेश की प्रतिमा को विराजा जाए, जिससे मंगलकारी परिणाम हों।

 

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भगवान गणेश जी की सूंड को लेकर असमंजस की स्थिति रहती है कि भगवान की सूंड किस तरफ होना चाहिए, प्रतिमा खड़ी हुई होना चाहिए या बैठे हुए विग्रह की स्थापना की जाना चाहिए। मूषक या रिद्धि-सिद्धि साथ हो या ना हो। इसे लेकर विद्ववानों का कहना है कि दोनों ही तरफ की सूंड वाले गणेशजी की स्थापना शुभ होती है। दाई और की सूंड वाले सिद्धि विनायक कहलाते हैं तो बाई सूंड वाले वक्रतुंड, हालांकि शास्त्रों में दोनों का पूजा विधान अलग-अलग बताया गया है।

 

दाई सूंड वाले गणेश की ऐसे करें पूजा

दाई सूंड सिद्धि विनायक का पूजन करते समय भक्त को रेशमी वस्त्र धारण कर नियम से सुबह-शाम पूजा करनी पड़ती है। सूती वस्त्र पहन कर पूजन नहीं कर सकते। पुजारी या पुरोहित से पूजा कराना शास्त्र सम्मत माना जाता है। भक्त को जनेऊ धारण कर उपवास रखना होता है। स्थापना करने वाले को इस दौरान किसी के यहां भोजन करने नहीं जाना चाहिए।

 

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बाई सूंड वाले गणेश महाराज की ये है पूजन विधि
बाई सूंड यदि सूंड प्रतिमा के बाएं हाथ की ओर घूमी हुर्ई हो तो इस विग्रह को वक्रतुंड कहा जाता है। इनकी पूजा-आराधना में बहुत ज्यादा नियम नहीं रहते हैं। सामान्य तरीके से हार-फूल, आरती, प्रसाद चढ़ाकर भगवान की आराधना की जा सकती है। पंडित या पुरोहित का मार्गदर्शन न भी हो तो कोई अड़चन नहीं रहती।


बैठी हुई मुद्रा वाले गणेश जी की करें प्रतिस्थापना
बैठी या खड़ी मुद्रा शास्त्रों के अनुसार गणेश जी की मूर्ति बैठी हुई मुद्रा में ही स्थापित करना चाहिए। मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा बैठकर ही होती है। खड़ी मूर्ति की पूजा भी खड़े होकर करनी पड़ती है, जो शास्त्र सम्मत नहीं है। गणेश जी की पूजा भी बैठकर ही करनी चाहिए, जिससे व्यक्ति की बुद्धि स्थिर बनी रहती है।

मूषक और रिद्धि-सिद्धि
मूषक का स्वभाव है वस्तु को काट देने का, वह यह नहीं देखता है कि वस्तु पुरानी है या नई। कुतर्की जन भी यह नहीं सोचते कि प्रसंग कितना सुंदर और हितकर है

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