उसके बाद उसने स्टेट लेवल पर बेहतरीन प्रदर्शन किया तो अब चयनकर्ताओं ने उसे नेशनल के लिए मप्र की अंडर-19 टीम में चुना है। अब वह अंडमान-निकोबार में होने वाली प्रतियोगिता में सामान्य खिलाड़ी के रूप में प्रदेश का प्रतिनिधित्व करेगा। मयंक के पिता भूपेश और मां अर्चना अग्रवाल ने बेटे के बारे में बताया कि मयंक जन्म से ही बोल और सुन नहीं सकता, लेकिन खेलों के प्रति उसका बचपन से ही रुझान रहा। जिसके चलते आज उसे नेशनल के लिए मप्र की अंडर-19 टीम में चुना गया है।
कोच इशारों से कराते थे प्रैक्टिस
शिवपुरी शहर के पोलो ग्राउंड पर मयंक पहले क्रिकेट खेला करता था। लेकिन 10 साल की उम्र में उसने अपने कुछ दोस्तों के साथ पहली बार फुटबॉल खेला। इसके बाद उसे कोच के रूप में रज्जाक और कल्लू सर मिले। दोनों ने उसका खेल देखा तो वह हैरान रह गए। इसके बाद उन्होंने मयंक को फुटबॉल में महारत दिलाने की सोची। बोलने और सुनने की क्षमता ने होने से उसे शुरू में सिखाने में काफी मुश्किल हुई। लेकिन बाद में मयंक की लगन को देखते हुए दोनों ने उसे इशारों से खेल के टिप्स देने शुरू किए। जिसके बाद फिर वह एक दम से सही खेलने लगा।
सीटी न सुन पाने से नेशनल टीम में नहीं हुआ चयन
मंयक के माता पिता ने बताया कि वह जब अंडर-17 में स्टेट फुटबॉल टीम में प्रदर्शन करने के लिए वर्ष 2017 में सिवनी गया तो वहां बेहतरीन प्रदर्शन किया,लेकिन रेफरी की सीटी की आवाज को जब वह नहीं सुन सका तो इसे अनुशासनहीनता माना गया और मयंक को नेशनल टीम के लिए नहीं चुना गया। उसके दो साल बाद जब 2019 में छिंदवाड़ा में आयोजित स्टेट लेवल के मैच में ग्वालियर संभाग की ओर से शामिल हुआ तो उसका बेहतरीन प्रदर्शन चयनकर्ताओं को पसंद आया और बाद में उसे नेशनल लेवल के लिए मप्र अंडर-19 टीम में चुन लिया गया।
मयंक के साथ जितने भी खिलाडिय़ों ने ग्वालियर-चंबल संभाग से प्रदर्शन किया,उनमें से सिर्फ मयंक को नेशनल के लिए चुना गया है। यह चयन स्टेट लेवल पर फॉरवर्ड के रूप में उसके बेहतरीन प्रदर्शन के आधार पर किया गया। टीम में से अन्य किसी खिलाड़ी का चयन नेशनल के लिए नहीं हुआ है। जिला खेल अधिकारी महेंद्र सिंह तोमर ने बताया मयंक का नाम टीम में शामिल 14 खिलाडिय़ों में 11वें नंबर पर है, इसलिए उसका खेलना तय है।