यह खबर भी पढ़ें :नवरात्र महोत्सव : नवमी की रात को इस मंदिर में होते है मां आनन्दी के साक्षात दर्शन,यह है मंदिर की खासियत यहां देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना आल्हा उदल के बड़े भाई सिरसा राज्य के सामन्त वीर मलखान एवं उनकी पतिव्रता पत्नी गजमोतिन ने करवाई थी। मन्दिर से पूर्व दिशा में चार किमी की दूरी पर पहूज नदी के किनारे सिरसा रियासत की प्राचीन गढिय़ों के भग्राावशेष मिलते हैं। बताया जाता है कि सिरसा की गढ़ी की बावड़ी से लेकर रेंहकोला देवी के मन्दिर तक चार किमी लम्बी भूमिगत सुरंग भी है, जिससे होकर मलखान अपनी महारानी गजमोतिन के साथ बावड़ी में स्नान के बाद देवी मन्दिर तक आता-जाता था।
यह खबर भी पढ़ें :आज से नवरात्र शुरू: नवरात्र एक ऐसी नदी है, जो भक्ति और शक्ति के तटों के बीच है बहती मलखान प्रतिदिन ब्रह्ममुहूर्त में पत्नी गजमोतिन के साथ देवी की पूजा-अर्चना किया करता था।अंचल में मान्यता है कि मलखान आज भी सूक्ष्म शरीर से माता की पूजा अर्चना के लिए नित्य मंदिर में आता है। कालांतर में सिरसा की बावड़ी में जल स्तर बढ़ जाने से मन्दिर के गर्भगृह की ओर जाने वाले दरवाजे जलमग्र होकर लुप्त हो गए हैं। मन्दिर के गर्भगृह में जगदम्बा दुर्गा की आदमकद और मोहक स्वर्ण प्रतिमा स्थापित है जो श्रद्धालुओं को सहज ही अपनी ओर आकर्षित करती है।
यह खबर भी पढ़ें :शारदीय नवदुर्गा उत्सव : शहर के गली, मोहल्लों में देवी पूजा के पांडाल सजकर तैयार मन्दिर के पुजारी पं.हलधर पण्डा का कहना है कि दुर्गा स्वरूप रेहकोला देवी की प्रतिमा अतिशयकारी है। प्रतिदिन सुबह गर्भगृह में देवी की प्रतिमा अभिशिक्त की हुई प्रतीत होती है जिससे लोगों की इस मान्यता को बल मिलता है कि यहां वीर योद्धा मलखान आज भी अदृश्य रूप मेंं देवी के अभिषेक पूजन के लिए आता है। हलधर पण्डा के अनुसार, देवी सिद्धिदात्री हैं। वे आस्था के साथ यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी करती हैं। नवरात्र के दिनों में यहां मध्यप्रदेश के अलावा अन्य राज्यों से भी हजारों की संख्या में श्रद्धालु पूजा अर्चना व विशेष यज्ञानुष्ठान के लिए आते हैं।