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जबकि, नगर निगम ने इस साल के बजट में इसके लिए केवल एक करोड़ रुपए का प्रावधान किया है। उधर, राजस्थान के कई शहर चंबल का पानी लेने में कामयाब हो गए हैं। यह भी पढ़ें
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प्रोजेक्ट की लागत कम करने के लिए पाइप लाइन का साइज तक घटा दिया गया। इसके बावजूद न तो राज्य सरकार ने फंड दिया, और न ही केन्द्र सरकार ने। अब जब शहर में जलसंकट दिखने लगा है, तब भी जिम्मेदार इस दिशा में गंभीर दिखाई नहीं दे रहे हैं। यह भी पढ़ें
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हमसे पहले राजस्थान के यह शहर ले गए पानीराजस्थान का शहर भीलवाड़ा, जिसकी आबादी करीब २४ लाख है। यहां १४७ किलोमीटर दूर कोटा के भैंसरोगढ़ से २०१६ में पानी पहुंचा। करीब ८ साल पहले बनी इस योजना के प्रथम चरण में ४.७१ लाख की आबादी को पानी पहुंचना शुरू हो गया है। दूसरा प्रोजेक्ट २०१८ में पूरा होना है। राजस्थान का दूसरा शहर बूंदी है। जिसकी आबादी १.११ लाख है। यह कोटा स्थित चंबल से ३५ किलोमीटर तक पानी ले गए हैं। करीब ७ साल पहले बनी इस योजना में ४९ करोड़ की लागत से वर्ष २०१६-१७ में पानी पहुंचा है। इससे करीब १९ गावों को भी पानी दिया जा रहा है।
भोपाल में आया नर्मदा का पानी
१५ साल पहले भोपाल में जल संकट से निपटने के लिए तैयारी शुरू हुई। इसके लिए करीब ७०० करोड़ के प्रोजेक्ट शुरू हुए। जिसमें ४५० करोड़ रुपए की लागत से करीब ७० किलोमीटर दूर बुधनी शाहगंज से पाइप लाइन के जरिए वर्ष २०१२-१३ में नर्मदा का पानी भोपाल पहुंचा। शेष २५० करोड़ से शहर में वॉटर लाइन डालने का काम किया गया।
१५ साल पहले भोपाल में जल संकट से निपटने के लिए तैयारी शुरू हुई। इसके लिए करीब ७०० करोड़ के प्रोजेक्ट शुरू हुए। जिसमें ४५० करोड़ रुपए की लागत से करीब ७० किलोमीटर दूर बुधनी शाहगंज से पाइप लाइन के जरिए वर्ष २०१२-१३ में नर्मदा का पानी भोपाल पहुंचा। शेष २५० करोड़ से शहर में वॉटर लाइन डालने का काम किया गया।