26 साल की उम्र में लड़ा था पहला चुनाव
माधवराव ने सबसे पहला चुनाव 1971 में मात्र 26 वर्ष की आयु में लड़ा और उसके बाद उन्होंने लगातार नौ बार लोकसभा के सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। 1984 में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से चुनाव में हराया था। इसके बाद जब हवाला कांड में उनका नाम कथित रूप से आया और नरसिंहराव ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे मप्र विकास कांग्रेस बनाकर चुनाव में सामने आए और रिकार्ड मतों से विजयी हुए। उन्हें ग्वालियर के लोगों पर पूरा भरोसा था, यही कारण था कि उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई और बाद में कांग्रेस के साथ फिर से जुड़ गए।
माधवराव ने सबसे पहला चुनाव 1971 में मात्र 26 वर्ष की आयु में लड़ा और उसके बाद उन्होंने लगातार नौ बार लोकसभा के सांसद बनने का गौरव प्राप्त किया। 1984 में उन्होंने भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी को ग्वालियर से चुनाव में हराया था। इसके बाद जब हवाला कांड में उनका नाम कथित रूप से आया और नरसिंहराव ने उन्हें टिकट नहीं दिया तो वे मप्र विकास कांग्रेस बनाकर चुनाव में सामने आए और रिकार्ड मतों से विजयी हुए। उन्हें ग्वालियर के लोगों पर पूरा भरोसा था, यही कारण था कि उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई और बाद में कांग्रेस के साथ फिर से जुड़ गए।
लोकसभा सदस्य नौ बार चुने गए
बता दें कि माधवराव सिंधिया लगातार 9 बार लोकसभा के सदस्य चुने गए और वह कभी हारे नहीं। ग्वालियर को उन्होंने एक अलग तरीके से देश के नक्शे पर उभारने का प्रयास भी किया और यही कारण है कि आज ग्वालियर में यूनिवर्सिटी स्तर के जो चार संस्थान दिखाई देते हैं वह उनकी हीदूरदृष्टि का परिणाम है। साथ ही माधवराव सिंधिया की छवि आज प्रदेश ही नहीं देश में भी देखने को मिलती है।
बता दें कि माधवराव सिंधिया लगातार 9 बार लोकसभा के सदस्य चुने गए और वह कभी हारे नहीं। ग्वालियर को उन्होंने एक अलग तरीके से देश के नक्शे पर उभारने का प्रयास भी किया और यही कारण है कि आज ग्वालियर में यूनिवर्सिटी स्तर के जो चार संस्थान दिखाई देते हैं वह उनकी हीदूरदृष्टि का परिणाम है। साथ ही माधवराव सिंधिया की छवि आज प्रदेश ही नहीं देश में भी देखने को मिलती है।
माधवराव ने चलावाई थी शताब्दी एक्सप्रेस
आज देश में हर ओर बुलेट ट्रेन की चर्चा हो रही है, लेकिन इस तेज गति की ट्रेन की शुरुआत माधवराव सिंधिया ने उस समय की,जब वे राजीव गांधी के मंत्रिमंडल में रेल राज्यमंत्री थे। उन्होंने ही सबसे पहले दिल्ली से ग्वालियर तक शताब्दी एक्सप्रेस को चलाकर दिखा दिया कि भारत वल्र्ड क्लास ट्रेन चला सकता है। यही कारण रहा है कि वे अकेले मंत्री थे, जिनका विभाग पूरे पांच वर्ष तक उस समय के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने नहीं बदला था।
क्रिकेट के प्रति थी गजब की दीवानगी
क्रिकेट के प्रति माधवराव सिंधिया के मन में गजब की दीवानगी थी और वे खुद भी क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में एमपीसीए की कप्तानी कर माधवराव ने कई मैच भी जिताए थे। उन्होंने ग्वालियर को एक आधुनिक क्रिकेट स्टेडियम तो दिया ही, इसके साथ ही पूरे मध्य प्रदेश को क्रिकेट में विश्व में पहचान दिलाई। वे एमपी क्रिकेट एसोसिएशन व बीसीसीआई से भी जुड़े रहे। इतना ही नहीं वह अन्य खेलों में भी रूचि रखते थे। माधवराव ने ग्वालियर को एक आधुनिक क्रिकेट स्टेडियम तो दिया ही, साथ में आईआईआईटीएम, आईआईटीटीएम,आईएचएम तथा एलएनयूपीई जैसे आधुनिक शिक्षा वाले संस्थान दिए। इसके अलावा उन्होंने ग्वालियर के साथ चंबल अंचल में औद्योगिक विकास तेजी से हो, इसके लिए मालनपुर और बानमौर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित किया। आज इन औद्योगिक क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपने प्लांट लगाए है।
क्रिकेट के प्रति माधवराव सिंधिया के मन में गजब की दीवानगी थी और वे खुद भी क्रिकेट के अच्छे खिलाड़ी थे। प्रथम श्रेणी क्रिकेट में एमपीसीए की कप्तानी कर माधवराव ने कई मैच भी जिताए थे। उन्होंने ग्वालियर को एक आधुनिक क्रिकेट स्टेडियम तो दिया ही, इसके साथ ही पूरे मध्य प्रदेश को क्रिकेट में विश्व में पहचान दिलाई। वे एमपी क्रिकेट एसोसिएशन व बीसीसीआई से भी जुड़े रहे। इतना ही नहीं वह अन्य खेलों में भी रूचि रखते थे। माधवराव ने ग्वालियर को एक आधुनिक क्रिकेट स्टेडियम तो दिया ही, साथ में आईआईआईटीएम, आईआईटीटीएम,आईएचएम तथा एलएनयूपीई जैसे आधुनिक शिक्षा वाले संस्थान दिए। इसके अलावा उन्होंने ग्वालियर के साथ चंबल अंचल में औद्योगिक विकास तेजी से हो, इसके लिए मालनपुर और बानमौर जैसे औद्योगिक क्षेत्रों को विकसित किया। आज इन औद्योगिक क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपने प्लांट लगाए है।
ऐसे हुई थी माधवराव सिंधिया की मौत
माधवराव सिंधिया का निधन 30 सितंबर 2001 को दिल्ली से कानपुर एक रैली को संबोधित करने विशेष एयरक्राफ्ट से जाते समय हो गया था। उत्तरप्रदेश के भैंसरोली गांव के ऊपर एयरक्राफ्ट में आग लग गई।
जिसके बाद एयरक्राफ्ट खेत में गिर गया। उस समय बारिश भी हो रही थी,लेकिन इस दौरान भी एयरक्राफ्ट का जलना जारी रहा। यहां ग्रामीणों ने कीचड़ डालकर आग बुझाई थी। एयरक्राफ्ट से एक भी आदमी जिंदा नहीं निकला था। मरने वालों में माधवराव सिंधिया भी शामिल थे। इससे पहले लगातार रैली स्थल पर एयरक्राफ्ट की लोकेशन ली जा रही थी और माधवराव सिंधिया के बारे में पूछा जा रहा था। इसी बीच एयरक्राफ्ट दुर्घटना की खबर आ गई। पुलिस अफसर दुर्घटना स्थल पहुंचे और जब एयरक्राफ्ट का दरवाजा तोड़ा गया, इस दौरान विमान में सभी शव सीट बेल्ट से बंधे मिले। हादसा इतनी जल्दी हुआ कि लोगों को सीट बेल्ट खोलने तक का मौका नहीं मिला।
माधवराव सिंधिया का निधन 30 सितंबर 2001 को दिल्ली से कानपुर एक रैली को संबोधित करने विशेष एयरक्राफ्ट से जाते समय हो गया था। उत्तरप्रदेश के भैंसरोली गांव के ऊपर एयरक्राफ्ट में आग लग गई।
जिसके बाद एयरक्राफ्ट खेत में गिर गया। उस समय बारिश भी हो रही थी,लेकिन इस दौरान भी एयरक्राफ्ट का जलना जारी रहा। यहां ग्रामीणों ने कीचड़ डालकर आग बुझाई थी। एयरक्राफ्ट से एक भी आदमी जिंदा नहीं निकला था। मरने वालों में माधवराव सिंधिया भी शामिल थे। इससे पहले लगातार रैली स्थल पर एयरक्राफ्ट की लोकेशन ली जा रही थी और माधवराव सिंधिया के बारे में पूछा जा रहा था। इसी बीच एयरक्राफ्ट दुर्घटना की खबर आ गई। पुलिस अफसर दुर्घटना स्थल पहुंचे और जब एयरक्राफ्ट का दरवाजा तोड़ा गया, इस दौरान विमान में सभी शव सीट बेल्ट से बंधे मिले। हादसा इतनी जल्दी हुआ कि लोगों को सीट बेल्ट खोलने तक का मौका नहीं मिला।
लॉकेट से हुई थी सिंधिया की पहचान
बुरी तरह से जल चुके इन शवों की पहचान करना मुश्किल था। एक शव के गले में लॉकेट था। लॉकेट पर मां दुर्गा अंकित थीं। जानकारी ली गई तो मालूम हुआ कि माधवराव यह लॉकेट पहनते थे। इसके बाद शव की पहचान हुई। इसके बाद माधवराव सिंधिया के पार्थिव शरीर को ग्वालियर लाया गया। ग्रामीणों का कहना था कि हवाई जहाज में उड़ान के दौरान ही आग लग गई थी। इस पुराने एयरक्राफ्ट में ब्लैकबाक्स तक नहीं था।
बुरी तरह से जल चुके इन शवों की पहचान करना मुश्किल था। एक शव के गले में लॉकेट था। लॉकेट पर मां दुर्गा अंकित थीं। जानकारी ली गई तो मालूम हुआ कि माधवराव यह लॉकेट पहनते थे। इसके बाद शव की पहचान हुई। इसके बाद माधवराव सिंधिया के पार्थिव शरीर को ग्वालियर लाया गया। ग्रामीणों का कहना था कि हवाई जहाज में उड़ान के दौरान ही आग लग गई थी। इस पुराने एयरक्राफ्ट में ब्लैकबाक्स तक नहीं था।
एक हफ्ते बंद रहा था ग्वालियर
दिवंगत माधव राव सिंधिया शाही खानदान में जन्मे जरूर,लेकिन वे लोगों से बहुत ज्यादा घुले-मिले थे। उनकी सोच में विकास था तो नजरिए में लोकतंत्र। देश को आजादी मिलने के बाद माधव राव ने अपनी मां के लोकपथ पर उतरने के संघर्ष को नजदीक से देखा था। माधवराव सिंधिया की लोकप्रियता का अंदाज ऐसे लगाया जा सकता है कि उनके निधन पर देश के उस समय के पीएम अटल बिहारी से लेकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी सहित सभी नेता उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। ग्वालियर के लोग इतने दुखी थे कि अपने लोकप्रिय नेता और महाराज माधवराव के निधन पर एक हफ्ते ग्वालियर बंद रखा और श्रृद्धांजलि दी।
दिवंगत माधव राव सिंधिया शाही खानदान में जन्मे जरूर,लेकिन वे लोगों से बहुत ज्यादा घुले-मिले थे। उनकी सोच में विकास था तो नजरिए में लोकतंत्र। देश को आजादी मिलने के बाद माधव राव ने अपनी मां के लोकपथ पर उतरने के संघर्ष को नजदीक से देखा था। माधवराव सिंधिया की लोकप्रियता का अंदाज ऐसे लगाया जा सकता है कि उनके निधन पर देश के उस समय के पीएम अटल बिहारी से लेकर कांग्रेस नेता सोनिया गांधी सहित सभी नेता उनके अंतिम संस्कार में शामिल हुए। ग्वालियर के लोग इतने दुखी थे कि अपने लोकप्रिय नेता और महाराज माधवराव के निधन पर एक हफ्ते ग्वालियर बंद रखा और श्रृद्धांजलि दी।
देश का हर नेता पहुंचा ग्वालियर
यहां बता दें कि माधवराव सिंधिया के दुखद निधन से देश का हर नेता हैरान रह गया। स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी गहरा दुख पहुंचा। उनके अंतिम संस्कार में देश के कोने-कोने से हर पार्टी के नेता श्रृद्धांजलि देने ग्वालियर आए।शोक की यह लहर पूरे एक हफ्ते तक ग्वालियर में दिखाई दी। अंतिम संस्कार के दिन ग्वालियर में और महल के आसपास खड़े होने की जगह तक लोगों को नहीं मिली। उनके अंतिम संस्कार में देश का हर नेता शामिल हुआ था।
यहां बता दें कि माधवराव सिंधिया के दुखद निधन से देश का हर नेता हैरान रह गया। स्वयं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को भी गहरा दुख पहुंचा। उनके अंतिम संस्कार में देश के कोने-कोने से हर पार्टी के नेता श्रृद्धांजलि देने ग्वालियर आए।शोक की यह लहर पूरे एक हफ्ते तक ग्वालियर में दिखाई दी। अंतिम संस्कार के दिन ग्वालियर में और महल के आसपास खड़े होने की जगह तक लोगों को नहीं मिली। उनके अंतिम संस्कार में देश का हर नेता शामिल हुआ था।