ग्वालियर

चंबल संभाग में आस्था का केंद्र है यह मंदिर, राजाशाही ठाट-बाट से होती पूजा-अर्चना, ऐसी है माता की महिमा

kaila devi temple in gwalior : कुंअर महाराज की प्रेरणा से करौली से लेकर महंत हीरालाल लाए थे कैला देवी

ग्वालियरOct 03, 2019 / 02:59 pm

monu sahu

चंबल संभाग में आस्था का केंद्र है यह मंदिर, राजाशाही ठाट-बाट से होती पूजा-अर्चना, ऐसी है माता की महिमा

ग्वालियर। शहर के सिटी सेंटर इलाके से सटा महलगांव स्थित राज राजेश्वरी कैला देवी मंदिर की स्थापना करीब 102 साल पहले की गई थी। कैला देवी का यह मंदिर ग्वालियर चंबल संभाग के लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। राजस्थान के करौली शहर में स्थित कैलादेवी का स्वरुप है, जो श्रद्धालु करौली नहीं पहुंच पाते है उनकी महलगांव स्थित देवी मंदिर पर पहुंचकर मन्नत पूरी हो रही है। श्रद्धावान,शहर से बाहर दूसरे शहरों में बस गए हो या फिर विदेशों में रहने लगे हो। वे जब अपने घर आते है तो कैलादेवी के दर्शन जरूर करते हैं। यह मंदिर छोटी करौली के नाम से प्रसिद्ध है।

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यहां माता को राजराजेश्वरी के तौर पर विराजमान किया गया है। यहां महारानी की तरह मां की पूजा अर्चना की जाती है। इस मंदिर की कहानी बड़ी ही रोचक है। सौ साल पहले यह क्षेत्र में घना जंगल था। यहां एक प्राचीन कुंअर महाराज का स्थान बना हुआ था। इसी स्थान के करीब दो से तीन किलोमीटर दूर औहदपुरगांव है। इस गांव में रहने वाले हीरालाल गायों को चरने के लिए आते थे। वे कुंअर महाराज के चबूतरे पर आकर पूजा अर्चना करते थे।

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हीरालाल महाराज पर कुंअर महाराज की कृपा हुई और उन्होंने लोगों के कष्टों को काटना शुरु कर दिया। इसके बाद यहां हर सोमवार की रात 12 बजे से कुंअर महाराज का दरवार लगाना शुरु हो गया। यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है। कुंअर महाराज की प्रेरणा से महंत हीरालाल करौली से मां कैला देवी का आंमत्रित करके पिंडी के रुप में लेकर आए। तब ग्वालियर का स्वरुप सीमित था। यहां करौली स्थित कैला देवी के तर्ज पर मां का दरवार सजाया गया। मंदिर के आस-पास परकोट खींचकर महलनुमा आकार दिया गया। जैसे-जैसे लोगों मंदिर में आए उनकी हर मनोकामना मां कैलादेवी और कुंअर महाराज ने पूरी की। मंदिर के अंदर ही चामुंडा देवी और सरस्वती देवी को विराजमान किया गया। इसके बाद आस-पास के लोग मंदिर के पूर्वी गेट के आस-पास निवास करने लगे जोकि आज घनी बस्ती है। मां कैला देवी की पूजा अर्चना के लिए विशाल कुंड की स्थापना की गई। इस कुंड के बीचों बीच रामेश्वरम् भगवान शिव की स्थापना हुई। मंदिर परिसर में भैरव नाथ, हनुमान, राम दरवार, आसमानी माता की मूर्तियां है।

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सिधिया स्टेट राजवंश से लेकर से लेकर सरदारों करते है पूजा-अर्चना
मां कैलादेवी कुंअर महाराज की स्थापना के बाद सिंधिया स्टेट के तात्कालीन महाराज भी मंदिर में दर्शन करने जाते थे। यहां स्टेट के सरदारों की भी मन्नते पूरी हुई है। यह सरदारों के वसंज आज भी मंदिर की खास पूजाओं में शामिल होते हैं। यहां दशहरा, बसंत पंचमी, रंगपंचमी सहित मंदिर के स्थापना दिवस पर भी विशेष दरवार लगाए जाते हैं।

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महंत चंद्रप्रकाश ने कुंअर महाराज की गद्दी स्थल का कराया जीर्णोद्धार
महंत हीरालाल के बाद महंत चंद्रप्रकाश शर्मा ने मंदिर की व्यवस्थाएं संभाली। उन्होंने मंदिर पर विकाश कराए कराए। गरीब कन्याओं के विवाह कराए। धार्मिक आयोजन कराए जाते रहे। उनके द्वारा मंदिर परिसर में कुंअर महाराज की गद्दी का जीर्णोद्धार कार्य कराया गया। विशाल मंदिर को आकर्षक तौर पर बनाया गया। यह स्थान लोगों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इस मंदिर की व्यवस्थाएं महंत हीरालाल के तीसरी पीड़ी के युवराज कपिल शर्मा और चौथी पीड़ी के प्रमोद शर्मा संभाली जा रही है। उनके द्वारा मंदिर में पूजा-अर्चना, दरवार, श्रृंगार, कुंअर महाराज की गद्दी आदि धार्मिक कार्यक्रम संचालित कराए जा रहे हैं।
विशेष दरवारों पर होती निशान पूजा
यहां कैलादेवी को राजराजेश्वरी के तौर पर विराजमान किया गया। यहां देवी की राजसी ठाठ-वाट से पूजा अर्चना की जाती है। सिंधिया स्टेट के समय इस मंदिर के नाम कई गांव को जागीर के तौर पर दिए गए थे। मंदिर में सेवक सेना के तौर पर आज भी शामिल होंते है। मंदिर में माता के निशानों की पूजा का आज भी उसी तरह से महत्व बना हुआ है।

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