उन्होंने लिखा- हमारी चिंता यह है कि फिर प्रदेश में भाजपा और उसके कार्यकर्ताओं का क्या होने वाला है। क्या हमारा स्वाभिमानी कार्यकर्ता महल के दरवाज़े पर वैसे ही खड़ा रहना पसंद करेगा जैसे आज मज़बूरी में कांग्रेसी खड़े रहते हैं? ऊपर ऊपर से तो नरेंद्र सिंह को किसी के साथ भी एडजस्ट करने में कठिनाई नहीं होगी, पर खुला खेल फर्रुखाबादी खेलने वाले जयभान सिंहजी क्या करेंगे? प्रदेश भर के भाजपा कार्यकर्ता उस नेता का नेतृत्व दिल से स्वीकार करेंगे, जिसके विरुद्ध वे आज तक संघर्ष करते आये हैं और उन्हें सामंतवाद का चेहरा मानते रहे हैं?
उन्होंने लिखा- क्या कुशाभाऊ ठाकरे से लेकर शिवराज सिंह चौहान जैसे ज़मीन से जुड़े नेताओं के नेतृत्व तले काम करने वाले उन्हें अपना नेता मान लेंगे जिसका अपनी श्रेष्ठता का आग्रह सदैव चरम पर रहा है? कर भी सकते हैं। आज की राजनीति में जब मान सम्मान से व्यक्तिगत लाभ मुख्य हो गया है तो कार्यकर्ता भी सम्भवतः सब कुछ भूल कर नए समीकरण बिठाने में लग जाएंगे। पर इतना सब करने के बाद भी क्या वो ज्योतिरादित्य जी की गुड बुक में आ जायेगा?
क्या वो उनके विश्वास प्राप्त वर्तमान कांग्रेसियों के जो तब भाजपाई हो चुके होंगे, की तुलना में “महाराज” की नज़र में ठहर सकेगा ? क्या प्रद्युम्नसिंह तोमर और सम्भाग के उनके अन्य चेले चांटों के सामने अपनी वर्तमान जगह पर टिके रह सकेगा? “महाराज” की पहली पसंद उनके वर्तमान सामन्त होंगे या हमारे “देव दुर्लभ कार्यकर्ता” ?
सबसे बड़ा सवाल, भाजपा के वर्तमान “सर्वशक्तिमान” क्या उन्हें दिल से स्वीकार करेंगे और अपने साम्राज्य की चाबी सहर्ष उन्हें सौंप देंगे? प्रदेश में 2 नम्बर की स्थिति तो महाराज स्वीकार करेंगे नहीं, शिवराज और नरेंद्र सिंह उनके नेतृत्व को कभी दिल से स्वीकार करेंगे ? शायद कभी नहीं। वैसे भी ऊपर से हां, हां करने और अंदर से जड़ें काटने में सिद्ध हस्त हमारे नेता ज्योतिरादित्य की गति सांप छछून्दर वाली नहीं कर देंगे, कहा नहीं जा सकता।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के धारा 370 हटाए जाने का समर्थन करने के बाद सोशल मीडिया में उनके भाजपा में शामिल होने की खबरें आ रही थीं। वहीं, भाजपा के कई बड़े नेताओं ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की तारीफ भी की है। पार्टी के उपाध्यक्ष प्रभात झा ने तो सिंधिया को भाजपा परिवार का सदस्य ही बताया था।