ग्वालियर। देवी पुराण के अनुसार एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। माता सती को नारद से यह बात पता चली की उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है। उन्होंने शिवजी के मना करने पर भी जि़द की और अपने पिता के यहां यज्ञ में सम्मिलत होने के लिए हरिद्वार चली गई। वहां जाने पर जब उन्हें पता चला कि यज्ञ में शिवजी को छोड़कर सारे देवताओं को आमंत्रित किया गया है। यह भी पढ़ें – चैत्र नवरात्रि : सपने में दिया मां ने दर्शन फिर इस सिंधिया शासक ने बनवाया मंदिर तब उन्होंने अपने पिता से शिवजी को न बुलाने का कारण पूछा तो दक्ष ने शिवजी के बारे में अपमानजनक बातें कही। वे बातें माता सती से सहन नहीं हुई और उन्होंने अग्रिकुंड में कूदकर अपने प्राणों की आहूति दे दी। जब ये समाचार शिवजी तक पहुंचा तो वे बहुत क्रोधित हुए उनका तीसरा नेत्र खुल गया। वीरभद्र ने उनके कहने पर दक्ष का सिर काट दिया। उसके बाद शिव सती के वियोग में संपूर्ण भू-मंडल में उनका शव लेकर भ्रमण करने लगे। यह भी पढ़ें – नवरात्रि नहीं इस बार मनेगी आठरात्रि, ये नवरात्रि होगी बहुत स्पेशल शिव को इस वियोग से निकालने के लिए भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती माता के देह को कई हिस्सों में विभाजित कर दिया। कहा जाता है कि जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां शक्तिपीठों का निर्माण किया गया। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन मिलता है। वहीं, देवी भागवत में 108 देवी गीता में 72 व तंत्रचूड़ामणि में 52 शक्ति पीठ बताए गए हैं। विभाजन के बाद भारत में कुल 42 शक्ति पीठ रह गए हैं, बाकि विदेश में स्थित हैं। आइए सबसे पहले जानते हैं मध्यप्रदेश व राजस्थान में स्थित शक्तिपीठ के बारे में….. मध्यप्रदेश शक्तिपीठ देश के अन्य प्रांतों की ही तरह मध्यप्रदेश में भी देवी उपासना की बहुत प्राचीन परंपरा है। यहां जगह-जगह कई लोक देवियों के भी मंदिर हैं। इस प्रदेश में चार शक्ति पीठ हैं, जो कि इस प्रकार हैं। हरसिद्धि शक्तिपीठ यह स्थान सती के विग्रह से गिरे ‘कुहनी’ रुप अंग के कारण एक सिद्ध शक्तिपीठ माना गया है। तन्त्रचूडामणि और ज्ञानार्वण के अनुसार यहां सती/शक्ति का नाम मागंल्यचण्डिका और शिव का नाम कपिलाम्बर है। यहां थकार वर्ण हुआ। इस पीठ पर कवच–मन्त्रों की सिद्धि होकर रक्षण होता है। इसलिए इसका नाम ‘अवन्ती’ है। पीठ की प्रमुख शक्तिदेवी ‘हरसिद्धी है। ‘शिवपुराण’ के अनुसार यहां ‘श्रीयन्त्र’ की पूजा होती थी। गर्भगृह में एक शिला पर श्रीयन्त्र उत्कीर्ण है। यहां अन्नपूर्णा, कालिका, महालक्ष्मी, महासरस्वती एवं महामाया की प्रतिमाएं भी है। कहां है मंदिर- उज्जैन में महाकाल मन्दिर से पश्चिम की ओर प्रचीन हरसिद्धि माता मंदिर स्थित है। कैसे पहुंचे- देशभर से सड़क व रेल मार्ग से आसानी से उज्जैन जंक्शन पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से इंदौर पहुंचकर बस या अन्य प्रायवेट वाहनों से उज्जैन पहुंचा जा सकता है। रामगिरी शक्तिपीठ कहा जाता है कि यहां पर देवी के देह का स्तन गिरा था। यहां कि शक्ति शिवानी और भैरव चंड हैं। कहां है मंदिर- इस शक्तिपीठ के संबंध में दो मान्यताएं हैं, कुछ विद्वान मानते हैं कि चित्रकूट का शारदा मंदिर यह शक्तिपीठ है। जबकि कुछ मानते हैं कि मेहर के शारदामंदिर को यह शक्तिपीठ बताते हैं। कैसे पहुंचे- पूरे देश के किसी भी कोने से आसानी से सड़क व रेलमार्ग द्वारा चित्रकूट पहुंचा जा सकता है। यह भी पढ़ें – जानिये वो कौन थी जिसके डर से निगम ने उतारी हुई होर्डिंग भी वापस टांग दी शोण शक्तिपीठ यहां माता सती की देह का दक्षिण नितंब गिरा था। यहां शक्ति नर्मदा या शोणाक्षी और भैरव भद्रसेन हैं। कहां है मंदिर- अमरकंटक के नर्मदा मंदिर में यह शक्तिपीठ माना जाता है। एक अन्य मान्यता के अनुसार बिहार के सासाराम स्थित ताराचंडी मंदिर को भी यही शक्तिपीठ माना गया है। कुछ विद्वानों का मानना है कि डेहरी आन सोन स्टेशन से कुछ दूर स्थित देवीस्थान को यह शक्तिपीठ कहते हैं। कैसे पहुंचे- अमरकंटक आसानी से रेलमार्ग या सड़कमार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। भैरव पर्वत इस शक्तिपीठ को लेकर मतभेद हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि गुजरात के गिरनार के निकट स्थित भैरवपर्वत शक्तिपीठ हैं तो मानते हैं कि यह मध्यप्रदेश के उज्जैन से निकट है। यहां माता सती का ऊर्ध्व ओष्ठ यानी ऊपर वाला होंठ गिरा था। शक्ति अवंती और भैरव लंब व कर्ण है। कहां है मंदिर- कहा जाता है कि भैरव पर्वत शिप्रा नदी के तट पर स्थित है। कैसे पहुंचे- देशभर से सड़क व रेल मार्ग से आसानी से उज्जैन जंक्शन पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से इंदौर पहुंचकर बस या अन्य प्राइवेट वाहनों से उज्जैन पहुंचा जा सकता है। यह भी पढ़ें – मंगाया था मोबाइल आ गए भगवान राजस्थान के शक्तिपीठ राजस्थान की आराध्या पराम्बा शक्ति ही है। पूरे प्रदेश में उनके अनेक मंदिर और स्थान हैं। इस भू-भाग में देवी के दो शक्तिपीठ भी हैं। मणिवेदिक शक्तिपीठ यहां पर माता सती की कलाइयां गिरीं थी। शक्ति गायत्री और भैरव शर्वानंद है। कहां है मंदिर- राजस्थान के पुष्कर सरोवर के एक ओर पर्वत की चोटी पर सावित्री देवी का मंदिर है और दूसरी तरफ पहाड़ की चोटी पर गायत्री मंदिर है। यहां गायत्री मंदिर ही शक्तिपीठ है। कैसे पहुंचे- रेलमार्ग या सड़क मार्ग से अजमेर पहुंचकर वहां से आसानी से पुष्कर पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से जयपुर पहुंचकर। सड़क मार्ग से आसानी से पुष्कर पहुंचा जा सकता है। इसके अलावा दिल्ली-अहमदाबाद मुख्य रेलमार्ग पर दिल्ली से 438 कि.मी. तथा जयपुर से 134 कि.मी. दूर अजमेर स्टेशन है। यहाँ से पुष्कर जाने के लिए ऑटो, टैक्सी, बस आदि मिलते हैं। विराट शक्तिपीठ यहां सती माता के पैरों की अंगुलियां गिरीं थी। इस मंदिर की शक्ति अंबिका और भैरव अमृत है। कहां है मंदिर- जयपुर से 64 किलोमीटर दूर विराट नाम के गांव में यह मंदिर है। यहां महाभारत कालीन विराट नगर के खंडहर मिलते हैं। इस नगर में पांडवों ने अंतिम वर्ष का अज्ञात वास बिताया था। कैसे पहुंचे- जयपुर व अलवर से सड़क मार्ग द्वारा यहां पहुंचा जा सकता है।